पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
जिस समय उमरे सआद युद्ध के लिए तैयार हो गया, हुर को इस बात का विश्वास नही था कि पैग़म्बरे अकरम सललल्लाहोअलैहेवाआलेहिवसल्लम के आदेशो का पालन करने वाले रसूल के पुत्र पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो जाएंगे, इसवंश हुर ने उमरे सआद के पास जाकर प्रश्न कियाः क्या वास्तव मे हुसैन के साथ युद्ध होगा? उमरे सआद ने उत्तर दियाः हां हां! बड़ा घमासान का युद्ध होगा, हुर ने कहाः इमाम हुसैन के प्रस्ताव को क्यो स्वीकार नही किया? उमरे सआद ने उत्तर दियाः मुझे पूरा अधिकार नही है यदि मुझे अधिकार होता तो मै स्वीकार कर लेता, पूरा अधिकार अमीर के हाथो मे है, “अलमामूरो माज़ूरून”!
हुर ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि मुझे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से मिल जाना है, परन्तु यज़ीद की सेना को इस बात की ख़बर ना हो, अपने समीप खड़े चचा ज़ाद भाई से कहाः क्या तूने अपने अश्व को पानी पिला लिया है? “क़र्रा” ने उत्तर दियाः नही, हुर ने कहाः क्या इसको पानी नही पिलाएगा ? क़्रर्रा ने इस प्रश्न से इस प्रकार अनुमान लगाया कि हुर युद्ध नही करना चाहता परन्तु अपनी बात किसी पर प्रकट भी नही करना चाहता, शायद कोई जाकर सूचित कर दे, इस लिए उसने इस प्रकार उत्तर दियाः ठीक है मै अश्व को पानी पिलाता हूँ कहकर हुर से दूर चला गया।
मुहाजिर हुर का दूसरा चचाज़ाद भाई हुर के निकट आकर कहता हैः क्या इरादा है, क्या हुसैन पर आक्रमण करना चाहता है?
हुर ने उसको कोई उत्तर नही दिया और अचानक बैद के वृक्ष के समान कांपने लगा, जैसे ही मुहाजिर ने उसकी यह हालत देखी तो अत्यधिक आश्चर्य करते हुए कहाः ए हुर तेरे कार्य मनुष्य को संदेह मे डाल देते है, इस से पहले मैने तेरी ऐसी हालत कभी नही देखी थी, यदि कोई मुझ से पूंछता कि कूफ़े मे सबसे अधिक वीर एवम योद्धा कोन व्यक्ति है? तो मै तेरा नाम लेता, परन्तु आज यह तेरी क्या हालत हो रही है?
जारी