पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
जब ईश्वर ने ब्रह्मांड को सजा लिया, इसके लिए प्रणाली निश्चित की तथा आवश्यक वस्तुए एंव सामान उपलब्ध कराया, और अपनी पूर्ण नेमतो को प्रदान करके ईश्वर ने यह इरादा किया कि अपनी कृपा और दया पर आधारित सज्जन (शरीफ़) अतिथि, एक आदरणीय मौजूद जो शरीर, प्राण, आत्मा, दिमाग, हृदय, स्वभाव (फ़ितरत) तथा करामत के मिश्रण एक प्राणी को अपने आध्यात्मिक ख़लीफ़ा के रूप मे कम अवधि के लिए धर्मशाला मे दायित्व के साथ भैजा ताकि ब्रह्मांड की सभी नियामतो से लाभ उठाते हुए अपने शरीर मे शक्ति और क्षमता एकत्रित करे और उस शक्ति को आसमानी पुस्तक तथा ईश्वर दूतो एवं इमामो के आदेशानुसार भगवान की पूजा तथा उपासना और प्राणीयो की सेवा करने मे व्यय करे, और उसके पश्चात मृत्यु के मार्ग से दूसरी दुनिया मे पहुँच जाए तथा वहा पर सदैव अपने कर्मो का फ़ल प्राप्त करे, और सदैव ईश्वर की दया की छाया मे एक आर्दश जीवन व्यतीत करे।
प्रिय पाठको! हम इस स्थान पर ईश्वर की व्यापक दया जो मानव को चारो ओर से घेरे हुए है उसका एक नज़ारा करते है, इसलिए कुच्छ बातो की ओर संकेत कर रहे हैः
जारी