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Wednesday 27th of November 2024
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आपकी याद आपके जाने के बाद अधिक हो जायेगी

आपकी याद आपके जाने के बाद अधिक हो जायेगी

हे मोहम्मद आप पर सलाम हो, हे अहमद आप पर सलाम हो, हे ईश्वर के प्रकाश आप पर सलाम हो, सलाम हो आप पर, आपके पवित्र परिवार पर आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब और आपके पिता हज़रत अब्दुल्लाह पर। सलाम हो आपकी माता हज़रत आमिना बिन्ते वहब पर। हे पैग़म्बरे इस्लाम हम गवाही देते हैं कि आपने अपने ईश्वर के धर्म व संदेश को लोगों तक पहुंचाया, अपने अनुयाइयों को नसीहत की, अपने पालनहार के मार्ग में जेहाद किया, ईश्वरीय आदेशों को लोगों तक पहुंचाया, इस मार्ग में बहुत सारी कठिनाइयां सहन की और नसीहतों के माध्यम से लोगों को ईश्वरीय मार्ग की ओर आमंत्रित किया।

आज पूरा ब्रह्मांड उस पैग़म्बरे इस्लाम की शहादत का शोक मना रहा है जो दया व कृपा की प्रतिमूर्ति थे और उसने अपने पावन अस्तित्व से दिग्भ्रमित मनुष्यों को मुक्ति व कल्याण का मार्ग दिखाया। वह पैग़म्बर जो मनुष्य के अंधकारमय जीवन में उस तरह चमका जैसे आसमान में बिजली, उसने मानवता की सोच को अज्ञानता के अंधकार से मुक्ति दिलाई और उसने ज्ञान के प्रकाश को फैलाकर उसे सार्वजनिक किया। हज़रत मोहम्मद ने ईश्वर की ओर से शुभसूचना दी कि मनुष्य चांद, सूरज, ज़मीन और आसमान को अपने नियंत्रण में कर सकता है और ईश्वर से संबंध स्थापित करके ब्रह्मांड के रहस्यों व वास्तविकताओं को समझ सकते हैं और स्वयं को उसकी रचना के सबसे सुन्दर व श्रेष्ठ तत्व के रूप में पेश कर सकते हैं।

आज पूरा ब्रह्मांड इस प्रकाशमयी सूरज के डूबने पर शोकाकुल है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि पैग़म्बरे इस्लाम को अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी मनुष्यों की मुक्ति व कल्याण की बहुत चिंता थी। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम की अपने जीवन के अंतिम क्षणों में तबीयत बहुत ख़राब थी, अधिक कमज़ोरी के कारण वह कभी कभी मूर्छित हो जाते थे और जब भी वह होश में आते और अपनी आंख खोलते थे उस समय कहते थे मेरे अनुयाइयों कभी भी नमाज़ पढ़ने में सुस्ती से काम मत लेना, जो भी मेरे धर्म को स्वीकार करे उसे मेरा सलाम कहना और उसका सम्मान करना अच्छा काम करना और लोगों व सृष्टि के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना। हज़रत फातेमा ज़हरा जिनकी एक प्रसिद्ध उपाधि अपने पिता की मां है, सजल नेत्रों और शोक में डूबी हुई अपने पिता को देख रही थीं, कहती हैं हे पिता इसके बाद मैं आपको कहां पाऊंगी? जो भी मरता है उसकी यादें भुला दी जाती हैं परंतु हे मोहम्मद आपकी याद आपके जाने के बाद अधिक हो जायेगी। इस समय जब मौत हमारे और आपके बीच जुदाई डाल रही है तो मैं स्वयं को सांत्वना दे रही हूं और स्वयं से कह रही हूं कि हम सबको मरना है।

पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद उनकी पावन समाधि का दर्शन हज़रत फातेमा की दिनचर्या का एक भाग बन गया। वह प्रतिदिन अपने पिता की पावन समाधि पर जातीं और  उसके पास बैठकर उनकी समाधि से बात करके अपने दुःखों को हल्का करती थीं। आज पूरी दुनिया में पैग़म्बरे इस्लाम के चाहने वाले हैं और वे विश्व के कोने से कोने से पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि के दर्शन के लिए आते हैं तथा उसके दर्शन के बाद उनके वचनों के आज्ञा पालन की प्रतिबद्धता जताकर अपनी आत्मा को विशुद्धी प्रदान करते हैं।

