पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
कुछ लोगो को लगता है कि यदि ईश्वर की बारगाह मे अपने विभिन्न पापो के संबंध मे क्षमा मांग ली जाए और असतग़फ़िरुल्लाहा रब्बी वा अतूबो एलैह ज़बान पर जारी कर लिया जाए, अथवा मस्जिद तथा आइम्मा (इमामो) अलैहेमुस्सलाम के मज़ारो मे एक ज़ियारत का पठन कर लिया जाए अथवा कुछ आंसू बहा लिए जाऐ तो इसके द्वारा पश्चाताप समपन्न हो जाएगी, जबकि क़ुरआनी छंदो एंव रिवायतो मे इस प्रकार की पश्चाताप लोकप्रिय नही है, ऐसे लोगो को ध्यान देना चाहिए कि पाप द्वारा पश्चाताप मे परिवर्तन होता है, प्रत्येक पाप के लिए विशेष पश्चाताप निश्चित है कि यदि मनुष्य उसी प्रकार से पश्चाताप न करे तो उसके कर्म पाप से पवित्र नही होगा, तथा उसके बुरे प्रभाव क़यामत तक उसकी गर्दन पर शेष रहेंगे तथा प्रलय के दिन उसकी सजा का भुगतान करना पड़ेगा।
इन पापो को तीन भागो मे विभाजित किया जा सकता है।
1- इबादात (पूजा पाठ) और वाजिबात (कर्तव्यो) के छोड़ने की स्थिति मे होने वालो पाप, उदाहरण नमाज, रोज़ा, ज़कात, ख़ुम्स और जेहाद इत्यादि को छोड़ना।
2- ईश्वर के आदेशो का उलंघन करते हुए पाप करना जिन मे लोगो के अधिकार (होक़ूकुन्नास) का हस्तक्षेप न हो, उदाहरण शराब पीना, स्त्रीयो की ओर देखना, बलात्कार, शौक्षण, हस्तमैथुन, जुआ, अवैध म्युज़िक सुनना इत्यादि।
3. वह पाप जिन मे ईश्वर के आदेशो के उलंघन के अलावा लोगो के हक़ो (होक़ुकुन्नास) को भी नष्ट किया गया हो, उदाहरण हत्या, चोरी, सूद, हत्याना, अनाथ के माल का खाना, घूस लेना, दुसरो के शरीर पर घाव लगाना अथवा लोगो को माली नुक़सान पहुँचाना इत्यादि।
जारी