रमज़ान का पवित्र महीना बस बीतने वाला है, ईश्वर ने रमज़ान को अपने दासों के लिए आतिथ्य का विशेष अवसर कहा है। इसी रमज़ान के महीने में कुछ रातें अत्याधिक महत्व रखती हैं जिन्हें शबे क़द्र अर्थात, क़द्र की रातें कहा जाता है।
क़द्र की रात या शबे क़द्र का महत्व क़ुरआने मजीद ने बताते हुए कहा है कि हम ने उसे क़द्र की रात में उतारा और तुम्हें क्या पता कि क़द्र की रात क्या है, क़द्र की रात एक हज़ार महीनों से बेहतर है।
कुरआने मजीद में रमज़ान की एक रात को क़द्र की रात कहा गया है और उसे एक हज़ार महीनों से बेहतर कहा गया है। इसके साथ ही यह भी कह दिया गया है कि तुम्हें क्या पता कि क़द्र की रात क्या है? वास्तव में इस प्रकार से कुरआने मजीद ने इस रात के बारे में अधिक जानने के लिए मनुष्य के भीतर जिज्ञासा जगायी है।
क़द्र अरबी शब्द है जिसका अर्थ मात्रा होता है। इस मात्रा में लंबाई चौड़ाई व्यास आदि जैसी वह सब चीज़ें शामिल हैं जिससे किसी वस्तु की मात्रा का पता चलता हो। इस प्रकार से क़द्र की रात का एक अर्थ, मात्रा की रात हो सकता है।
क़ुरआने मजीद में ईश्वर ने कहा है कि हमने हर वस्तु की मात्रा में रचना की है। अर्थात इस सृष्टि में जो कुछ भी है सब की एक अपनी मात्रा है। चाहे वह ठोस पदार्थ हो तरल हो या फिर गैस के रूप में और इसी प्रकार वह वस्तुएं भी जो भौतिक नहीं हैं जैसे बुद्धि व विचार आदि। ईश्वर ने हर वस्तु की एक मात्रा निर्धारित की है और उसी रूप में उसकी रचना की है।
ईश्वर ही इस सृष्टि का रचयता है इस लिए एक विशेष मात्रा व रूप व विशेषता के साथ रचना करने के बाद भी वह अपनी रचना में परिवर्तन या उसकी मात्रा में बदलाव कर सकता है और ईश्वर द्वारा इसी बदलाव की प्रक्रिया को तक़दीर कहते हैं। तक़दीर अर्थात ईश्वर द्वारा क़द्र या मात्रा का निर्धारण अर्थात भाग्य या तक़दीर लिखना।
इस्लामी विचारधारा के अनुसार क़द्र की रात जो हर वर्ष रमज़ान के महीने में आती है वही रात है जब ईश्वर द्वारा सृष्टि की हर वस्तु की मात्रा का निर्धारण या उसमें बदलाव की प्रक्रिया होती है। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि धार्मिक कथनों में क्यों इस रात को अत्याधिक महत्व दिया गया है और क्यों क़ुरआने मजीद ने इस रात को एक हज़ार महीनों से बेहतर कहा है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम क़द्र का अर्थ बताते हुए कहते हैं कि इस रात आने वाले वर्ष की सभी घटनाओं से ईश्वरीय मार्गदर्शक को अवगत कराया जाता है और यह आदेश दिया जाता है कि उसे अपने कामों को कैसे करना है और लोगों के बारे में कैसा व्यवहार अपनाना है।
जहां तक यह कहा गया है कि इस रात लोगों के भाग्य और प्रक्रियाओं का निर्धारण होता है तो इसका अर्थ कदापि यह नहीं है कि भाग्य के आगे मनुष्य असमर्थ है वास्तव में यह जो कहा जाता है कि मनुष्य अपना भाग्य अपने हाथ से लिखता है उसमें काफी हद तक सच्चाई है क्योंकि ईश्वर की किसी से कोई नातेदारी नहीं है और यदि रमज़ान में क़द्र की विशेष रात में वह किसी मनुष्य का भाग्य लिखता है तो निश्चित रूप में उसमें उस मनुष्य के अपने कर्मों की बहुत बड़ी भूमिका होती है।
यहां पर हम इस पूरी प्रक्रिया को परीक्षा के बाद कापियां जांचने या किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद जजों द्वारा निर्णय सुनाए जाने की कल्पना कर सकते हैं। यह सही है कि फेल होने वाले छात्र के बारे में हम यह कह सकते हैं कि कापियां जांचने वाले शिक्षक ने उसे अगली क्लास में जाने से रोक दिया या जज ने प्रतियोगी को प्रथम स्थान दे दिया किंतु हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अगली क्लास में जाने या न जाने का फैसला परीक्षा के प्रश्नों का उत्तर देते समय स्वंय छात्र ने ही कर दिया और प्रथम द्वितीय या त्रितीय श्रेणी का निर्णय स्वंय प्रतियोगी ने कर दिया था शिक्षक और जज ने तो उसके किये की पुष्टि करके उसे औपचारिकता दी है।
