एक 12 वर्षीय अमरीकी बच्चे ने किसी हस्तक्षेप, किसी व्यक्ति के निमंत्रण व किसी मुसलमान से भेंट किए बिना अपनी पूर्ण आस्था,विश्वास, जागरूकता और ईमान से इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और अपना नाम मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह रखा ताकि सभी लोगों को यह बताए कि एक अमरीकी बच्चे के तन, मन और आस्था पर किस प्रकार ईमान का प्रकाश प्रभाव डालता है और वह किस प्रकार अपने ईश्वर के निमंत्रण का उत्तर देता है।
कुवैत के अलवतन समाचार पत्र में प्रकाशित आलेख में डाक्टर अनस बिन फ़ैसल अलहज्जी एलेक्ज़ेन्डर या मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह के बारे में लिखते हैं कि उनकी मां ने आसमानी और ग़ैर आसमानी समस्त धर्मों और आस्थाओं की पुस्तकें उनको लाकर दी और मुहम्मद को अपना धर्म चयन करने में स्वतंत्र कर दिया ताकि वह पर्याप्त समझ और विश्वास से कोई भी धर्म स्वीकार करें। उन्होंने ने भी अध्ययन और शोध के बाद इस्लाम धर्म का चयन किया।
मुहम्मद ने किसी मुसलमान से मिले बिना ही नमाज़, बहुत से अरबी शब्द और इस्लामी नियम सीखे और पवित्र क़ुरआन के कुछ सूरे याद किए।
वह अपनी कामनाओं के बारे में कहते हैं कि अरबी भाषा सीखने और पवित्र क़ुरआने मजीद के पूर्ण स्मरण सहित उनकी बहुत सी कामनाएं हैं किन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण कामना मक्का जाना और हजरे असवद को चूमना है, इसीलिए वह अपने जेब ख़र्च को एकत्रित कर रहे हैं ताकि काबे अर्थात ईश्वर के घर के दर्शन करें। अब तक उन्होंने अपने जेब ख़र्च से बचा कर तीन सौ डालर एकत्रित कर लिए हैं। वह कहते हैं जैसे ही एक हज़ार डालर हो जाएंगे, मैं मक्के जाऊंगा। जब उनसे पूछा गया कि आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं, तो इसके उत्तर में वह कहते हैं कि मैं भविष्य में फ़ोटोग्राफ़र बनना चाहता हूं ताकि मुसलमानों की वास्तविक छवि को दूसरे लोगों के समक्ष प्रस्तुत करूं, इसीलिए मैंने उन विभिन्न आलेखों को पढ़ा और फ़िल्मों को देखा जो इस्लाम की छवि तोड़ मरोड़ कर पेश करती हैं।
मुहम्मद स्कूल में नमाज़ पढ़ने के बारे में कहते हैं कि जब नमाज़ का समय होता है, मैं स्कूल के पुस्तकालय में एक कोने में जाकर नमाज़ पढ़ता हूं।
यह बातें 12 वर्षीय उस अमरीकी बच्चे की है जिसने अपने ईसाई माता पिता के बावजूद और बिना किसी सहायता और समर्थन के अपने धर्म और आस्था के रूप में इस्लाम को स्वीकार किया।
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