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Tuesday 26th of November 2024
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इस्लाम धर्म में विरासत का क़ानून

विरासतएक अति प्रचलित शब्द है जिसका भावार्थ होता है अपने वंशजों से कुछ प्राप्त करना, चाहे वो धन-सम्पत्ति के रूप में हो या आदर्श, उपदेश अथवा संस्कार के रूप में। चिकित्सा विज्ञान का विश्वास है कि बीमारियां भी विरासत में प्राप्त होती हैं।

परन्तु इस्लामी शरीअत में इसपारिभाषिकशब्द का उपयोग उस धन-सम्पत्ति के लिए किया जाता है जो मृत्यु के समय मृतक के स्वामित्व में रह गई हो और जिसे दूसरों में वितरित किया जाएगा। इस्लामी शरीअत में इस वितरण का पूर्ण क़ानून है जिसे इस्लामीविरासत का क़ानूनकहा जाता है।

इस्लाम ईश्वर द्वारा निर्धारित एक जीवनशैली का नाम है जो सम्पूर्ण मानव जीवन के लिए मार्गदर्शन और क़ानून प्रदान कर के एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक सुखी जीवन व्यतीत कर सके और उसकी समृद्धि और विकास के मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न न हो। क्योंकि परिवार समाज की आधारभूत इकाई है इसलिए इस्लाम ने उसे सुदृढ़ करने पर बहुत ज़ोर दिया है।

इस्लाम परिवार को एक संस्था के रूप में देखता है। जिस प्रकार एक संस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए सदस्यों में अधिकार व उत्तरदायित्व का निर्धारण आवश्यक है उसी प्रकार इस्लाम भी इस परिवार रूपी संस्था में प्रत्येक सदस्य के अधिकार व उत्तरदायित्व का निर्धारण करता है और उससे आशा करता है कि वे इस संस्था को सुचारू रूप से चलाने में अपना पूर्ण सहयोग देगा।

परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने से एक सदस्य अवश्य कम हो जाता है पर संस्था समाप्त नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में इस्लाम ये उचित समझता है और सुनिश्चित भी करता है कि मृतक की सम्पत्ति का वितरण संस्था के बाक़ी सदस्यों में उनके उत्तरदायित्व के अनुसार हो। अधिकार एवं उत्तरदायित्व के चयन में सदस्यों को आपसी कलह और संघर्ष से बचाने के लिए इस्लाम ने इसका निर्धारण स्वयं कर दिया और मृतक की सम्पत्ति के वितरण का एक विस्तृत क़ानून भी प्रदान कर दिया जिससे उसका वितरण सुचारू रूप से हो सके। इसी क़ानून कोइस्लामी विरासत के क़ानूनके नाम से जाना जाता है। पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयतों में विस्तार से इसका विवरण आया हैसूरा बक़रः, 2: 180, 240, सूरा निसा, 4: 7-12, 14, 19, 33, 176, सूरा माइदा, 5: 75, सूरा अहज़ाब, 33: 6

इन समस्त आयतों के गहन अध्ययन के पश्चात् इस्लामी विरासत के क़ानून और इससे सम्बन्धित अन्य विषयों को समझने के लिए निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है

1.इसका अनुपालन अनिवार्य है

इस्लामी विरासत के क़ानून के अनुपालन को मुसलमानों की इच्छा पर नहीं छोड़ा गया है बल्कि इसे अनिवार्य घोषित किया गया है। सूरा निसा 4 आयत 13-14 में विरासत के इस क़ानून को ‘‘ईश्वरीय सीमा’’ की संज्ञा दी गई है और इसका उल्लंघन करने वाले को सदैव नरक में डाले जाने के कठोर दंड की चेतावनी भी दी गई है। एक इस्लामी राष्ट्र का भी यह कर्तव्य होता है कि वो इसके अनुपालन को सुनिश्चित करे और उल्लंघन करने वाले को कठोर दंड दे।

