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ब्रह्मांड 4

ब्रह्मांड 4

पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन

लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान

 

हमने इसके पूर्व लेख मे इस बात की व्याख्या की थी कि इस आकाश को उसने सितारो से इस प्रकार सजाया कि करोड़ो कण एवं गैस बादलो मे परिवर्तित हो गये तथा बादलो के टुक्ड़ो उन कणो को एक केंद्र की ओर आकर्षित करने लगे, अंत मे बादल एक स्थान पर एकत्रित हो गए तथा कण एक दूसरे के समीप हो गए। और जिस समय इन कणो मे रगड उत्पन्न होती है तो गर्मी होने लगती है और कभी कभी इन बादलो मे इतनी अधिक गर्मी उत्पन्न होती है कि जिस के कारण वातावरण के अंधकार मे प्रकाश होने लगता है अंतः करोडो बादल सितारो की शक्ल का चयन कर लेते है जिस के कारण वायु मंडल के अंधेरे मे प्रकाश फ़ैल जाता है तथा आकाश सितारो से जगमगा उठता है। तथा इस लेख मे आप इस बात का अध्ययन करेंगे कि सौर मंडल कहा पर स्थित है।

उधर विशाल एंव व्यापक वन और बियाबानो मे बादल को झुरमट सभी स्थानो पर होते है, माद्दे (पदार्थ) के कण टकरा कर तत्पश्चात आपस मे मिल जाते है तथा प्रकंपनपूर्ण (मुतालातिम) समुद्र के समान मंडलाते हुए गैस मे परिवर्तित हो जाते है तथा इधर उधर दौड़ने लगते है, यह गैस और धुऐ का दरिया इस प्रकार चक्कर लगाते है तथा गरजते है, और यह लहरो का गुप्त प्रकंपनपूर्ण तथा गुप्त लहरो का टूटना जो कि उनमे से प्रत्येक बहुत बड़ा स्मारक होता है, उस समुद्र के भीतर एक तूफान खड़ा कर देता है लहरे आपस मे टकराती है तथा फिर मिल जाती है।

इस प्रकंपनपूर्ण समुद्र के मध्यम ज्वार भाटा के समान एक चक्र (दायरा) उत्पन्न हुआ जिसके बीच एक उभार था उससे धीरे धीरे प्रकाश निकला यह सर्प की चाल के समान मार्ग जिसका नाम आकाशगंगा (कहकशा) है उसके निकट एक भाग मे सौरमंडल पाया जाता है।

 

जारी

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