जब इमाम (अस) की सही पहचान हो जायेगी और उनके खुबसूरत जलवे हमारी नज़रों के सामने होंगे तो उस कमाल ज़ाहिर करने वाली उस ज़ात को नमूना व आदर्श बनाने की बात आयेगी।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) फरमाते हैं कि :
"खुश नसीब है वह इंसान जो मेरी नस्ल के क़ाइम को इस हाल में देखे कि उस के क़ियाम (आन्दोलन) से पहले ख़ुद उसका और उस से पहले इमामों का अनुसरण करे और उनके दुशमनों से दूरी व नफ़रत का ऐलान करे, तो ऐसे लोग मेरे दोस्त और मेरे साथी हैं और यही लोग मेरे नज़दीक मेरी उम्मत के सब से महान इंसान हैं..।.[1]
वास्तव में जो इंसान तक़वे, इबादत, सादगी, सखावत, सब्र और तमाम अखलाक़ी फज़ाइल में अपने इमाम का अनुसरण करे, उसका का रुतबा अपने इमाम के नज़दीक कितना ज़्यादा होगा और वह उनके पास पहुँचने से कितना गौरान्वित व सर बुलन्द होगा!।
क्या इस के अलावा और कुछ है कि जो इंसान दुनिया के सब से ख़ूबसूरत मंज़र को देखने का मुन्तज़िर हो, वह ख़ुद को अच्छाईयों से सुसज्जित करे और बुराईयों व बद अखलाक़ियों से दूर रहे और इन्तेज़ार के ज़माने में अपनी फ़िक्र व क्रिया कलापों की हिफ़ाज़त करता रहे, वरना आहिस्ता आहिस्ता बुराइयों के जाल में फँस जायेगा और उसके व इमाम के बीच फासला ज़्यादा होता जायेगा। ये एक ऐसी हक़ीक़त है जो ख़तरों से परिचित करने वाले इमाम (अ. स.) की हदीस में में बयान हुई है। यह हदीस निम्न लिखित है।
[2] ”فَمَا یَحْبِسُنَا عَنْہُمْ إلاَّ مَا یَتَّصِلُ بِنَا مِمَّا نُکْرِہُہُ وَ لاٰ نُوٴثِرُہُ مِنْہُم“
कोई भी चीज़ हमें हमारे शिओं से जुदा नहीं करती, मगर उनके वह बुरे काम जो हमारे पास पहुँचते हैं। न हम उन कामो को पसन्द करते हैं और न शिओं से उनको करने की उम्मीद रखते हैं।
इन्तेज़ार करने वालों की आखिरी तमन्ना यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की वह विश्वव्यापी हुकूमत जो न्याय व समानता पर आधारित होगी, उसमें उनका भी कुछ हिस्सा हो और अल्लाह की उस आखरी हुज्जत की मदद करने का गौरव उन्हें भी प्राप्त हो। लेकिन यह महान सफलता व गौरव ख़ुद को बनाने संवारने और उच्च सदव्यवहार से सुसज्जित हुए बग़ैर संभव नहीं है।
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) फरमाते हैं कि
”مَنْ سَرَّہُ اٴنْ یَکُوْنَ مِنْ اٴصْحَابِ الْقَائِمِ فَلْیَنْتَظِرْ وَ لِیَعْمَلْ بِالْوَرَعِ وَ مَحَاسِنِ الاٴخْلاَقِ وَ ہُوَ مُنْتَظِر“[3]
जो इंसान हज़रत क़ाइम (अ. स.) के मददगारों में शामिल होना चाहता हो, उसे तक़वे, पर्हेज़गारी और अच्छे अखलाक़ से सुसज्जित हो कर इमाम के ज़हूर का इन्तेज़ार करना चाहिए।