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पैग़म्बरे इस्लाम (स) और इमाम सादिक़ (अ) के जन्म दिवस

पैग़म्बरे इस्लाम (स) और इमाम सादिक़ (अ) के जन्म दिवस

वर्षों का समय बीत रहा था जब संसार सूखी ज़मीन की भांति महान ईश्वर की असीम कृपा की वर्षा की प्रतीक्षा में था। ज़मीन ऊंच नीच, भेदभाव, जात- पात और अंध विश्वासों के दलदल में परिवर्तित हो गयी थी। अंततः वह रात आ ही गयी जब महान ईश्वर ने अपनी असीम कृपा की वर्षा हेजाज़ की भूमि पर कर दी। पैग़म्बरे इस्लाम के पावन जन्म से भेदभाव, सूद, चोरी, पक्षपात और नाना प्रकार की बुराइयों से भरा वातावरण प्रेम, दया और सोच विचार के बगीचे में परिवर्तित हो गया। ईश्वरीय संदेश लाने वाले का जन्म पवित्र नगर मक्का के एक मोमिन परिवार में १७ रबीउल अव्वल में हुआ था। उन्होंने अपने पावन अस्तित्व से पूरे संसार को प्रकाश और सुगंध से भर दिया।

 
पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म दिवस इंसानों के जीवन में समाप्त न होने वाली बरकत व अनुकंपाओं की याद दिलाता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने आत्माहीन लोगों के जीवन में बसंत ऋतु की हवा की भांति एकेश्वरवाद की सुगंध बिखेर दी और निश्चेत व बेखबर लोगों को जागरुक बना दिया। समय नहीं बीता था कि अरब समाज में व्याप्त अंधकार व अज्ञानता के वातावरण को पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ईश्वरीय ज्ञान के प्रकाश से मिटा दिया। दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम ने मानव समाज में एकेश्वरवाद, न्याय, प्रेम, भाई चारे और समानता की सुगंध बिखेर दी।


पैग़म्बरे इस्लाम के प्रयास से ईश्वरीय धर्म इस्लाम के उदयकाल में अरब समाज में आमूल चूल परिवर्तन हुए। समाज में श्रेष्ठता का मापदंड बदल गया। पैग़म्बरे इस्लाम से पहले अरब समाज में धनी व पूंजीपति लोगों को बड़ा समझा जाता था, गोरे लोगों को काले व दासों पर श्रेष्ठता प्राप्त थी परंतु पैगम्बरे इस्लाम ने श्रेष्ठता के मापदंड को परिवर्तित कर दिया। पैग़म्बरे इस्लाम और ईश्वरीय धर्म इस्लाम की दृष्टि में श्रेष्ठ वह व्यक्ति है जिसका तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय सबसे अधिक हो चाहे वह गोरा हो या काला धनी हो या निर्धन स्वतंत्र हो या दास।


पैग़म्बरे इस्लाम १० वर्षों तक पवित्र नगर मदीना में रहे और वहां पर उन्होंने जिस सरकार की आधारशिला रखी थी वह पूरे मानव इतिहास में अनउदाहरणीय है। पैग़म्बरे इस्लाम ने जिस सरकार की बुनियाद रखी थी वह समस्त स्थानों और समस्त कालों के लिए आदर्श थी। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम ने जिस सरकार की बुनियाद रखी उसका उद्देश्य मनुष्य को परिपूर्णता तक पहुंचाना था।


जर्मनी की मध्यपूर्व विशेषज्ञ श्रीमती Annemarie schimmel पैग़म्बरे इस्लाम के कार्य की महानता के बारे में लिखती हैं” इंसान के आध्यात्मिक परिवर्तन में पैग़म्बरे इस्लाम का प्रयास जाना पहचाना है। पैग़म्बरे इस्लाम ने शरीर के बजाये मानवीय आत्मा को जीवित किया। उन्होंने अरब समाज के लोगों की अज्ञानता भरी सोचों व विचारों को परिवर्तित कर दिया। ज्ञान को सार्वजनिक किया और ईश्वर की ओर से शुभ सूचना दी कि इंसान/ सूरज, चांद, आसमान और ज़मीन को अपने नियंत्रण में कर सकता है। इस आधार पर इस प्रकार की महान हस्ती व मार्गदर्शक की प्रशंसा, हर इंसान के लिए सौभाग्य उपहार में लाती है”


