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अल्लामा इक़बाल की ख़ुदी

अल्लामा इक़बाल की ख़ुदी

अल्लामा इक़बाद उन शायरों और विचारकों में शामिल हैं जिनकी ख्याति भौगोलिक सीमाओं में नहीं समा सकी और उन्होंने क्षेत्र के स्तर से ऊपर उठकर अपनी पहचान बनाई।

अल्लामा इक़बाल ने फ़ारसी भाषा में भी अपनी कला और दर्शनशास्त्र के कौशल दिखाए हैं। अल्लामा इक़बाल के समस्त विचार, उनके ख़ुदी अर्थात स्वतः के दृष्टिकोण से निकले हैं। स्पष्ट सी बात है कि जब तक उनके दृष्टिकोण के मूल बिंदु अर्थात ख़ुदी के अर्थ को नहीं समझा जाएगा तब तक उनके विचारों को पूर्ण रूप से नहीं समझा जा सकता। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का यह प्रख्यात कथन कि जिसने अपने आप को पहचान लिया उसने अपने पालनहार को पहचान लिया, इक़बाल के ख़ुदी के दृष्टिकोण का आधार है। उनके विचार में अपने आपको पहचानना मनुष्य की एक बड़ी विशेषता है और इसी बात को उन्होंने ख़ुदी के नाम से प्रस्तुत किया है। ख़ुदी को देखा या छुआ नहीं जा सकता बल्कि आंतरिक अनुभवों के माध्यम से इसका आभास किया जा सकता है।

نغمه ام از زخمه بی پرواستم

من نوای شاعر فرداستم

عصر من داننده اسرار نیست

یوسف من بهر این بازار نیست

نا امیدستم ز یاران قدیم

طور من سوزد که می آید کلیم

نغمه من از جهان دیگر است

این جرس را کاروان دیگر است

ای بسا شاعر که بعد از مرگ زاد

چشم خود بربست و چشم ما گشاد

मैं गीत हूं, मुझे घाव की कोई परवाह नहीं है

मैं कल के कवि की आवाज़ हूं

मेरा काल, रहस्यों का ज्ञानी नहीं है

मेरा युसुफ़ इस बाज़ार के लिए नहीं है

मैं अपने प्राचीन मित्रों की ओर से निराश हूं

मेरा तूर जल रहा है कि मूसा आने वाले हैं

मेरा गीत किसी दूसरे संसार का है

इस घंटी का कारवान कोई दूसरा है

कितने ऐसे कवि हैं जो मरने के बाद जीवित होते हैं

अपनी आंखें बंद कर लेते हैं और हमारी आंखें खोल देते हैं

अल्लामा इक़बाल का दृष्टिकोण, ख़ुदी के अटल व वैज्ञानिक प्रभावों के वर्णन पर आधारित है। ख़ुदी एक मानवीय व सामाजिक अर्थ है जिसे दार्शनिक विचारों के ढांचे में प्रस्तुत व वर्णित किया गया है। इक़बाल के विचार में ख़ुदी, आत्मबोध, स्वयं के भीतर झांकने और अपने व्यक्तित्व को पहचानने का नाम है। इस संबंध में उन्होंने अपने विचारों को एक वैचारिक ढांचे में प्रस्तुत किए हैं। दूसरे शब्दों में ख़ुदी की कल्पना पहले एक सामाजिक व क्रांतिकारी विचार के रूप में इक़बाल के मन में आई और इसके बाद उन्होंने इसे दर्शनशास्त्र का वस्त्र पहनाया।

अल्लामा इक़बाल ख़ुदी का स्थान, इस्लामी समाजों विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप में रिक्त पाया। इस विचार को उन्होंने अपने देशवासियों के भीतर साहस, शौर्य व ईमान की आत्मा फूंकने के लिए प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि भारत के लोगों विशेष कर मुसलमानों को स्वयं को पहचानना चाहिए और अपने आप पर ही निर्भर रहना चाहिए। इक़बाल की ख़ुदी का स्रोत संकल्प तथा निर्माण की शक्ति है और इस आधार शिला को प्रेम से सुदृढ़ता प्राप्त होती है।

