पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
पश्चाताप (अर्थात परमात्मा की दया एंव क्षमा तथा उसकी ख़ुशी तक पहुँचना, स्वर्ग मे पहुँचने की क्षमता पैदा करना, नरक की सज़ा से अमान मिलना, गुमराही के मार्ग से निकल आना, निर्देश के मार्ग पर आ जाना तथा मनुष्य के कर्मो का अत्याचार एंव कालिख से मुक्त हो जाना है) इसके महत्वपूर्ण प्रभावो के दृष्टिगत यह कहा जा सकता है कि पश्चाताप एक बड़ा चरण है, पश्चाताप एक बड़ा प्रोग्राम है, पश्चाताप एक विचित्र तत्थ है तथा एक रूहानी और आकाशीय वाक़ैइयत है।
इसीलिए सिर्फ़ “असतग़फ़ेरूल्लाह” का जपन करने, अथवा गूढ़ रूप से शर्मिंदा होने तथा एकांता और सार्वजनिक रूप से आंसू बहाने से पश्चाताप प्राप्त नही होती, क्योकि जो लोग इस प्रकार पश्चाताप करते है वह कुच्छ अवधि पश्चात फ़िर से पापो की ओर पलट जाते है।
पापो की ओर दूबारा पलट जाना इसका सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है कि वास्तविक रूप से पश्चाताप नही हुई तथा मनुष्य हक़ीक़ी रूप से भगवान की ओर नही पलटा है।
सच्ची पश्चाताप इतनी महत्वपूर्ण एंव गौरव पूर्ण है कि पवित्र कुरआन के बहुत से छंदो तथा दिव्य शिक्षाए इस से विशिष्ट है।