Hindi
Monday 25th of November 2024
0
نفر 0

जीवन में प्रगति के लिए इमाम सादिक (अ) की नसीहतें

जीवन में प्रगति के लिए इमाम सादिक (अ) की नसीहतें



इमाम सादिक़ (अ) के ज़माने के लोग इमाम (अ) के ज्ञानात्मक और आध्यात्मिक स्थान से भलीभांति परिचित थे इसलिए जब भी उन्हें मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त होता था तो आपसे नसीहत व उपदेश देने की मांग करते थे। इस्लाम के क़ीमती इल्मी खजानों से एक ख़ज़ाना इमाम सादिक़ (अ) की यही नसीहतें हैं जो आपने समय समय पर की हैं। जिनमें से कुछ तो दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ गई लेकिन कुछ उल्मा की ज़हमतों से शियों की हदीस और रिवायतों की किताबों में सुरक्षित हैं। नीचे इमाम (अ) की क़ीमती नसीहतों का वर्णन किया जा रहा है:


एक आदमी इमाम सादिक़ (अ) की सेवा में हाज़िर हुआ और कहने लगा ऐ रसूलुल्लाह के बेटे! मुझे कुछ नसीहत करें। इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:


لا یَفْقِدُكَ اللَّهُ حَیْثُ أَمَرَكَ وَ لَا یَرَاكَ حَیْثُ نَهَاكَ۔


जहां अल्लाह ने तुम्हें हाज़िर होने का हुक्म दिया हो वहाँ गायब न होना और जहां मना किया हो वहां उपस्थित न होना।


इस छोटे और कीमती वाक्य का मतलब यह है कि इंसान वाजिब को अंजाम दे और हराम से परहेज करे। अगर ख़ुदा वन्दे आलम ने किसी चीज़ का हुक्म दिया है तो ऐसा न हो कि शैतान हमें उसके अंजाम देने से रोक दे और हम अल्लाह के अनुसरण और इबादत से वंचित हो जाएं। और अगर अल्लाह ने कुछ चीजों से मना किया है तो हरगिज शैतान के धोखे में आकर उसे अंजाम न दें बल्कि कोशिश यह हो कि अल्लाह हमें गुनाह की हालत में न देखे।


इमाम (अ) के इस उपदेश के बाद उस आदमी ने पूछा: मुझे इससे ज़्यादा नसीहत करें। इमाम (अ) ने फ़रमाया कि “لَا أَجِدُ”  अर्थात् इससे अधिक कोई बात मुझे नहीं कहना है जो मुझे कहना था वह एक जुमले में कह दिया अगर इंसान इस एक जुमले पर अमल कर ले तो मानो उसने दीन के सारे आदेशों  का पालन किया है।


इमाम सादिक़ (अ) से मुलाक़ात में सुफ़यान सौरी ने कहा: ऐ रसूले इस्लां के बेटे मुझे नसीहत करें। इमाम ने कहा:


یا سُفیانُ، لَا مُرُوءَةَ لِكَذُوبٍ وَ لَا أَخَ لِمُلُوكٍ [لِمَلُولٍ‌] وَ لَا رَاحَةَ لِحَسُودٍ وَ لَا سُۆْدُدَ لِسَیِّئِ الْخُلُق‌.


ऐ सुफ़यान ! जो इंसान झूठ बोलने की आदत रखता है उसमें मानवता नाम की कोई चीज नहीं और जो ताक़त वाला है उसका कोई दोस्त नहीं और जो हासिद (जलने वाला) है उसे आराम और चैन नहीं मिल सकता है और जो आदमी बुरे चरित्र का है वह कभी सज्जनता और बुज़ुर्गी व शराफ़त नहीं रख सकता।


सुफ़यान ने और नसीहत करने की मांग की तो इमाम (अ) ने फ़रमाया ऐ सुफ़यानः


یا سُفیانُ، ثِقْ بِاللَّهِ تَكُنْ مُۆْمِناً وَ ارْضَ بِمَا قَسَمَ اللَّهُ لَكَ تَكُنْ غَنِیّاً وَ أَحْسِنْ مُجَاوَرَةَ مَنْ جَاوَرْتَهُ تَكُنْ مُسْلِماً وَ لَا تَصْحَبِ الْفَاجِرَ فَیُعْلِمَكَ مِنْ فُجُورِهِ وَ شَاوِرْ فِی أَمْرِكَ الَّذِینَ یَخْشَوْنَ اللَّهَ عَزَّ وَ جَل‌.