इक़बाल कहते हैं कि अपने आप से अनभिज्ञ न रहना, बाहरी लोगों से प्रतिरोध की मूल शर्त है। आत्मबोध मनुष्य को आवश्यकतामुकत बना देता है जबकि दूसरों के सामने हाथ फैलाने से मनुष्य की ख़ुदी या उसका अहं तुच्छ हो जाता है। ख़ुदी की आधारशिला, आत्मविश्वास, प्रेम, संकल्प एवं आत्मबोध पर रखी गई है कि जो संसार की सभी गुप्त एवं प्रकट शक्तियों को अपने नियंत्रण में ले सकती है।

ای فراهم کرده از شیران خراج

گشته ای روبه مزاج از احتیاج

می رباید رفعت از فکر بلند

می کُشد شمع خیال ارجمند

از خُم هستی می گلفام گیر

نقد خود از کیسه ایام گیر

از سؤال آشفته اجزای خودی

بی تجلی نخل سینای خودی

مشت خاک خویش را از هم مپاش

مثل مَه رزق خود از پهلو تراش

 

हे बाघों से भी लगान प्राप्त करने वाले

दूसरों के सामने हाथ फैलाने से तू हीन हो गया है

आवश्यकता, उच्च विचारों से उनकी महानता को छीन लेती है

महान विचारों की दिए को बुझा देती है

संसार की सुराही से सुंदर मदिरा प्राप्त कर

दिन-रात के झोले से नगद धन लेले

मांगने से ख़ुदी के भाग बिखर जाते हैं

और ख़ुदी के पर्वत के पेड़ का सौंदर्य समाप्त हो जाता है

अपनी मिट्टी को बिखराओ नहीं

चंद्रमा की भांति अपनी आजीविका स्वयं प्राप्त करो
 

इक़बाल इस बात पर बल देते हुए कि ख़ुदी एक अटल वास्तविकता है, कहते हैं कि मनुष्य यदि आंखें खोलकर अपने भीतर देखे तो उसे ख़ुदी की अटल वास्तविकता दिखाई दे जाएगी कि जो उसके चरित्र का वास्तविक आधार है। उनके ख़ुदी के विचार के अनुसार आत्मबोध, विभिन्न ऐतिहासिक व सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न रूपों में सामने आता है। इस आधार पर विभिन्न प्रकार की ख़ुदी की शिक्षा-दीक्षा, बाहरी तत्वों अर्थात सामाजिक तत्वों से प्रभावित होती है।

वे, व्यक्ति तथा समाज में ख़ुदी को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रेम व लगाव को आवश्यक मानते हैं क्योंकि केवल प्रेम के माध्यम से ही ख़ुदी का अस्तित्व प्रकट होता है और परिपूर्णता तक पहुंचता है। अतः जो लोग और जो समाज अपनी ख़ुदी को सुरक्षित रखना चाहते हैं उनके मन और हृदय में प्रेम होना चाहिए। वे कहते हैं। "प्रेम ने ही पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को अपनी पैग़म्बरी का दायित्व निभाने के लिए सुदृढ़ बनाया और उन्हें इस बात में सफलता मिली कि वे धर्म की कुंजी से मानव जाति के समक्ष बेहतर जीवन व संसार का द्वार खोलें।"

نقطه نوری که نام او خودی است

زیر خاک ما شرار زندگی است

از محبت می شود پاینده تر

زنده تر سوزنده تر تابنده تر

فطرت او آتش اندوزد ز عشق

عالم افروزی بیاموزد ز عشق

 

प्रकाश का वह बिंदु, जिसका नाम ख़ुदी है,

जो हमारी मिट्टी के नीचे, जीवन की ज्वाला है,

वह प्रेम से अधिक सुदृढ़ होता है,

अधिक जीवित, अधिक प्रज्वलित अधिक प्रकाशमान होता है

उसकी प्रवृत्ति प्रेम से अग्नी संजोती है

प्रेम से ही वह संसार को प्रकाशमान बनाना सीखता है

इक़बाल का कहना है कि ख़ुदी ही संसार की वास्तविकता है। वे इस बारे में कहते हैं। " ख़ुदी, जीवन का ध्रुव है, ख़ुदी, कल्पना व भ्रम नहीं बल्कि एक अटल वास्तविकता है। इसकी विशेषताएं, विभिन्न हैं तथा अच्छाई व बुराई तथा बल व कमज़ोरी सभी इसकी किरणें हैं। ख़ुदी, जितनी सुदृढ़ होगी, अस्तित्व के आयाम भी उतने ही बलवान एवं जीवनदायक होंगे।"

