वह तमाम चीज़ें जिन की इंसान को अपनी माद्दी व मानवी ज़िन्दगी में ज़रूरत है उन के उसूल कुरआने करीम में बयान कर दिये गये हैं। चाहे वह हुकूमत चलाने के क़वानीन हों या सियासी मसाइल, दूसरे समाजों से राब्ते के मामलात हो या बा हम ज़िन्दगी बसर करने के उसूल, जंग व सुलह के के मसाइल हों या क़ज़ावत व इक़्तेसाद के उसूल या इन के अलावा और कोई मामलात तमाम के क़वाइद कुल्लि को इस तरह बयान कर दिया गया है कि इन पर अमल पैरा होने से हमारी ज़िन्दगी की फ़ज़ा रौशन हो जाती है। “व नज़्ज़ला अलैका अल किताबा तिबयानन लिकुल्लि शैइन व हुदन व रहमतन व बुशरा लिलमुस्लिमीना ”[1] यानी हमने इस किताब को आप पर नाज़िल किया जो तमाम चीज़ों को बयान करने वाली है और मुस्लमानों के लिए रहमत, हिदायत और बशारत है।
इसी बिना पर हमारा अक़ीदह है कि “इस्लाम ”“हुकूमत व सियासत से ” हर गिज़ जुदा नही है बल्कि मुस्लमानों को फ़रमान देता है कि ज़मामे हुकूमत को अपने हाथों में सँभालो और इस की मदद से इस्लाम की अरज़िशों को ज़िन्दा करे और इस्लामी समाज की इस तरह तरबियत हो कि आम लोग क़िस्त व अद्ल राह पर गामज़न हों यहाँ तक कि दोस्त व दुश्मन दोनों के बारे में अदालत से काम लें। “या अय्युहा अल्लज़ीना आमनु कूनू क़व्वामीना बिलक़िस्ति शुहदाआ लिल्लाहि व लव अला अनफ़ुसिकुम अविल वालिदैनि व अल अक़राबीना।”[2] यानी ऐ ईमान लाने वालो अद्ल व इँसाफ़ के साथ क़ियाम करो और अल्लाह के लिए गवाही दो चाहे यह गवाही ख़ुद तुम्हारे या तुम्हारे वालदैन के या तुम्हारे अक़रबा के ही ख़िलाफ़ क्योँ न हो। “व ला यजरि मन्ना कुम शनानु क़ौमिन अला अन ला तअदिलु एदिलु हुवा अक़रबु लित्तक़वा ” ख़बर दार किसी गिरोह की दुश्मनी तुम को इस बात पर आमादा न कर दे कि तुम इँसाफ़ को तर्क कर दो , इंसाफ़ करो कि यही तक़वे से क़रीब तर है।
source : http://al-shia.org/html/hin/