2. समस्त सम्पत्ति का वितरण किया जाएगा

पवित्र क़ुरआन के अध्ययन से ये भी ज्ञात होता है कि मृतक की समस्त सम्पत्ति का वितरण किया जाएगा चाहे वो धनी रहा हो या निर्धन; एवं उसकी सम्पत्ति कम हो या अधिक। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) का निर्देश है कि मृतक की समस्त सम्पत्ति का वितरण हर परिस्थिति में अनिवार्य है चाहे उसने एक गज़ कपड़ा ही छोड़ा हो।

3.हर प्रकार की सम्पत्ति का वितरण किया जाएगा

सम्पत्ति चाहे चल हो या अचल, नक़दी हो या घर, खेत हों या मवेशी या कोई व्यवसाय, सभी का वितरण किया जाएगा और कुछ भी इस क़ानून से मुक्त नहीं रखा जा सकता। अर्थात् मृतक के स्वामित्व में जो भी सम्पत्ति होगी उसका वितरण अनिवार्य है चाहे वो किसी भी रूप में हो।

4. यह क़ानून मृत्यु के पश्चात ही लागू होता है

विरासत तो कहते हैं उस सम्पत्ति को जो मृत्यु के पश्चात किसी के स्वामित्व में रह गई हो। अतः जीवित व्यक्ति की किसी भी सम्पत्ति पर यह क़ानून लागू नहीं होता और उसे पूर्ण अधिकार है कि अपने जीवन में वो अपनी समस्त सम्पत्ति का क्रय-विक्रय अपनी इच्छानुसार कर सके। इस्लामी विरासत का क़ानून एक व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात ही कार्यान्वित होता है।

5. उत्तराधिकारी कौन होगा?

इस्लामी विरासत का क़ानून मृतक के परिवार के मात्र किसी एक सदस्य को समस्त सम्पत्ति का उत्तराधिकार प्रदान नहीं करता बल्कि मृतक से रिश्ते की निकटता के आधार पर सभी सदस्यों में इसका वितरण करता है। निकटतम संबंधी (पत्नी, पति, पुत्री, पुत्र, मां, बाप, दादा) को सबसे अधिक अंश प्राप्त होता है, उसके बाद उससे कम और उसके बाद उससे कम। यहां पर यह बात समझना अतिआवश्यक है कि इस्लाम में इस निकटता का निर्णय संबंधों की मधुरता या कटुता पर निर्भर नहीं करता बल्कि इसका निर्धारण रिश्तों के आधार पर होता है। संबंधों की कटुता के कारण किसी भी सदस्य को विरासत से वंचित नहीं किया जा सकता।

पवित्र क़ुरआन की आयतों का अध्ययन करने पर यह निष्कर्ष भी निकलता है कि इस परिवार रूपी संस्था के बाहर के किसी भी व्यक्ति का विरासत में कोई अंश नहीं होता और ऐसा कोई भी व्यक्ति इस उत्तराधिकार का दावा नहीं कर सकता।

6. स्त्री और पुरुष दोनों उत्तराधिकार में शामिल हैं

समाज में फैली भ्रांतियों के विपरीत इस्लाम स्त्री को परिवार रूपी संस्था का एक महत्वपूर्ण अंग मानता है और विरासत में उसे भी अधिकार देता है जैसे पुरुष को। वो चाहे मां के रूप में हो या पत्नी, बहन अथवा बेटी के रूप में, इस्लामी विरासत के क़ानून में उसके लिए ईश्वर की ओर से अंश निर्धारित कर दिए गए हैं और किसी को भी उसे इससे वंचित करने का अधिकार नहीं है। स्त्री और पुरुष दोनों के लिए अंश की मात्रा परिस्थितियों पर निर्भर करती है। कभी स्त्री को पुरुष का आधा अंश प्राप्त होता है, कभी बराबर और कभी पुरुष से दोगुना।

7. वसीयत

कोई व्यक्ति अगर यह इच्छा रखता हो कि उसकी मृत्यु के पश्चात् परिवार के बाहर के भी किसी व्यक्ति, संस्था अथवा समाज सेवा के लिए उसकी सम्पत्ति में से कुछ अंश दिया जाए तो इस्लाम उसे अधिकार देता है कि अपनी मृत्यु से पूर्व वो ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के पक्ष में वसीयत कर सकता है। इस्लाम मृतक द्वारा की गई वसीयत का आदर करता है और अपने अनुयायियों को आदेश देता है कि उसे कार्यान्वित किया जाए।

