अहलेबैत (अ) से नक़्ल होने वाली रिवायतों में से कुछ रिवायतों में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा के मुसहफ़ की बात कही गई है, और एक किताब की आपकी तरफ़ निस्बत दी गई है जैसा कि मोहम्मद बिन मुस्लिम इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत करते हैं:
फ़ातेमा (स) ने एक मुसहफ़ छोड़ा है जो क़ुरआन नहीं है (1)
शिया स्रोतों में इस प्रकार की रिवायतों के आने के कारण कुछ कीना रखने वालों और विरोधी लोगों को यह मौक़ा मिल गया कि वह यह कहने लगें कि शियों का क़ुरआन मुसलमानों से अलग है और वह एक दूसरे क़ुरआन पर विश्वास रखते हैं क्योंकि मुसहफ़ का शब्द केवल क़ुरआन के लिए प्रयोग किया जाता है।
इसी प्रकार कुछ रिवायतों में आया है कि वह (फ़ातेमा का मुसहफ़) तुम्हारे क़ुरआन की भाति है और उससे तीन गुना अधिक है, इसी लिए यह विरोधी कहने लगे कि शियों का यह विश्वास है कि यह क़ुरआन जो मुसलमानों के बीच है वह वास्तविक क़ुरआन नहीं है और इस क़ुरआन में से बहुत कुछ समाप्त हो चुका है।
लेकिन इन विरोधियों ने सारी हदीसों पर ध्यान नहीं दिया है क्योंकि ख़ुद अहलेबैत (अ) ने मुसहफ़े फ़ातेमा ने अन्तर्गत आने वाली रिवायतों में इन नुक्ते को स्पष्ट किया है कि यह मुसहफ़ क़ुरआन नहीं है, यहां तक कि उसमें क़ुरआन की एक भी आयत नही है।
बहर हाल कोई भी कारण, इस ग़लत सोंच ने हमको यह लेख लिखने पर विवश किया ताकि हम इस सोंच को समाप्त कर सकें और लोगों को यह बता सकें कि शिया किसी भी दूसरे क़ुरआन के बारे में अक़ीदा नहीं रखते हैं, और लोगों के सामने मुसहफ़े फ़ातेमा की वास्विक्ता को रौशन कर सकें।
मुसहफ़ का अर्थ
शब्दकोश में मुसहफ़ उस लेख को कहते हैं जो किसी जिल्द में हो
जैसा कि इब्नो मंज़ूर कहता है
मुसहफ़ः लिखी हुई चीज़ है जो दो जिल्दों के बीच हो (2)
इससे पता चलता है कि अरबी भाषा में मुसहफ़ के शब्द का प्रयोग हर प्रकार की किताब के लिए होता है और यह विशेष नहीं है क़ुरआन के लिए।
मुसहफ़ शब्द क़ुरआन के आने के बाद
इसमें कोई संदेह नहीं है कि क़ुरआन के नाज़िल होने के बाद इस शब्द का बहुत उपयोग किया गया है, यहां तक कि यह शब्द क़ुरआन के लिए ही प्रसिद्ध हो गया है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसका शाब्दिक अर्थ बदल गया है, बल्कि यह क़ुरआन के अतिरिक्त किसी दूसरी पुस्तक के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
मुसहफ़ शब्द क़ुरआन और हदीस में
क़ुरआन का अध्ययन करने से हमको पता चलता है कि क़ुरआन में मुसहफ़ शब्द का प्रयोग क़ुरआन के मानी में नहीं किया गया है, जब्कि क़ुरआन के लिए स्वंय क़ुरआन में पचास से अधिक शब्दो का इस्तेमाल किया गया है लेकिन कहीं पर भी "क़ुरआन में क़ुरआन को मुसहफ़ नहीं कहा गया है"।
इसी प्रकार हदीसों में भी देखने से पता चलता है कि "पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसहफ़ शब्द को क़ुरआन के नाम के तौर पर कहीं भी प्रयोग नहीं किया है"।
इतिहास कहता है कि मुसहफ़ शब्द का प्रयोग क़ुरआन के लिए पहली बार पहले ख़लीफ़ा अबूबक्र के युग में किया गया है।
ज़रकशी कहता है
जब अबूबक्र ने क़ुरआन को एकत्र कर लिया, तो आदेश दिया कि इसका कोई नाम रखा जाए, कुछ लोगों ने उसको इन्जील कहा, जिस पर वह राज़ी नही हुए, कुछ ने उसको सिफ़्र कहा जिस पर यहूदियों के कारण वह राज़ी नहीं हुए, तब इब्ने मसऊद ने कहाः मैने हबशा में एक पुस्तक को देखा जिसको वह लोग मुसहफ़ कहते थे तो क़ुरआन का नाम मुसहफ़ रखा गया। (3)
मुसहफ़े फ़ातेमा का लिखने वाला कौन है?
