पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इसके पूर्व के लेख मे स्वयं कआब के कथन को बयान किया था जिसमे कआब एक ईसाई द्वारा चिठठी देने की कहानी बताते है और वह चिठठी पढ़ने के पश्चात क्रोधित होते है और कहते है कि अब यह समय आ गया है कि इसलाम का शत्रु हमारे बारे मे विचार करने पर तैयार है। उन तीनो व्यक्तियो ने पश्चाताप के स्वीकार होने की बहुत प्रतिक्षा की, अंतः उन तीनो ने भी आपस मे समबंध समाप्त किए ताकि ईश्वर उनकी पश्चाताप को स्वीकार कर ले। इस लेख मे आप इस बात का अध्यन करेंगे कि उन लोगो ने एक दूसरे से समबंध समाप्त करने के पश्चात क्या किया और किस प्रकार उन लोगो की पश्चाताप ईश्वर के दरबार मे स्वीकार हुई।
वह तीनो व्यक्ति एक दूसरे से अलग हो गए, और उनमे से प्रत्येक पर्वत के अलग अलग भाग मे चला गया, ईश्वर के दरबार मे गिरया एंव फ़रयाद की तथा उसके दरबार मे शर्मिंदगी के साथ आंसू बहाए, विनम्रता के साथ सजदे मे अपने शीर्ष को झुका दिया तथा अपने टूटे हुए हृदयो के साथ पश्चाताप किया, पचांस दिन पश्चाताप एंव रोने के पश्चात निम्मलिखित छंद उनकी पश्चाताप स्वीकार होने के लिए खुशखबरी बनकर आई।[1]
وَعَلَى الثَّلاَثَةِ الَّذِينَ خُلِّفُوا حَتَّى إِذَا ضَاقَتْ عَلَيْهِمُ الاَْرْضُ بِمَا رَحُبَتْ وَضَاقَتْ عَلَيْهِمْ أَنْفُسُهُمْ وَظَنُّوا أَن لاَمَلْجَأَ مِنَ اللّهِ إِلاَّ إِلَيْهِ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ لِيَتُوبُوا إِنَّ اللّهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ
“वा अलस्सलासतिल्लज़ीना खुल्लेफ़ू हत्ता एज़ा ज़ाक़त अलैहेमुल अर्ज़ो बेमा रहोबत वा ज़ाक़त अलैहिम अनफ़ोसोहुम वा ज़न्नू अन ला मलजआ मिनल्लाहे इल्ला इलैहे सुम्मा ताबा अलैहिम लेयतूबू इन्नल्लाहा होवत्तव्वाबुर्रहीम”[2]
“और भगवान ने इन तीनो पर दया की जो जेहाद से पीछे रह गए यहा तक कि ज़मीन जब अपने फैलाओ सहित उन पर तंग हो गई और उनके प्राणो पर आ पड़ी तथा उन्होने यह समझ लिया कि अब ईश्वर के अलावा कोई शरण नही है, तो ईश्वर ने उनकी ओर ध्यान दिया कि वह पश्चाताप कर ले क्योकि वह पश्चाताप को स्वीकार करने वाला तथा दयालु है”।