ईश्वरीय धर्म इस्लाम के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन सर्व समर्थ व महान ईश्वर की आज्ञा से समस्त मनुष्यों के कर्मों के साक्षी और उनकी अंतरआत्मा से पूर्णरूप से अवगत हैं। इन महान हस्तियों की पावन समाधियों का दर्शन और उनसे अपनी आवश्यकताओं को मांगना आत्मा के स्वस्थ होने और समाज में धार्मिक प्रतीकों की सुरक्षा का कारण है और इस कार्य को इन महान हस्तियों द्वारा उठाये गये कष्टों एवं परित्यागों के प्रति आभार प्रकट करने के रूप में देखा जाता है। वास्तव में महान हस्तियों की समाधियों का दर्शन ज्ञान एवं प्रेम की भूमि प्रशस्त करता है। क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम जैसी महान हस्ती की पावन समाधि का दर्शन प्रेमजनक है और ज्ञान अर्जित करने का कारण है।

जब दर्शन प्रेम के साथ हो तो शरीर के निकट होने के साथ आत्मा भी निकट होती है। दूसरे शब्दों में कभी मनुष्य का दर्शन/ पहचान, प्रेम और हार्दिक लगाव का कारण बनता है तो कभी यही दर्शन आंतरिक प्रेम का कारण बनता है। क्योंकि जब मनुष्य निकट से स्वयं को एक शक्तिशाली प्रकाश के नीचे कर देता है तो वह उच्च मूल्यों का आभास करता है और अपने हृदय रूपी घर को प्रकाशमयी बनाता है।

आज ही पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के सबसे बड़े व ज्येष्ठ नाती हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है और इस दुःखद अवसर पर भी हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं और इमाम हसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र जीवन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।

हज़रत अली और जनाबे फातेमा ज़हरा के सुपुत्र  इमाम हसैन अलैहिस्सलाम का जन्म १५ रमज़ान तीन हिजरी क़मरी को हुआ था।  इमाम  हसन अलैहिस्सलाम को यह अवसर प्राप्त था कि उन्होंने महान ईश्वर के तीन श्रेष्ठतम रत्नों अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली और हज़रत फातेमा ज़हरा से लाभ उठाया और अच्छी शिक्षा- प्रशिक्षा के साथ धीरे२ भविष्य में इस्लामी समाज के नेतृत्व के लिए स्वयं को तैयार करना सीखा। इन हस्तियों विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम ने विभिन्न शैलियों व विभिन्न अवसरों पर इमाम हसन अलैहिस्सलाम के महान स्थान से लोगों को अवगत कराया। पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सदगुणों व विशेषताओं का मुसलमानों के मध्य प्रचार करते थे और सभी स्थानों पर उनसे अपने गहरे लगाव को बयान करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम कहते थे कि जो स्वर्ग के सरदार को देखना चाहता है वह हसन को देखे। आपने दूसरे स्थान पर कहा है कि हसन उस पुष्प की सुगंध हैं जिसे हमने दुनिया में पाया है,” पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हसन और उनके छोटे भाई इमाम हुसैन अलैहिमुस्लाम की इतनी अधिक प्रशंसा व सराहना करते थे कि कुछ लोग यह सोचने लगे थे कि यह दोनों बालक अपने पिता हज़रत अली से भी श्रेष्ठ हैं यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम ने इस संबंध में बात की और कहा कि हसन और हुसैन लोक-परलोक में श्रेष्ठ हैं और उनके पिता इन दोनों से श्रेष्ठ हैं।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने विभूतिपूर्ण जीवन में सदैव लोगों के मार्ग दर्शन के लिए प्रयास किया और लोगों यहां तक कि शत्रुओं के साथ भी व्यवहार इतना आकर्षक,  सुन्दर व अच्छा था कि सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। इतिहास में आया है कि एक दिन इमाम हसन अलैहिस्सलाम घोड़े पर सवार होकर एक रास्ते से गुज़र रहे थे कि एक शामी अर्थात वर्तमान सीरिया का एक व्यक्ति सामने आया और उसने आपको बुरा भला कहा। जब वह आपको बुरा- भला कह चुका तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने उसे सलाम किया और मुस्करा कर उससे बोले हे व्यक्ति मैं सोचता हूं कि तुम यहां पर नये हो। यदि तुम मुझसे कुछ चाहते हो तो मैं तुम्हें दूंगा। यदि तुम भूखे हो तो मैं तुम्हें खाना खिलाऊंगा। यदि तुम्हें वस्त्र चाहिये तो मैं वस्त्र दूंगा यदि कोई दूसरी आवश्यकता है तो उसकी पूर्ति करूंगा। यदि आश्रय चाहते हो तो मैं अपने घर में तुम्हें आश्रय दूंगा और आओ अब तुम मेरे मेहमान हो जब तक तुम यहां हो मेरे मेहमान हो। शामी व्यक्ति ने जब अपने दुर्व्यवहार के बदले में इमाम हसैन अलैहिस्सलाम का यह व्यवहार देखा तो वह रोने लगा और कहा मैं गवाही देता हूं कि ज़मीन पर आप ईश्वर के प्रतिनिधि हैं और ईश्वर बेहतर जानता है कि वह अपने प्रतिनिधित्व को कहां रखे। मैं इससे पहले आपका और आपके पिता का शत्रु था परंतु अब आपको ईश्वर की सबसे प्रिय व श्रेष्ठ रचना मानता हूं।