ऐ सुफ़यान! अल्लाह पर भरोसा करो ताकि मोमिनों की पंक्ति में शामिल हो सको और जो कुछ अल्लाह ने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है उस पर राजी रहो ताकि बेनियाज़ी का एहसास कर सको, अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करो ताकि तुम मुसलमान कहला सको। गुनहगारों और पापियों के साथ उठने बैठने से दूरी करों। अगर तुमने उन से दूरी नहीं की तो वह तुम्हें भी प्रदूषित कर देगा और अपने कामों में उन लोगों से नसीहत लो जो अल्लाह से डरते हैं यानी हलाल व हराम पर ध्यान देते हैं।
सुफ़यान सौरी ने फिर इमाम ( अ) से नसीहत करने का अनुरोध किया हैं तो इमाम (अ) फ़रमाते हैं:


یا سُفیانُ، مَنْ أَرَادَ عِزّاً بِلَا عَشِیرَةٍ وَ غِنًى بِلَا مَالٍ وَ هَیْبَةً بِلَا سُلْطَانٍ فَلْیَنْقُلْ مِنْ ذُلِّ مَعْصِیَةِ اللَّهِ إِلَى عِزِّ طَاعَتِه‌.


ऐ सुफ़यान! जो बिना लोगों और क़ौम क़बीले के सम्मान चाहे और बिना माल व दौलत के बेनियाज़ी चाहे और बिना ताक़त के शान व शौकत चाहे तो उसने अल्लाह की अवहेलना के अपमान से आज्ञाकारिता के सम्मान की ओर रूख किया है।


फिर सुफ़यान सौरी ने इमाम (अ) से नसीहत की मांग की तो आपने कहा: ऐ सुफ़यान! मेरे बाबा (अल्लाह का दुरूद और सलाम हो उन पर) ने मुझ से कहाः


ا بُنَیَّ مَنْ یَصْحَبْ صَاحِبَ السَّوْءِ لَا یَسْلَمْ وَ مَنْ یَدْخُلْ مَدَاخِلَ السَّوْءِ یُتَّهَمْ وَ مَنْ لَا یَمْلِكْ لِسَانَهُ یَنْدَمْ.


बेटा! जो बुरे आदमी के साथ उठना बैठना करे उसका अख़लाक़ व ईमान सुरक्षित नहीं रह सकता। जो आदमी ऐसी बदनाम जगहों पर आवागमन रखे तो उस पर भी बुराई का आरोप लग सकता है। और जो आदमी अपनी ज़बान पर कंट्रोल न करे उसे शर्मिंदगी और लज्जा के अलावा कुछ नहीं मिलता।


इसके बाद आपने दो शेर पढ़े: अपनी ज़बान को अच्छी बातें करने की आदत दिलाओ ताकि वह तुम्हारे लिए फायदेमंद साबित हो, इसलिए कि ज़बान जिस चीज में हमेशा व्यस्त हो उसकी आदत कर लेती है। ज़बान को जो तुम सिखाओगे, वह वही कहेगी अच्छा सिखाओगे तो अच्छा कहेगी बुरा सिखाओगे तो बुरा कहेगी। इसलिए देखो कि उसे किस चीज की आदत डाल रहे है।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हक़ निभाना मेरे हुसैन का है,
अमर सच्चाई, इमाम हुसैन ...
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ...
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ...
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का ...
शिया शब्द किन लोगों के लिए ...
जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम का ...
हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ...
नौहा
मुहब्बते अहले बैत के बारे में ...

 
user comment