रिवायतों से पता चलता है कि मुसहफ़े फ़ातेमा को लिखने वाले अमीरुल मोमिनीन हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम थे।
हम्माद बिन उस्मान ने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से मुसहफ़े फ़ातेमा के बारे में प्रश्न किया तो आपने उनके उत्तर में कहाः अमीरुल मोमिनीन (अ) जो कुछ भी सुनते थे उसको लिखते थे यहां तक कि वह मुसहफ़ बन गया। (4)
अबू उबैदा ने भी इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः अली (अ) उसको लिखते थे और यह वही मुसहफ़े फ़ातेमा है। (5)
मुसहफ़े फ़ातेमा इतिहास की किताब
इसमें कोई संदेह नहीं कि मुसहफ़े फ़ातेमा में दो चीज़ें नहीं पाई जाती थी एक थी क़ुरआन और दूसरे शरई अहकाम
1. क़ुरआनः
बहुत सी वह रिवायतें जिनमें मुसहफ़े फ़ातेमा के बारे में कहा गया है, उनमें स्पष्ट शब्दों में इस नुक्ते की तरफ़ इशारा किया गया है कि यह क़ुरआन नहीं है, बल्कि उसमें क़ुरआन की एक भी आयत नहीं है।
मोहम्मद बिन मुस्लिम इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करते हैं फ़ातेमा (अ) ने मुसहफ़ छोड़ा जो क़ुरआन नहीं है। (6)
2. शरई अहकाम
ना केवल यह कि मुसहफ़े फ़ातेमा में क़ुरआन की आयतें नहीं हैं बल्कि उसमें किसी भी प्रकार का कोई शरई हुक्म भी नहीं पाया जाता हैं उसमें किसी भी चीज़ के वाजिब, हराम, मुस्तहेब, मकरूह या मुबाह होने के बारे में नही बताया गया है।
इमाम सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं याद रखो कि मुसहफ़े फ़ातेमा में हलाल और हराम का एक भी आदेश नहीं है....। (7)
मुसहफ़े फ़ातेमा में पाई जाने वाली कुछ चीज़ें
किसी भी रिवायत में मुसहफ़े फ़ातेमा में पाई जाने वाली सारी चीज़ों के बारे में बयान नहीं किया गया है, लेकिन सारी रिवायतों को एक साथ रखने पर पता चलता है कि इस मुसहफ़ में यह कुछ चीज़ें पाई जाती थीं।
1. पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्थान
अबू उबैदा इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करता हैः फ़ातेमा (स) अपने पिता के स्वर्गवास के बाद 75 दिन तक जीवित रहीं। इन दिनों में अपने पिता से दूरी के कारण आप बहुत दुखी थीं, जिब्रईल लगातार उन पर नाज़िल होते थे और उनके पिता के निधन पर शोक व्यक्त करते थे और उनको सात्वना देते थे और इसी प्रकार आपके पिता की कुछ श्रेष्ठताओं और महान स्थान को बयान किया करते थे... अली (अ) उनको लिखते थे और यह मुसहफ़े फ़ातेमा है। (8)
2. फ़ातेमा की नस्ल का भविष्य
इसी रिवायत में आया हैः... और आपको सूचना देते थे कि उनके बाद उनकी नस्ल के साथ क्या होगा।
3. भविष्य में होने वाली घटनाओं का ज्ञान
इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत होने वाली एक हदीस में आया है कि आपने फ़रमायाः और मुसहफ़े फ़ातेमा में वह बातें हैं जो भविष्य में घटित होंगी। (9)
इसी प्रकार हम्माद बिन ईसा से इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत होने वाली एक हदीस में है कि आपने फ़रमायाः जान लो! उसमें (मुसहफ़े फ़ातेमा) हलाल और हराम नहीं है, बल्कि उसमें उन चीज़ों का ज्ञान है जो भविष्य में घटित होंगी। (10)
4. नबियों और वसियों के नाम
इमाम (अ) से एक रिवायत हुई है जिसमें आपने फ़रमायाः कोई भी नबी या वसी नहीं है मगर यह कि उसका नाम एक किताब में है जो मेरे पास है, यानी मुसहफ़े फ़ातेमा (11)
5. बादशाहों और उनके पिता का नाम
इमाम सादिक़ (अ) से नक़्ल होने वाली रिवायत में इस प्रकार आया हैः और मुसहफ़े फ़ातेमा में दुनिया से सम्बंधित चीज़ों का ज्ञान है, उन लोगों के नाम हैं जो क़यामत तक हुकूमत करेंगे। (12)
दूसरी हदीस में उनके और उनके पिता के नाम को भी बयान किया गया है। (13)
6. फ़ातेमा ज़हरा की वसीयत
सुलैमान बिन ख़ालिद इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः मुसहफ़े फ़ातेमा को लाओ, क्योंकि उसमें फ़ातेमा (स) की वसीयत है। (14)
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(1) बसाएरुद दराजात पेज 176
(2) लेसानुल अरब, माद्दा सोहफ़ और...
(3) अल बुरहान जिल्द 1, पेज 281
(4) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 240
(5) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 241
(6) बसाएरुद दराजात पेज 176
(7) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 240
(8) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 241
(9) बिहारुल अनवार जिल्द 26, पेज 18
(10) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पोज 240
(11) बिहारुल अनवार जिल्द 47, पोज 32
(12) बिहारुल अनवार जिल्द 26, पेज 18
(13) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 242
(14) उसूले काफ़ी जिल्द 1, पेज 241