پیکر هستی ز آثار خودی است

هرچه می بینی ز اسرار خودی است

خویشتن را چون خودی بیدار کرد

آشکارا عالم پندار کرد

صد جهان پوشیده اندر ذات او

غیر او پیداست از اثبات او

در جهان تخم خصومت کاشته است

خویشتن را غیر خود پنداشته است

सृष्टि का अस्तित्व, ख़ुदी के परिणामों में से है

जो कुछ तुम्हें दिखाई दे रहा है वह ख़ुदी के रहस्यों में से है

जब ख़ुदी ने अंतरात्मा को जागृत कर दिया

तो कल्पना के संसार को साक्षात कर दिया

ख़ुदी के भीतर सैकड़ों संसार निहित हैं

इसके अस्तित्व से ही इसके विलोम का पता चलता है

इसने संसार में शत्रुता का बीज बोया है

अपने आपको, अपने से अलग समझा है

 

इक़बाल की दृष्टि में ख़ुदी एकांत में और अलग-थलग नहीं बल्कि केवल समाज में और अन्य प्रकार की ख़ुदियों के साथ ही विकसित हो सकती है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अकेले ही अपनी सभी इच्छाओं को व्यवहारिक नहीं बना सकता। अपनी इच्छाओं को व्यवहारिक बनाने के लिए उसे समाज के लोगों के साथ रहना तथा सामाजिक संस्कृति व मान्यताओं से स्वयं को समन्वित करना होगा। इक़बाल के दृष्टिकोण के अनुसार ख़ुदी, समाज का अटूट अंग है और इसे सार्वजनिक रूप से ही पहचाना जा सकता है।

इक़बाल कहते हैं कि ख़ुदी तीन चरणों में परिपूर्णता तक पहुंचती है, पहला चरण धर्म तथा ईश्वरीय आदेशों का संपूर्ण पालन करने पर आधारित है जबकि दूसरे चरण में मनुष्य को अपनी आंतरिक पवित्रता की रक्षा करनी चाहिए और धर्म ने जिन बातों को वर्जित घोषित किया है उनसे दूर रहना चाहिए। यदि सही ढंग से इन दोनों चरणों का पालन हो गया तो ईश्वरीय उत्तरदायित्व का स्थान आता है कि जो ख़ुदी के प्रशिक्षण का तीसरा चरण है। इस चरण में मनुष्य, संसार में ईश्वर का उत्तराधिकारी बन जाता है और पूरा संसार उसके समक्ष नतमस्तक हो जाता है। जब कोई इस चरण तक पहुंच जाए तो अन्य लोगों के लिए आवश्यक है कि उसका अनुसरण करें। इक़बाल के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस चरण का सबसे उत्तम उदाहरण हैं।

वे कहते हैं कि मनुष्य का सबसे उच्च लक्ष्य संसार में ईश्वरीय पताका फहराना, सत्य के मार्ग में बलिदान देना, जात-पात, स्थान, भाषा तथा वर्ण की अनदेखी करते हुए सभी लोगों के बीच एकता व एकजुटता उत्पन्न करना, होना चाहिए। अल्लामा इक़बाल को सबसे अधिक दुख इस बात का है कि मुसलमान अपने आपको खो चुके हैं, जो वस्तु उनके पास पहले ही से मौजूद है, उसे दूसरों के पास खोज रहे हैं तथा अपनी धार्मिक शिक्षाओं व सृष्टि के ध्येय से दूर हो चुके हैं।

علم حق را در قفا انداختی

بهر نانی نقد دین درباختی

گرم رو در جستجوی سرمه ای

واقف از چشم سیاه خود نه ای

तूने सत्य के ज्ञान को पीछे फेंक दिया है

एक रोटी के लिए, धर्म को बेच दिया है

काजल की खोज में इधर-उधर भटक रहा है

तूझे अपनी सुंदर काली आंखों के बारे में पता ही नहीं है

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