पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
हमने इसके पूर्व के लेख मे जो हदीस हजरत मुहम्मद की इमाम सादिक़ ने नक़ल की थी जिसमे कहा गया था कि यदि कोई व्यक्ति अपनी मौत से एक वर्ष पूर्व अथवा एक महीना पूर्व अथवा एक सप्ताह पूर्व अथवा एक दिन पूर्व अथवा मौत के लक्ष्ण देख कर पश्चाताप करता है तो परमेश्वर उसकी पश्चाताप को स्वीकार कर लेता है इस लेख मे हजरत मुहम्मद और उनके उत्तराधिकारी अमीरुलमोमीन की हदीस का अध्ययन करेगे जिसमे पश्चाताप करने को कहा गया है।
हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सलल्ललाहो अलैहै वाआलेहि वसल्लम) कहते हैः
اِنَّ اللهَ يَقْبَلُ تَوْبَةَ عَبْدِهِ مَا لَمْ يُغَرْغِرْ ، تُوبُوا اِلَى رَبِّكُمْ قَبْلَ اَنْ تَمُوتُوا وَبَادِرُوا بِالاَعْمَالِ الزَّاكِيَةِ قَبْلَ اَنْ تُشْتَغَلُوا ، وَصِلُوا الَّذِى بَيْنَكُمْ وَبَيْنَهُ بِكَثْرَةِ ذِكْرِكُمْ اِيّاهُ
“इन्नल्लाहा यक़बलो तौबता अबदेहि मालम योग़रग़िर, तूबू एला रब्बेकुम क़बला अन तमूतू, वा बादेरू बिलआमालिज़्ज़ाकियते क़बला अन तुश्तग़ेलू, वसेलुल्लज़ी बैनकुम वाबैनहु बेकसरते ज़िक्रेकुम इय्याहो”[1]
ईश्वर अपने दास की पश्चाताप प्राण त्यागने से पहले पहले स्वीकार कर लेता है, इसीलिए इस के पूर्व पश्चाताप कर लो, अच्छे कर्म करने मे शीघ्रता से काम लो इस से पहले कि किसी कार्य मे व्यस्त हो जाओ, अपने और परमेश्वर के बीच पश्चाताप द्वारा समबंध बना लो।
हज़रत अमीरुरमोमेनीन[2] अलैहिस्सलाम का कथन हैः
لاَ شَفيعَ اَنْجَحُ مِنَ التَّوْبَةِ
ला शफ़ीआ अनजहो मिनत्तौबते[3]
पश्चाताप से अधिक सफ़ल करने वाला कोई शफ़ी[4] नही है।
जारी
[1] दावाते रावंदी, पेज 237, मृत्यु की याद का अध्याय; बिहारुल अनवार, भाग 6, पेज 19, अध्याय 20, हदीस 5
[2] अमीरुलमोमेनीन शिया समप्रदाय के प्रथम इमाम हजरत अली की उपाधि है। (अनुवादक)
[3] नहजुल बलाग़ा, पेज 863, हिकमत 371; मनला याहज़ेरुल फ़क़ीह, भाग 3, पेज 574,अध्यायः जिन बड़ी मारफ़त का अल्लाह ने वचन दिया है, हदीस 4965; बिहारुल अनवार, भाग 6, पेज 19, अध्याय 20, हदीस 6
[4] शफ़ी का अर्थ है शफ़ाअत करने वाला अर्थात क्षमा कराने वाला (अनुवादक)