Hindi
Monday 25th of November 2024
0
نفر 0

क़ानूनी ख़ला का वुजूद नही है

हमारा अक़ीदह है कि इस्लाम में किसी तरह का कोई क़ानूनी ख़ला नही पाया जाता।

यानी क़ियामत तक इंसान को पेश आने वाले तमाम अहकाम इस्लाम में बयान हो चुके हैं। यह अहकाम कभी मख़सूस तौर पर और कभी कुल्ली व आम तौर पर बयान किये गये है। इसी वजह से हम किसी फ़क़ीह को क़ानून बनाने का हक़ नही देते बल्कि उनको सिर्फ़ ऊपर बयान किये गये चारो मनाबों से अहकामे इलाही को इस्तख़राज कर के अवाम के सुपुर्द करने का हक़ हासिल है। हमारा अक़ीदह है कि तमाम अहकाम कुल्ली तौर पर बयान किये जा चुके हैं और इसकी दलील यह है कि सूरए मायदह जो कि पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल होने वाले आख़री सूरह या आख़री सूरोह में से एक सूरह है इस में इरशाद हो रहा है अल यौम अकमलतु लकुम दीना कुम व अतममतु अलैकुम नेअमती व रज़ीतु लकुम अलइस्लामा दीनन[1] यानी आज हम ने तुम्हारे लिए दीन को कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेअमतों को भी पूरा किया और तुम्हारे लिए दीने इस्लाम को मुंतख़ब किया।

अगर हर ज़माने के लिए फ़िक़्ही मसाइल बयान नही किये गये तो फिर दीन किस तरह कामिल हो सकता है ?

क्या आख़री हज के मौक़े पर पैग़म्बरे इसलाम (स.) ने नही फ़रमाया कि अय्युहा अन्नासु वल्लाहि मा मिन शैइन युक़र्रिबु कुम मिन अलजन्नति व युबाइदु कुम अन अन्नारि  इल्ला व क़द अमरतु कुम बिहि , व मा मिन शैइन युक़र्रिबु कुम मिन अन्नारि व युबाइदु कुम अन अलजन्नति इल्ला व क़द नहैतुकुम अनहु।[2] यानी ऐ लोगो मैने तुम को उन तमाम चीज़ो का अंजाम देने का हुक्म दे दिया है जो तुम को जन्नत से नज़दीक व दोज़ख़ से दूर करने वाली है।और इसी तरह मैने तुम को उन तमाम कामों से मना कर दिया है जो तुम को जहन्नम की आग से नज़दीक और जन्नत से दूर करने वाले हैं।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया किमा तरका अलीयुन (अ) शैअन इल्ला कतबहु हत्ता अरशा अलख़दशि[3] यानी हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अहकाम इस्लाम से किसी चीज़ को बग़ैर लिखे नही छोड़ा(आप ने पैग़म्बरे इस्लाम(स.) के हुक्म से हर चीज़ को लिखा) यहाँ तक कि आप ने इंसान के बदन पर आने वाली एक छोटीसी ख़राश की दीयत को भी लिख दिया। इन सब की मौजूदगी में हम को  ज़न्नी दलीलों, क़ियास व इस्तिसहान की ज़रूरत पेश नही आती।



[1] सूरए मायदह आयत न. 3

[2] उसूले काफ़ी जिल्द न.2 पेज न. 74, बिहारुल अनवार जिल्द न. 67 पेज न. 96

[3] जामे उल अहादीस जिल्द न.1 पेज न. 18 हदीस न. 127। इस बारे में इसी किताब में बहुतसी दूसरी हदीसें भी मौजूद हैं।


source : al-shia.org
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इस्लाम धर्म की खूबी
आसमानी किताबों के नज़ूल का फलसफा
पश्चाताप
मआद (क़ियामत)के बग़ैर ज़िन्दगी ...
सुशीलता
हिदायत व रहनुमाई
मरातिबे कमाले ईमान
सलाह व मशवरा
उसकी ज़ाते पाक नामुतनाही ...
आलमे बरज़ख

 
user comment