इमाम हसन अलैहिस्सलाम की सरकार कुछ महीने ही रही और आपने लोगों के मार्ग दर्शन का ईश्वरीय दायित्व १० वर्षों तक संभाला और यह वह समय था जब इस्लामी क्षेत्रों में मोआविया बिन अबु सुफयान की सरकार थी और चारों ओर घुटन व अत्याचार का वातावरण व्याप्त था। इस परिस्थिति में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार प्रसार बहुत कठिन हो गया था। इस परिस्थिति में इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपनी दूरगामी सोच से इस्लाम धर्म को भ्रमित होने के उस ख़तरे से बचा लिया जिसका प्रचार मोआविया करने के लगा हुआ था। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस्लाम को इस बड़े ख़तरे से बचाने के लिए सबसे पहले मोआविया से सुलह को स्वीकार कर लिया। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने माआविया से जो शांति की वह उस परिस्थिति में इस्लामी समाज के हित में थी। इस शांति के संबंध में इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने जो भाषण दिया है वह स्वयं आपकी दूरगामी सोच का स्पष्ट प्रमाण है। इमाम हसन अलैहिस्सलाम द्वारा दिये गये भाषण के एक भाग में आया है”" मैं मुसलमानों की एकता को उनके अलग हो जाने से बेहतर समझता हूं। जिस चीज़ में तुम्हारी भलाई है मैं उस चीज़ को उस चीज़ से बेहतर जानता हूं जिसमें तुम अपनी भलाई समझ रहे हो। तो मेरे निर्णय का विरोध न करो कि ईश्वर हमें और तुम्हें क्षमा करे और हम सबका मार्गदर्शन उस चीज़ की ओर करे जिसमें उसकी प्रसन्नता है"

इमाम हसन अलैहिस्सलाम से मोआविया की शत्रुता इस बात का कारण बनी कि इमाम हसन की खिलाफत केवल ६ महीने ही चली। जब इमाम हसन ने मोआविया से सुलह कर ली तो आप कूफे से मदीना लौट गये और लगभग नौ वर्षों तक वहां रहे यहां तक कि मोआविया ने षडयंत्र रचकर हज़रत इमाम अलैहिस्सलाम को ४७ वर्ष की आयु में शहीद करवा दिया।

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम उन कष्टों व अत्याचारों को बयान करते हुए, जो आपके पूर्वजों पर लोगों ने किये हैं, इस प्रकार कहते हैं" हम पर क़ुरैश ने कितने अत्याचार ढाये हैं और वे सब हम पर अत्याचार ढाने के लिए एकजुट हो गये। उन्होंने अमीरूल मोमिनीन अली के साथ बैअत किया, उस बैअत को उन्होंने तोड़ दिया और उनके विरुद्ध तलवार उठा लिया यहां तक कि उन्हें शहीद कर दिया। उसके बाद क़ुरैश ने अली के बेटे इमाम हसन के साथ बैअत किया और उनके साथ बैअत करने के बाद उनके साथ धोखा किया यहां तक कि उन लोगों ने इमाम हसन को शत्रु के हवाले करने की मांग की और इराक़ के लोग उनके मुक़ाबले में आ गये और उन्हें चाकू मार दी तथा उनके तम्बू को ध्वस्त कर दिया और उन्हें परेशान व व्याकुल कर दिया यहां तक कि उन्होंने मोआविया के साथ सुल्ह कर ली। इमाम हसन के साथ इराक़ के २० हज़ार लोगों ने बैअत की परंतु उन्होंने उनके विरुद्ध तलवार उठा ली और एसी स्थिति में कि अभी उनकी गर्दनों में बैअत की ज़िम्मेदारी थी, उन्होंने इमाम हसन को शहीद कर दिया। एक बार फिर पैग़म्बरे इस्लाम सल्ल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।


source : irib.ir
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