हर राष्ट्र और समुदाय के लोक साहित्य का महत्वपूर्ण भाग मौसम या उसके पंचांग से जुड़ा होता है। मौसम या पंचांग संबंधित लोक साहित्य से अभिप्राय वह रीति रिवाज, प्रथा एवं विश्वास हैं कि जो किसी विशेष मौसम, ऋतु और दिनों में आयोजित होते हैं। लोक साहित्य का यह भाग मौखिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है।
ईरान के मौसम या पंचांग का लोक साहित्य बहुत समृद्ध है। उसके एक भाग की जड़ें इस्लाम पूर्व ईरानियों की संस्कृति एवं इतिहास में हैं और दूसरा भाग ईरानी मुसलमानों के इस्लामी विश्वासों से संबंधित है। इस्लाम पूर्व और उसके बाद वाले रीति रिवाज एवं परम्पराएं आपस में काफ़ी मिश्रित हैं और एक दूसरे से अधित प्रभावित हैं। हालांकि नौरोज़, (ईरानी नव वर्ष का उत्सव) सौर पंचांग के आधार पर मनाई जाती है तथा उसका स्रोत पौराणिक है किन्तु ईरानियों द्वारा इस्लाम स्वीकार करने के बाद यह उत्सव इस्लाम से काफ़ी प्रभावित हुआ। वर्ष परिवर्तन के समय दुआ तथा नोरोज़ के विशेष दस्तरख़्वान पर क़ुरान, सजदगाह अर्थात सजदा करने के लिए बनाई गई मिट्टी की टिकिया और जानमाज़ का रखना उक्त प्रभावों में से कुछ हैं।
ईरान के मौखिक साहित्य में नौरोज़ को विशेष स्थान प्राप्त है। नौरोज़ संबंधित रीति रिवाज और परम्पराएं मौखिक साहित्य की विभिन्न शैलियों का स्रोत हैं कि जिनमें से कविता, कहानी, कहावत, दुआ और गीत की ओर संकेत किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में फ़ार्सी के मौखिक साहित्य की इन सभी शैलियों का विवरण कठिन है इस लिए दो कार्यक्रमों में नौरोज़ के मौखिक गीतों का उल्लेख करेंगे कि जिन्हें नौरोज़ख़्वानी कहा जाता है और इसी प्रकार नौरोज़ की कथा कहानियों के बारे में भी बातचीत करेंगे। नौरोज़ के मौखिक साहित्य की अन्य शौलियों के बारे में अगले वर्ष बातचीत की जाएगी।
नौरोज़ के रीति रिवाजों और परम्पराओं से संबंधित कहानियां, कथाएं, कहावतें और बहुत सी कविताएं ईरानियों के बीच प्रचलित हैं, दुर्भाग्यवश वे सभी रिकॉर्ड में नहीं रखी गई हैं। ईरान में नौरोज़ की एक विशेष परम्परा नौरोज़ख़्वानी है कि जो मौखिक साहित्य में सुन्दर कविताओं और गीतों की रचनाओं का कारण रही है। नौरोज़ख़्वानी की परम्परा का प्रचलन लोगों तक वसंत का शुभ संदेश पहुंचाने के लिए हुआ है। प्रचीन से ही यह परम्परा ईरान भर में विभिन्न रूपों में प्रचलित रही है।
हुसैन मशहून ने अपनी पुस्तक संगीत का इतिहास में नौरोज़ख़्वानी की ओर संकेत किया है और कहा है कि नौरोज़ के गीतों का इतिहास काफ़ी पुराना है, यह गीत ईरान के अनेक शहरों विशेषकर गीलान, माज़ेन्द्रान और गुर्गान में नव वर्ष से पहले और नौरोज़ के दौरान विशेष सुर में गाए जाते हैं।
शहरों और गांवों में लोगों के जीवन पर प्रौद्योगिकि के प्रभाव तथा सामाजिक परिवर्तनों के बावजूद भाग्यवश ईरान में अभी भी नौरोज़ख़्वानी की परम्परा प्रचलित है। वसंत ऋतु से कुछ सप्ताह पहले से नौरोज़ख़्वानी करने वाले अपने मनमोहक गीतों द्वारा इस प्राचीन राष्ट्रीय उत्सव का शुभ समाचार देते हैं। आम तौर से इन गीतों को दो या उससे अधिक युवा गांवों या शहरों की गलियों और महल्लों में गाते हैं। ईरानी मामलों के रूसी विशेषज्ञ अलैक्ज़ैन्डर ख़ूद्ज़को ने पार्स देश के लोगों की कविताओं के नमूने नामक अपनी किताब में नौरोज़ख़्वानी की ओर संकेत किया है और उल्लेख किया है कि वर्तमान ईरान में नव वर्ष की बधाई देने हेतु लोगों के घरों के सामने बच्चे नौरोज़ के गीत गाते हैं।
सामान्य रूप से नौरोज़ख़्वानी करने वाले नौरोज़ का उत्सव शुरू होने के 15 दिन पहले से गांवों और शहरों में जाते हैं और नौरोज़ एवं वसंत के बारे में कविताएं गाकर तथा आम तौर से पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों की प्रशंसा में कविताएं गाकर लोगों को नव वर्ष के आगमन का शुभ संदेश देते हैं और सरल और सादे रागों में शुभ कामनाएं देते हैं। नौरोज़ख़्वानी सामूहिक कार्य है। सदैव एक व्यक्ति मुख्य गाने वाले के रूप में प्रमुख नौरोज़ख्वान का स्थान ग्रहण करता है और कम से कम एक व्यक्ति तथा कुछ क्षेत्रों में अनेक व्यक्ति स्वर लगाने वालों या सुर से सुर मिलाने वालों के रूप में सुर मिलाते हैं और प्रमुख नौरोज़ख्वान का साथ देते हैं। एक व्यक्ति साज़ अर्थात संगीत वाद्य बजाता है और दूसरा कि जिसे बारकश अर्थात बोझ उठाने वाला कहते हैं लोगों के द्वार पर जाता है।
