पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इसके पूर्व लेख मे इस बात का स्पष्टीकरण किया था कि जब पैगम्बर ने उस से पूछा क्या तुम अपने पापो मे से किसी एक पाप को मुझे बता सकते हो तो उस जवान ने कहा क्यो नही यह कह कर उसने अपना एक पाप का इस प्रकार उल्लेख किया कि अंसार क़बीले की एक लड़की की मृत्यु हुई, जब लोग उसका अंतिम संस्कार करके वापस लौट आए, तो मैने रात्रि मे जाकर उसको क़ब्र से बाहर निकाल कर उसका कफ़न चुरा लिया तथा उसको निवस्त्र अवस्था मे ही क़ब्र मे छौड़ दिया, जब मै वापस लौट रहा था तो शैतान ने मेरी काम वासना को भड़काया और उसने मुझे अपने जाल मे इस प्रकार फंसा लिया कि मेरा नफ़्स ग़ालिब आ गया और मैने वापस लौट कर मै वह कार्य कर बैठा जो मुझे नही करना चाहिए था !! इस लेख मे प्रस्तुत है जब पैगम्बर ने उसका पाप सुना तो उसके साथ क्या व्यवहार किया।
उस समय मैने एक आवाज़ सुनीः हे जवान ! प्रलय के दिन के मालिक की ओर से तेरे ऊपर वाय हो ! जिस दिन तुझे और मुझे उसके दरबार मे उपस्थित किया जाएगा, हाए तूने मुर्दो के बीच मुझे निवस्त्र कर दिया, मुझे क़ब्र से निकाला, मेरा कफ़न ले चला तथा मुझे जनाबत की अवस्था मे छौड़ दिया, मै इसी अवस्था मे प्रलय के दिन उठाई जाऊंगी, तुझ पर नर्क की वाय हो !
यह सुनकर पैग़म्बर ने ऊची आवाज़ मे कहाः हे फ़ासिक़! यहाँ से दूर चला जा, मुझे भय है कि कहीं मै भी तेरे अज़ाब मे जल जाऊ तू नर्क की आग से कितना अधिक निकट है?!
उस व्यक्ति ने मस्जिद से बाहर निकल कर कुच्छ जलपान करने की सामाग्री लेकर शहर से बाहर एक पर्वत की ओर चल दिया, उसने मोटे वस्त्र पहन रखे थे, अपने दोनो हाथो को अपनी गर्दन से बांधे हुए कहता चला जा रहा था, हे प्रभु! यह बोहलोल तेरा सेवक है, हाथ बंधे तेरे दरबार मे उपस्थित है। हे पालनहार !तु मुझे तथा मेरे पापो को जानता है, मै आज तेरे शर्मिंदा सेवको के क़ाफले मे हूँ, पश्चापात के लिए तेरे दूत (पैग़म्बर) के पास गया था परन्तु उन्होने भी मुझे दूर कर दिया है, पालनहार तुझे तेरी मर्यादा, इज़्ज़त एंव बादशाहत का वास्ता मुझे निराश न करना, हे मेरे मौला एंव सरदार! मेरी प्रार्थना को अस्वीकार न करना तथा अपनी कृपा से निराश न करना।
जारी