यहां पर यह प्रश्न उठता है कि यदि ऐसा है तो इसका अर्थ यह होगा कि इस विशेष रात में जो मात्रा व भाग्य का निर्धारण होता है या दूसरे शब्दों में जो तक़दीर लिखी जाती है वह मनुष्य के अपने कर्मों के आधार पर होती है तो फिर इस रात में प्रार्थना और उपासना पर इतना बल क्यों दिया गया है और क्यों इसे हज़ार महीनों से बेहतर कहा है जबकि इस रात वही लिखा जाने वाला है जो स्वंय मनुष्य ने किया है।
यहां पर हम एक बार फिर उस प्रतियोगी की कल्पना कर सकते हैं जो प्रतियोगिता समाप्त होने और निर्णय सुनाए जाने से पूर्व अपने ईश्वर से प्रार्थना करता है या परीक्षा की कापियां जांचे जाते समय उस छात्र की कल्पना कर सकते हैं जो प्रार्थना करता है। यद्यपि कांपिया जांचने वाला और जज, छात्र या प्रतियोगी के क्रियाकलाप के आगे विवश होता है और चाह कर भी बहुत कुछ नहीं कर सकता किंतु जो थोड़ा बहुत भी वह कर सकता है उससे भी छात्र और प्रतियोगी को काफी आशा होती है क्यों एक अंक से भी पास या फेल अथवा प्रथम व द्वितीय श्रेणी का बहुत बड़ा अंतर हो सकता है।
क़द्र की रात ईश्वर से अत्याधिक प्रार्थना और उपासना की सिफारिश की गयी है क्योंकि वह भाग्य विधाता है शिक्षक या जज की भांति विवश नहीं है हो सकता है अपने दास का गिड़गिड़ाना देख कर उसे दया आ जाए और वह मनुष्य के भाग्य में वह सब लिख दे जिसकी अपने कर्मों के अनुसार उसमें योग्यता न हो। क्योंकि ईश्वर हम सब का स्वामी है और हम सब को मालूम है कि स्वामी सदैव मज़दूरी ही नहीं देता कभी कभी इनाम भी दे देता है। क़द्र की रात ईश्वर से इनाम के लिए गिड़गिड़ाने की रात है।
इस रात का एक महत्व यह भी है कि क़ुरआने मजीद इसी रात उतारा गया है। कुरआने मजीद वास्तव में पूरी मानवता के लिए कल्याण व मार्गदर्शन का एसा संग्रह है जिसे ईश्वर ने विशेष रूप से अपनी रचनाओं के लिए बनाया है और इसे उपहार स्वरूप अपनी रचनाओं को प्रदान किया है और उपहार उसी समय दिया जाता है जब उपहार देने या उपहार लेने वाले के लिए कोई विशेष अवसर या महत्वपूर्ण दिन हो। ईश्वर ने रमज़ान की इस विशेष रात को इस अमू्ल्य व अतुल्य उपहार के लिए चुना इस लिए निश्चित रूप से यह रात उसकी दृष्टि में महत्वपूर्ण रही होगी और चूंकि हमें इसी रात महान रचयता की ओर से एसा उपहार मिला इस लिए यह रात हमारे लिए भी अत्याधिक महत्वपूर्ण है।
शबे क़द्र ईश्वरीय मार्गदर्शकों के कथनों के अनुसार रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं या तेइसवीं रात हो सकती है। प्रथम संभावना यही है कि २३वीं की रात शबे क़द्र है किंतु मुसलमान तीनों रातों को विशेष रूप से उपासना और प्रार्थना करते हैं ताकि इस स्वर्णिम अवसर को हाथ से जाने न दे और ईश्वर के उस कृपासागर से तृप्त हों जिसकी ओर ईश्वर बार बार और विभिन्न अवसरों पर बुलाता है। वास्तव में इस प्रकार के सभी अवसर भी ईश्वर की कृपा है जो किसी भी दशा में अपने दासों को स्वंय से दूर नहीं जाने देना चाहता। उसे अपने दासों की प्रार्थना पसन्द है और वह चाहता है कि उसके दास उससे मांगें, उससे प्रार्थना करें। क्योंकि किसी मनुष्य से मांगना निश्चित रूप से बुरा है किंतु ईश्वर से मांगना और कुछ मांगने के लिए उसका गुणगान करना बुरा नहीं है क्योंकि हाथ फैलाने और मांगने का अर्थ ही यही होता है कि तू बड़ा है मैं तुच्छ और छोटा, मेरी प्रार्थना सुन ले हे पालनहार
source : irib.ir