वर्तमान समय की वास्तविकताएं व परिस्थितियां इस बात की सूचक हैं कि वास्तविक शांति हर समय से अधिक आज के इंसान की आवश्यकता है। दिन प्रतिदिन विनाशकारी शस्त्रों के उत्पाद में वृद्धि, वर्चस्व के लिए होने वाले युद्ध, अंतरराष्ट्रीय मंडियों में अस्थिरता आदि वे चीज़ें हैं जो विश्व की शांति व सुरक्षा के लिए चुनौती बनी हुई हैं। इस समय पश्चिम के वर्चस्वादी देश कमज़ोर देशों की राष्ट्रीय सम्पत्तियों को लूट रहे हैं। परिवारों के आधारों का कमज़ोर हो जाना, व्याकुलता, अवसाद, अपराध, हिंसा, मादक पदार्थ और मानव तस्करी जैसी बुराइयों ने विश्व की सुरक्षा को गम्भीर खतरे में डाल दिया है।


यद्यपि आज की दुनिया ने तकनीक के क्षेत्र में बहुत प्रगति कर ली है परंतु साथ ही हम राष्ट्रों पर अत्याचार व अन्याय के भी साक्षी हैं।


आज के संकटग्रस्त विश्व को शांति व सुरक्षा को बहाल करने के लिए सबसे अधिक नैतिक व मानवीय मूल्यों की आवश्यकता है। आज के विश्व को सबसे अधिक उन मूल्यों की आवश्यकता है जिसे पैग़म्बरे इस्लाम ने मानवता को परिपूर्णता के चरम शिखर पर पहुंचाने के लिए पेश किया था।


एक ब्रितानी लेकर grorge Bernard shaw भी लिखते हैं” आज के विश्व को अपनी जटिल समस्याओं के समाधान के लिए हज़रत मोहम्मद जैसी हस्ती की आवश्यकता है ताकि आराम व शांति से हम एक प्याला काफी पी सकें। वर्तमान समय में युरोप ने हज़रत मोहम्मद की तत्वदर्शी शिक्षाओं को विस्तृत करना आरंभ कर दिया है और उसने हज़रत मोहम्मद के धर्म से प्रेम करना आरंभ कर दिया है और यूरोपवासी इसी प्रकार इस्लाम के संबंध में उस आरोप को रद्द कर रहे हैं जिसे मध्ययुगीन शताब्दी के लोगों ने इस्लाम पर लगाया था और हज़रत मोहम्मद का धर्म वह आधार होगा जिस पर शांति, सुरक्षा व कल्याण की बुनियाद रखी जायेगी और समस्याओं के समाधान का स्रोत बनेगा”


पैग़म्बरे इस्लाम अंतिम ईश्वरीय दूत हैं और उन्होंने अपनी शिक्षाओं को पेश करके यह बता दिया कि मनुष्य इनके अनुसरण से लोक- परलोक में अपने जीवन को सफल बना सकता है। आत्मिक व आध्यात्मिक शांति एसी चीज़ है जिसकी आवश्यकता आज के मनुष्य को हर समय से अधिक है। अगर इंसान धैर्य, संतोष, सदाचारिता, भरोसा, परोपकार, त्याग, न्याय और शांति व प्रेम जैसी पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाई गयी शिक्षाओं पर अमल करे तो लोक  -परलोक में अपने जीवन को सफल बना सकता है।


