अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: शेख मुफीद ने लिखा है कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम मक्के में मस्जिदुल हराम के अंदर जुमे के दिन 13 रजब को पैदा हुए आपके अलावा न कोई और काबे में पैदा हुआ है न ही कोई उसके बाद उस स्थान और महानता को हासिल कर सकेगा रसूले इस्लाम आमूल फील के साल पैदा हुए थे और जब आप का देहांत हुआ तो उस समय आपकी उम्र 61 साल थी इस हिसाब से आपका जन्म दिवस 570 ईस्वी बताया गया है और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जन्म के समय रसूले इस्लाम की आयु 30 साल लिखी गई है तो इसी तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम का शुभ दिन शुभ जन्म दिवस 599 ईसवी या 600 इसवी बनेगा हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विशेषताओं में से एक विशेषता काबे के अंदर आपका जन्म है यह हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विशेष खासियत है मैं उससे पहले किसी को ऐसा स्थान नसीब नहीं हुआ और ना उसके बाद होगा यह अल्लाह का चमत्कार है कि जो उसने लोगों के सामने करके दिखाया वह भी दरवाजे से नहीं बल्कि काबे की दीवार को चीर के आपकी मां को अंदर बुलाया और आप का जन्म अल्लाह के घर काबे के अंदर हुआ यह इस बात का सबूत है कि अल्लाह की आप पर खास निगाहें थी इब्ने सबा मालकी लिखते हैं हज़रत अली अलैहिस्सलाम काबे के अंदर मक्के में पैदा हुए और किसी को ना उससे पहले और न उसके बाद यह शरफ़ हासिल हुआ यह वह श्रेष्ठता है जो अल्लाह ने आपसे विशेष की है और यह आपके स्थान और ऊंचे दर्जे को दर्शाती है इब्ने असद ने लिखा है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम मक्के में 12 साल नबूवत से पहले अल्लाह के घर काबे में जुमे के दिन 13 रजब को पैदा हुए और आपके जन्म के समय रसूले इस्लाम 28 साल के थे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के वालिद जनाब अबुतालिब इब्ने अब्दुल मुत्तलिब हैं और हज़रत अब्दुल्लाह के भाई हैं और इसी तरह हजरत अली और रसूले इस्लाम चचाजाद भाई हैं हजरत अबू तालिब के नाम पर मतभेद पाया जाता है कुछ लोगों ने आपके नाम और आप की उपाधि को एक ही जाना है यानी अबू तालिब मगर कुछ लोगों ने आपका नाम अब्दे मनाफ़ बयान किया है और कुछ ने आप का नाम इमरान बताया है बाद में आप के बड़े बेटे तालिब की वजह से आपको अबू तालिब कहने लगे और यह इतना ज्यादा बोला गया कि आप के असली नाम की जगह अबुतालिब बोला जाने लगा बल्कि यूं कहें कि आप की उपाधि असली नाम बन गई हजरत अबू तालिब के चार बेटे तालिब, अक़ील, जाफर, अली और दो बेटियाँ थीं। अतः इब्ने अब्बास लिखते हैं कि जब हज़रत अबू तालिब का देहांत हुआ तो रसूले इस्लाम ने फरमाया ए मेरे चाचा आपने मेरे साथ जो सुलूक किया है अल्लाह ने उसका नेक बदला आपको अता किया हज़रत अबू तालिब ने मरने से पहले फरमाया मैं तुम लोगों को काबे के सम्मान की सिफारिश करता हूं और अल्लाह भी इससे राजी है और आखरी बार जो आपने कही थी वह यह कि मैं अब्दुल मुत्तलिब के दीन पर पाबंद हूं इमाम शामी कहते हैं अब्दुल मुत्तलिब ख़ुदा पर यकीन के साथ इस दुनिया से गए और अबू तालिब अब्दुल मुत्तलिब के दीन के पाबंद थे जब आप इस दुनिया से गुजरे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम की मां का नाम फातिमा बिन्ते असद है हजरत अबू तालिब और फातिमा बिन्ते असद दोनों एक ही कबीले से हैं इतिहासकारों ने आप दोनों की शादी को हाशमी कबीले के एक मर्द और औरत के बीच पहली शादी बताया है और इस हिसाब से यह शादी विशेष महत्व रखती है हजरत फातिमा बिन्ते असद बहुत ही नेक औरत और अल्लाह से डरने वाली महान महिला थी रसूले इस्लाम आपको मां के तौर पर याद करते थे क्योंकि आपको जनाबे फातिमा से मां की मोहब्बत हासिल हुई थी इब्ने अब्बास के हवाले से बयान किया गया है कि जब हजरत अली अलैहिस्सलाम की मां फातिमा बिन्ते असद इस दुनिया से गईं तो रसूले इस्लाम ने अपनी कमीज दी और हुक्म दिया कि उससे उनको कफन दिया जाए और आप खुद कब्र में जाकर