इस अधिकार को दुरुपयोग से बचाने के लिए इस्लाम ने इसकी सीमाएं भी निर्धारित की हैं और वो निम्नलिखित हैं :

(1) वसीयत समस्त सम्पत्ति के एक-तिहाई से अधिक की नहीं हो सकती।

(2) वसीयत उस संबंधी के पक्ष में नहीं हो सकती जिसके लिए पहले से ही विरासत के क़ानून में अंश निर्धारित कर दिया गया है।

यह दोनों प्रावधान इसलिए आवश्यक थे कि कहीं कोई व्यक्ति इसको अस्त्र के रूप में प्रयोग कर के अपने संबंधियों को उनके अधिकार से वंचित न कर सके या वो अपनी सम्पत्ति का अधिकांश अंश परिवार के ही किसी सदस्य के नाम न कर दे।

8. विरासत का उत्तराधिकारी जीवित व्यक्ति ही हो सकता है

विरासत उन्हीं व्यक्तियों में वितरित की जाएगी जो सम्पत्ति के मालिक की मृत्यु के समय जीवित होंगे। यदि किसी संबंधी की मृत्यु सम्पत्ति-मालिक से पूर्व ही हो चुकी हो तो उसका नाम उत्तराधिकारी में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

9.वितरण शीघ्रता से होना चाहिए

चूंकि सम्पत्ति का विवाद प्रायः परिवार में कलह और विघटन का प्रमुख कारण भी बन जाता है, इसलिए इस्लाम चाहता है कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति का वितरण शीघ्रता से कर दिया जाए जिससे की उसके नए स्वामी का निर्धारण हो सके और परिवार रूपी संस्था सुचारू रूप से चलती रहे।

10. ऋण

अगर मृतक पर कोई ऋण है तो इस्लाम चाहता है कि उसकी अदायगी मृतक की सम्पत्ति से की जाए। ऋण की अदायगी विरासत के क़ानून के कार्यान्वयन से पूर्व की जाएगी।

वितरण का कार्यान्वयन और उसका अनुक्रम

वास्तविकता तो यह है कि इस्लामी विरासत के क़ानून के कार्यान्वयन का आरंभ मृतक के अंतिम-संस्कार पर आये ख़र्च से ही हो जाता है। विरासत के वितरण का पूर्ण क्रम इस प्रकार है:

(i) अन्तिम संस्कार : मृतक की विरासत से सर्वप्रथम उसके अन्तिम संस्कार पर आये ख़र्च को निकाला जाएगा उससे जो शेष रह जाएगा उस पर अगले चरण का कार्यान्वयन होगा।

(ii) ऋण की अदाएगी : यदि मृतक पर कोई ऋण था तो उसकी अदायगी अन्तिम संस्कार के बाद सम्पत्ति के अवशेष से की जाएगी। इसके बाद ही बची सम्पत्ति अगले चरण में जाएगी।

(iii)वसीयत : तीसरे क्रम पर वसीयत पूरी की जाएगी। ये वसीयत मृतक के किसी दूर के संबंधी, मित्र अथवा किसी संस्था के नाम से हो सकती है।

(iv) उत्तराधिकारियों में वितरण : प्रथम तीन चरणों से जो सम्पत्ति शेष बचेगी उसका वितरण मृतक के उत्तराधिकारियों में विरासत के क़ानून के अनुसार किया जाएगा। किसको कितना अंश मिलेगा यह मृतक के उत्तराधिकारियों की संख्या और उनसे संबंध पर निर्भर करता है इसलिए इसका विस्तृत वर्णन यहां देना संभव नहीं है। इसकी जानकारी क़ुरआन में वर्णित आदेशों में, और उनकी व्याख्या इस्लामी विधिशास्त्र की पुस्तकों से प्राप्त की जा सकती है।

(v) बैतुलमाल (सरकारी कोष) : संयोग से अगर किसी मृतक का कोई उत्तराधिकारी जीवित नहीं है तो पूर्ण सम्पत्ति बैतुलमाल में जमा कर दी जाएगी, जिससे कि वो समाज के विकास में उपयोग की जा सके।


source : http://hamarianjuman.blogspot.com
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