पवित्र कुरआन के सूरे आराफ की १५७ वीं आयत के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम को मानवता से भारी बोझ उठा लेने के लिए भेजा गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मोहम्मद ईश्वर के चुने हुए, ईश्वरीय संदेश और उसकी कृपा के दूत हैं वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण तुम्हारे लिए काफी है तुम पैग़म्बरे इस्लाम का अनुसरण करो कि जो सबसे पवित्र इंसान हैं क्योंकि उनका आचरण हर उस व्यक्ति के लिए आदर्श है जो उनका अनुपालन करना चाहे, ईश्वर के निकट सबसे अच्छा बंदा वह है जो उसके पैग़म्बर को आदर्श बनाये और उनके पद चिन्हों पर अमल करे”


ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के जन्म को मानव इतिहास के लिए ईश्वरीय कृपा मानते और फरमाते हैं कि कुरआन पैग़म्बरे इस्लाम के अस्तित्व को ब्रह्मांड के लिए कृपा मानता है। यह कृपा सीमित नहीं है इसमें शिक्षा- प्रशिक्षा, आत्म निरीक्षण, इंसानों का सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन, और इंसान का भौतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति शामिल है। यह चीज़ें उस समय के लोगों से विशेष नहीं हैं यह पूरे इतिहास से संबंधित हैं और उस उद्देश्य तक पहुंचने का मार्ग इस्लामी शिक्षाओं पर अमल है जिसे मनुष्य के लिए स्पष्ट कर दिया गया है”


इस आधार पर वर्तमान समय में धर्मगुरूओं, विद्वानों और समस्त बुद्धिजीवियों आदि से अपेक्षा है कि वे पैग़म्बरे इस्लाम की पावन जीवनी और पवित्र कुरआन की शिक्षाओं को विश्व वासियों के लिए बयान करेंगे और इंसानों को उनकी वास्तविक प्रवृत्ति की ओर वापस करेंगे। वास्तव में अगर पैग़म्बरे इस्लाम हमारे जीवन के आदर्श हो जायें तो हमारे जीवन का सारा कार्यक्रम ही बदल जायेगा। दूसरे शब्दों में अगर हम पैग़म्बरे इस्लाम के पावन जीवन को अपना आदर्श बना लें तो हम ही परिवर्तित हो जायेंगे। पैग़म्बरे इस्लाम के वास्तविक अनुयाइयों की संख्या जितनी अधिक होती जायेगी विश्व से अज्ञानता का अंधकार उतना ही मिटता जायेगा।   


आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का भी जन्म हुआ था इसलिए हम आज के कार्यक्रम में उनके जीवन के भी कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे।

 
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र नगर मदीना में हुआ था और ३४ वर्षों तक उन्होंने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में विभिन्न धर्मों के भिन्नाभिन्न विचार व मत अस्तित्व में आ गये थे और ये वे चीज़ें थीं जो समाज को इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं से दूर और लोगों को पथभ्रष्ट कर रही थीं परंतु इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के प्रकाशमयी मार्गदर्शन ने अज्ञानता के अंधकार को मिटा दिया और लोग वास्तविकता से अवगत हो गये। समस्त इस्लामी संप्रदाय इस बात पर एकमत हैं कि इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने बहुत से ज्ञानों को अस्तित्व प्रदान किया है यहां तक कि इतिहास में है कि लोगों की आस्थाओं के भिन्न होने के बावजूद इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के चार हज़ार शिष्य थे और उन्होंने उनके ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाया और उनके शिष्यों ने बहुत सारी किताबें लिखी हैं।


१२ रबीउल अव्वल से १७ रबीउल अव्वल तक एकता सप्ताह मनाया जाता है इसलिए हम सबसे पहले यह बयान करना चाहते हैं कि इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने एकता को मुसलमानों के मध्य समरसता का आधार बताया। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुसलमानों को एक दूसरे का भाई बताया। एक रवायत में इमाम के हवाले से आया है कि मुसलमान मुसलमानों के भाई हैं और वे एक दूसरे के मार्गदर्शक हैं एक मुसलमान दूसरे मुसलमान के साथ कदापि विश्वासघात नहीं करता उसके साथ धोखा नहीं करता है उस पर अत्याचार नहीं करता है उससे झूठ नहीं बोलता है और उसकी पीठ पीछे बुराई नहीं करता है”


