हमारा अक़ीदह है कि इस दुनिया और आख़ेरत के बीच एक और जहान है जिसे “बरज़ख़” कहते हैं।मरने के बाद हर इँसान की रूह क़ियामत तक इसी आलमे बरज़ख़ में रहती है।“व मिन वराइहिम बरज़ख़ुन इला यौमि युबअसूना। [115]” और उन के पीछे (मौत के बाद) आलमे बरज़ख़ है जो क़ियामत के दिन तक जारी रहने वाला है
हमें उस जहान के जुज़यात के बारे में ज़्यादा इल्म नही है और न ही हम उस के बारे ज़्यादा जान ने की क़ूवत रखते हैं, अलबत्ता यह जानते हैं कि उन नेक व सालेह अफ़राद की रूहें जिन के मर्तबे बलन्द है(जैसे शोहदा की रूहों) उस जहान में अल्लाह की नेअमतों से माला माल रहते हैं। “व ला तहसाबन्ना अल्लज़ीना क़ुतिलू फ़ी सबीलि अल्लाहि अमवातन वल अहया इन्दा रब्बि हिम युरज़क़ूना।”[116] जो लोग राहे ख़ुदा में शहीद हो गये उन के बारे में हर गिज़ यह ख़याल न करना कि वह मर गये हैं, नही वह ज़िन्दा हैं और अपने रब की तरफ़ से रिज़्क़ पाते हैं।
और इसी तरह से ज़ालिम, ताग़ूत और उन के हामियों की रूहें उस जहान में अज़ाब में मुबतला रहती हैं। जिस तरह क़ुरआने करीम ने फ़िरोन व आले फ़िरोन के बारे मेंबयान फ़रमाया है कि “अन्नारु युअरज़ूना अलैहा ग़ुदुव्वन व अशिय्यन व यौमा तक़ूमु अस्साअतु अदख़िलू आला फ़िरअवना अशद्दा अलअज़ाब।”[117] यानी उन का अज़ाब (बरज़ख़ में )आग (जहन्नम) है जिस में उन को सुबह शाम जलाया जाता है और जिस दिन क़ियामत वाक़े होगी उस दिन (फ़रमान) गिया जायेगा कि आले फ़िरोन को सख़्त तरीन आज़ाब में दाख़िल करो।
लेकिन वह तीसरा गिरोह जिन के गुनाह कम है न वह नेअमतें पाने वालो में हैं और न अज़ाब भुगत ने वालों में बल्कि वह लोग एक क़िस्म की नीँद में रहते हैं और रोज़े क़ियामत बेदार हों गे। “व यौमा त़कूमु अस्सअतु युक़सिमु अलमुजरिमूना मा लबिसू ग़ैरा साअतिन .........व क़ाला अल्लज़ीना ऊतुल इल्मा व अलईमाना लक़द लबिसतुम फ़ी किताबि अल्लाहि इला यौमि अलबअसि फ़हाज़ा यौमु अलबअसि व लकिन्ना कुम कुन्तुम ला तअलमूना।”[118] यानी जिस दिन क़ियामत बरपा होगी उस दिन गुनाहगार लोग क़सम खा-खा कर कहेंगे कि वह आलमें बरज़ख़ मे एक घन्टे से ज़्यादा नही रुके........,और जिन लोगों को इल्म व ईमान दिया गया है वह गुनाहगारों को मुख़ातब करते हुए कहें गे कि तुम अल्लाह के हुक्म से क़ियामत तक (आलमे बरज़ख़ में) रहे हो, और आज रोज़े क़ियामत है लेकिन तुम को इस का इल्म नही है।
इस्लामी रिवायात में भी इस का ज़िक्र मौजूद है जैसे पैग़म्बरे अकरम (स.) की हदीस है कि “अलक़बरु रोज़तु मिन रियाज़िन जन्नति अव हुफ़रतु मिनहुफ़रि अन्नीरानि। ”[119] कब्र या जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ है या फिर जहन्नम के गढ़ों में से एक गढ़ा I