पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
इसके पहले लेख मे आपने इस बात का अध्ययन किया कि सूर्य के चारो ओर उपस्थित गैस तथा धुंध ने एक कैंडिल की शक्ल का चयन किया तथा इस से अलग हो गए जिसका प्रत्येक भाग एक भंवर की शक्ल मे परिवर्तित हो गया, जिन मे से प्रत्येक भंवर का मार्ग अलग अलग था तथा वह सब सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते रहते थे जिन मे से कुछ सूर्य के निकट तथा कुछ सूर्य से दूरी पर थे। इस लेख मे आप को इस बात का अध्ययन करने को मिलेगा कि पृथ्वी की रचना किस प्रकार हुई।
तथा प्रत्येक भंवर मे गैस और धुंध के कण घूमते रहते थे जिन मे से गैस के कणो से वाष्प बनता था तथा ओस की बूंदो के समान धुंध के कणो पर गिरता था जिस समय कण धुंध पर गिरते थे तो ओस की नमी से वह एक दूसरे से चिपक जाते थे तथा कभी कभी पानी और मिट्टी बर्फ़ की शक्ल मे परिवर्तित हो जाते थे।
प्रत्येक भंवर मे इस प्रकार के करोड़ो भाग थे, गुरूत्तवाकर्षण बल इन को अपनी ओर खींचती थी जिसके कारण भाग एक दूसरे से मिल जाते थे तथा इस से अधिक बड़ी चट्टान बन जाती थी जिस से एक घूमती हुई गेंद बन जाती था, और यह गेंद अपने गुरूत्ताकर्षण बल के कारण अपने भागो को अपनी ओर खींचती थी जिसके कारण यह प्रत्येक दिन बड़ी से बड़ी होती चली जाती थी, अंतः ईश्वर की शक्ति तथा उसकी कृपा से यह गेंद पृथ्वी की शक्ल मे परिवर्तित हो गई।
जारी