इसी तरह इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम शीयों से सिफारिश करते हैं कि वे दूसरे धर्मों के मानने वालों के साथ अच्छा और शांतिपूर्ण संबंध रखें। इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की पावन जीवनी भी इस प्रकार से थी जो दूसरे धर्मों के मानने वालों के आकर्षण का कारण बनी। इस प्रकार से कि अबू हनीफा और सुन्नी मुसलमानों की दूसरी धार्मिक हस्तियों ने इमाम के साथ सहकारिता की। अबू हनीफा ने दो वर्षों तक इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम की ज्ञान की क्लासों में उपस्थित होकर उनके ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाया। अबू हनीफा ने बारम्बार इन दो वर्षों को गर्व के रूप में याद किया है। अबू हनीफा कहते हैं” अगर यह दो साल न होते तो नोअमान अर्थात अबू हनीफा बर्बाद हो जाता”


सुन्नी संप्रदाय मालेकी के धार्मिक नेता मालिक बिन अनस ने इमाम सादिक़ के बारे में कहा है कि किसी आंख ने नहीं देखा है, किसी कान ने नहीं सुना है और किसी के दिल में यह बात नहीं है जो ज्ञान, कमाल, उपासना और सदाचारिता में इमाम जाफर से बेहतर हो”


इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम एसे काल में रहते थे कि ज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में बहुत परिवर्तन हो रहे थे। विभिन्न संस्कृतियों के विचार इस्लामी जगत में प्रविष्ट हो रहे थे। इमाम सादिक अलैहिस्सलाम ने भी अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए ज्ञान के क्षेत्र में महाआंदोलन आरंभ किया। इमाम धर्म में सोच- विचार और वास्तविकता को समझने पर बहुत बल देते थे। इमाम फरमाते हैं” हमारे दोस्तों में से उसका कोई मूल्य नहीं है जो धर्म के बारे में सोच -विचार नहीं करता। अगर हमारा कोई अनुयाई अपने धर्म में सोच- विचार न करे और धार्मिक आदेशों से अवगत न हो तो वह हमारे विरोधियों का मोहताज होगा और जब वह उनका मोहताज होगा तो वे उसे गुमराही की ओर ले जायेंगे जबकि उसे पता भी नहीं चलेगा”


इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के अनुसार वास्तविकता को समझने का एक मार्ग पवित्र कुरआन है। पवित्र कुरआन की सैकड़ों आयतें वास्तविक पहचान की ओर संकेत करती हैं। उसका कारण यह है कि ईश्वरीय ग्रंथों में जो कुछ कहा गया है उसका स्रोत महान ईश्वर है और महान ईश्वर समस्त वास्तविकताओं को जानने का स्रोत है। इमाम सादिक अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” ईश्वर ने हर चीज़ को कुरआन में बयान कर दिया है ईश्वर की सौगन्ध जिस चीज़ की लोगों को आवश्यकता थी उसने उसमें कमी नहीं की है ताकि कोई यह न कहे कि अगर अमुक तथ्य सही होता तो कुरआन में उसका उल्लेख होता इसी प्रकार इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” कोई चीज़ नहीं है जिसके बारे में दो व्यक्ति मतभेद करें मगर यह कि उसका समाधान कुरआन में मौजूद है परंतु लोगों की बुद्धि उस तक नहीं पहुंच पाती है”


इसी तरह इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम रेंगने वाले, चौपायों और पक्षियों में मौजूद आश्चर्य चकित चीज़ों की ओर संकेत करते हैं।


पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर हम एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं और आज के कार्यक्रम का समापन हम पैग़म्बरे इस्लाम के एक स्वर्ण कथन से कर रहे हैं जिसमें आप फरमाते हैं” मुसलमान वह है जिसकी ज़बान और हाथ से दूसरे इंसान सुरक्षित रहें”

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