अधिकांश नौरोज़ख़्वानी के गीतों में दोहराने वाले शब्द होते हैं। प्रमुख गाने वाला घर वाले की प्रतिष्ठा के अनुरूप पद्य गाता है और जैसे ही राग के दोहराने वाले शब्दों पर पहुंचता है सब एक साथ गाते हैं। कभी पूरा गीत ही सामूहिक रूप से गाया जाता है। इन गीतों का एक पद्य इस प्रकार हैः
बग़ीचे में फूल आ गया उद्यान में बुलबुल
हे मोहम्मद के अनुसरणकर्ताओ राजा नौरोज़ आ गया
ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में नौरोज़ख़्वानी नौरोज़ नोसाल, इमाम ख़्वानी, बहार ख़्वानी, नौरोज़नामे जैसे नामों से प्रसिद्ध है तथा इस परम्परा की जड़ें इस्लाम से पहले से हैं।
यह ईरानी परम्परा मनोरंजन से पहले ईरानी संस्कृति के सम्मान की परम्परा है। जिस प्रकार नौरोज़ अमर धरोहर है और उसका सम्मान आत्मा को ताज़गी पहुंचाता है, उसी प्रकार नौरोज़ का संगीत लोगों को ख़ुशी प्रदान करता है।
नौरोज़ख़्वानी करने वाले क्योंकि नौरोज़ख़्वानी खुले वातावरण में करते हैं इस लिए ऊंचे स्वर वाले रागों का प्रयोग करते हैं। अतः दहल और सुर्ना जैसे रागों का ईरान के अधिकतर क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। जो पद्य नौरोज़ख़्वानी करने वाले गाते हैं वह सरल और आसान होते हैं। इस प्रकार के रागों के रचनाकारों की उत्पत्ति सामान्य लोगों के बीच से होती है और वे पेशेवर कवि नहीं होते हैं।
हर भाग एक छोटे वाक्य पर आधारित होता है कि जिसे दोहराया जाता है। हर क्षेत्र में नौरोज़ख्वानी के गीत उस क्षेत्र के गीतों से प्रभावित होते हैं और अधिकतर प्रशन और उत्तर के रूप में होते हैं।
नौरोज़ख़्वानी करने वाले विभिन्न प्रकार की कहानियों को मिला जुलाकर एक प्रकार से कहानी के रूप में कहानी प्रस्तुत करते हैं। वे वसंत का शुभ समाचार देने वाले होते हैं। शताब्दियों से प्राचीन परम्परा के अनुसार उनकी आवाज़ का अर्थ शीत ऋतु की कड़ाके की ठंड की समाप्ति और मौसम के गर्म होने तथा परिमाम स्वरूप कलियों के चटकने एवं वनस्पतियों का फलना फूलना है। नौरोज़ख़्वानी के पद्यों का विषय भी वसंत है। समस्त नौरोज़ख़्वानियों में नव वर्ष का आगमन, ईश्वर की प्रशंसा, प्रकृति एवं वसंत का विवरण, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और महान ऋषियों की प्रशंसा का प्रचलन है।
नौरोज़ख़्वानी के लिखित पद्यों की समीक्षा द्वारा कहा जा सकता है कि इन पद्यों के मूल विषयों की उत्पत्ति ईरानी सभ्यता एवं संस्कृति से हुई है। अधिकांश नौरोज़ीख़्वानियों में सरल और स्पष्ट गाने की परम्परा ईरान के लोक गीतों में अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। नौरोज़ख़्वानी करने वालों की दक्षता एवं प्रतिभा का पता उनकी सुगम और सरल प्रस्तुति से चलता है।
ईरान के अधिकांश क्षेत्रों में विसेष रूप से उत्तर में अलबुर्ज़ क्षेत्र में नौरोज़ख़्वानी करने वाले अंत में सरल पद्यों द्वारा अपना परिचय कराते हैं तथा अपना और अपने साथियों का नाम बताते हैं तथा पद्यों के रूप में ही अपना मूल पेशा, संपत्ति एवं अपनी सुविधाओं का उल्लेख करते हैं। नौरोज़ख़्वानी करने वाले कभी कभी हास्य पद्य भी बहुत ही सुगम रूप में गाते हैं और वह ऐसे समय में कि जब लोग उन्हें इनाम देने से इनकार कर दें।
नौरोज़ संबंधित समस्त कविताओं में नौरोज़ एवं वसंत शब्दों का अधिक प्रयोग होता है और अधिकांश कविताओं में पद्यों के दोहराए जाने वाले शब्दों में नौरोज़ शब्द का मूल रूप से प्रयोग होता है।
ईदे ख़रामून ऊमद
बा शादी व ख़न्दून ऊमद
मुजदे दहीद बे दोस्तान
नौरोज़ सुल्तून ऊमद
नौरोज़ की कहानियों और कथाओं की दूसरे कार्यक्रम में समीक्षा करेंगे। वसंत के रंग आपके जीवन में घुल जाएं और उसे भी रंगा रंग बना दें।
source : irib.ir