लेट गए जब हजरत फातिमा बिन्ते असद का अंतिम संस्कार करके वापस लौटे तो कुछ लोगों ने आप से पूछा हे अल्लाह के रसूल आपने कुछ ऐसे काम अंजाम दिए हैं जो पहले कभी भी अंजाम नहीं दिए थे रसूल इस्लाम ने फरमाया मैंने अपनी कमीज से कफन दिया ताकि जन्नती लिबास आप को पहनाया जाए और कब्र में इसलिए लेट गया ताकि आप अज़ाबे कब्र से बची रहे क्योंकि उन्होंने हजरत अबू तालिब के बाद मेरा बहुत ख्याल रखा है हज़रत अली अलैहिस्सलाम की माँ फातिमा बिन्ते असद ने आपका नाम हैदर रखा था जैसा कि आप खुद फरमाते हैं कि मेरी मां ने मेरा नाम हैदर रखा है आपका सबसे मशहूर नाम अली है| हज़रत अली अलैहिस्सलाम का प्रशिक्षण अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत जो आपको नसीब हुई वह यह थी कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम अभी 10 साल के भी नहीं हुए थे कि आप का प्रशिक्षण और आप को पालने पोसने की जिम्मेदारी रसूले इस्लाम ने उठा ली रसूले इस्लाम ने अपने अखलाक़ और अपने आचरण और चरित्र के अनुसार आपको पाला-पोसा और आपको बड़ा किया कभी भी आपको अपने से दूर नहीं करते करते थे हज़रत अली अलैहिस्सलाम खुद इस बारे में कहते हैं कि मैं जब छोटा बच्चा था मुझे रसूले इस्लाम ने अपनी गोद में लिया और अपने सीने से इस तरह लगाए रहते थे कि मुझे आपकी खुशबु का आभास होता था और अपने खाने को चबाकर मुझे खिलाते थे ना कभी झूठ बोला और ना ही मुझसे झूठ सुना मैं हमेशा उनकी पैरवी करता था और हर दिन अपने आचरण में से कुछ मुझ को सिखाते थे और ताकीद करते थे मैं उस पर अमल करूँ मैंने वही के नूर को देखा और रिसालत और नबूवत की खुशबू से फायदा उठाया फ़ज़्ल इब्ने अब्बास से रिवायत है कि मैंने अपने पिता से सवाल किया कि रसूले इस्लाम अपने बेटों में सबसे अधिक किस से मोहब्बत करते थे उन्होंने जवाब दिया कि अली अलैहिस्सलाम, जब हजरत अली अ. छोटे थे तो किसी भी सूरत पैगंबर से दूर नहीं होते थे मैंने पैगंबरे अकरम से ज्यादा मेहरबान किसी बाप को नहीं देखा और मैंने अली अलैहिस्सलाम से ज्यादा पैरवी करने वाला बेटा नहीं देखा अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम रसूले इस्लाम के परिवार और सहाबियों में सबसे पहले इंसान हैं जो अल्लाह पर ईमान लाए और आपकी नुबूवत और पैग़ंबरी को कुबूल किया और यह एक ऐसी सच्चाई है जिसको तमाम शियों और अधिकतर सुन्नियों और उनके इतिहासकारों ने स्वीकार किया है खुद हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं रसूले इस्लाम हर साल कुछ समय के लिए हेरा नामक गुफा में जाते थे उन दिनों में मेरे अलावा कोई और आपको नहीं देता था उन दिनों में रसूल और हजरत खदीजा के अलावा कोई और इस्लाम की तरफ नहीं आया था और मैं तीसरा इंसान था जो इस्लाम पर था मैं रिसालत के नूर को देखता था और नबूवत की बू को महसूस करता था मैं इस्लाम की फितरत पर पैदा हुआ और ईमान और हिजरत में सब पर प्राथमिकता रखता हूं यहां पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इन शब्दों से स्वर्गीय मौलाना कौशल की एक बात याद आती है कि उन्होंने अपनी किताब मौला अली अलैहिस्सलाम में लिखा है कि मुसलमानों की यह लड़ाई कि पहले कौन मुसलमान हुआ तो मैं इस बारे में कहूंगा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम को इस झगड़े में शामिल ना किया जाए क्योंकि पहले मुसलमान या दूसरे मुसलमान की बहस वहां आती है जहां पर कोई इंसान पहले किसी दीन या मजहब पर रहा हो और उससे पलट कर दूसरा दीन चुन लें परंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम तो पहले से ही मुसलमान थे किसी और दीन को उन्होंने चुना ही नहीं कि यह बहस की जाए कि पहले हजरत अली मुसलमान हुए या कोई और क्योंकि खुद हजरत अली ने फरमाया मैं इस्लाम की फितरत पर पैदा हुआ हूं और ईमान में सबसे आगे हूं सबसे पहले ईमान लाया हजरत अली एक और जगह फरमाते हैं क्या तुम लोगों को मालूम है कि मैं वह पहला इंसान हूं जिसने अल्लाह और पैगंबर पर ईमान लाया और मेरे बाद तुम लोग गिरोह गिरोह करके इस्लाम की तरफ आए।