इल्मी, इज्तेमाई व रूहानी कामयाबियों को हासिल करने के लिये सब को सब्र व तहम्मुल की ज़रूरत होती है। तमाम कामयाबियाँ एक दिन में ही हासिल नही की जा सकती, बल्कि बरसों तक खूने दिल बहाते हुए सब्र व तहम्मुल के साथ मुशिकिलों से निपटते हुए आगे बढ़ना पड़ता है। जो लोग दुनिया परस्त थे वह मुद्दतों खूने दिल बहा कर मुताद्दिद दरों पर सलामी देकर ख़ुद को कही पहुचाँ सके हैं।
इल्मी कामलात के मैदान में भी पहले उम्र का एक बड़ा हिस्सा इल्म हासिल करने में सर्फ़ करना पड़ता है, तब इंसान इल्म की बलन्द मंज़िलों तक पहुँच पाता है। इसी तरह मअनवी मंज़िलों के लिये भी बिला शुब्हा एक मुद्दत तक अपने नफ़्स को मारने और तहम्मुल व बुर्दबारी की ज़रूरत होती है, तब कहीं जाकर अल्लाह की तौफ़ीक़ के नतीजे में मअनवी मक़ामात हासिल हो पाते हैं।