Hindi
Tuesday 26th of November 2024
0
نفر 0

मोहसिन क़रअती

 

ईरान के एक वरिष्ठ धर्मगुरू हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती ने विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं।  उनकी पुस्तकें युवाओं में बहुत पसंद की जाती हैं।  उन्होंने न केवल ज़कात अदा करने, जमाअत के साथ नमाज़ पढने के समारोहों के आयोजन और हज जैसे धार्मिक संस्कारों को समाज में प्रचलित कराने में अथक प्रयास किये बल्कि इन विषयों पर कई पुस्तकें भी लिखी हैं।  इस्लामी शिक्षाओं को समाज में प्रचलित करने के उद्देश्य से हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती ने जो प्रयास किये हैं उनमें उनके क़ुरआन के पाठों को विशेष महत्व प्राप्त है।  इस संदर्भ में वे पिछले तीस वर्षों से कार्य कर रहे हैं।  उनके क़ुरआन के पाठ टेलिविज़न पर हर सप्ताह दिखाए जाते हैं।  ईरान के धर्मगुरूओं के अनुरोध पर हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती ने पवित्र क़ुरआन की व्याख्या के संदर्भ में की जाने वाली अपनी गतिविधियों को पुस्तक का रूप दिया जो तफ़सीरे नूर के नाम से प्रसिद्ध है।  इस तफ़सीर का विश्व की कई भाषओं में अनुवाद हुआ है और यह वीडियो के रूप में भी मौजूद है।  पवित्र क़ुरआन के बारे में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती का कहना है कि लोगों को इस बारे में यह ध्यान रखना चाहिए कि वे पवित्र क़ुरआन को केवल पढ़ने की सीमा तक सीमित न करें बल्कि उसको समझने और उसकी बातों को अपने जीवन में व्यवहारिक बनाने के लिए प्रयासरत रहें।

    तफ़सीरे नूर की कुछ विशेषताएं हैं।  इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसको साधारण भाषा में लिखा गया है और यह कुरआन की पुरानी व्याख्याओं की जटिलता से दूर है।  इस तफ़सीर में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़राती ने प्रयास किया है कि पवित्र क़ुरआन की बातों को साधारण भाषा में लोगों तक पहुंचाया जाए।  प्रत्येक आयत के अनुवाद के बाद हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती ने हर आयत की महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख विशेष रूप से किया है।  तफ़सीर की प्राचीन पुस्तकों में सामान्यतः अरबी व्याकरण की सूक्षम बातों का उल्लेख किया जाता था जिससे वह जटिल हो जाती थीं और आम लोगों के लिए उनका समझना कठिन था किंतु हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती की तफ़सीर एसी नहीं है।

    आप जानते ही हैं कि इस्लाम में नमाज़ को विशेष महत्व प्राप्त है।  नमाज़ के बारे में अबतक बहुत सी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने नमाज़ को धर्म का आधार बताया है।  एक अन्य स्थान पर वे कहते हैं कि यदि ईश्वर नमाज़ को स्वीकार कर ले तो मनुष्य के अन्य सदकर्म भी स्वीकार कर लिए जाएंगे।  किंतु यदि यह स्वीकार न की जाए तो फिर एसे में उसके अन्य सदकर्म भी स्वीकार नहीं किये जाएंगे।  हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़राती ने नमाज़ और उससे संबन्धित विषयों के बारे में कुछ पुस्तकें लिखी हैं जैसे तफ़सीरे नमाज़” “आशनाई बा नमाज़” “परतोई अज़ असरारे नमाज़तथा ११४ नुक्ते दर बारए नमाज़

नमाज़ के बारे में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़राती कहते हैं कि यह ईश्वर की याद और शांति का स्रोत है।  वे कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन की इस आयत, “अला बे ज़िक्रिल्लाह, तत्मइन्नल क़ुलूकका अर्थ संभवतः यह हो कि तुम ईश्वर की प्रार्थना और याद जो करते हो उसके उत्तर में ईश्वर तुमको याद करता है उससे तुम्हारे हृदयों को शांति मिलती है।  अर्थात यदि हमको यह ज्ञात हो जाए कि ईश्वर हमारी सहायता करता है और वह हमे देख रहा है तो इससे हमें शांति का आभास होता है।  जो ईश्वर की याद नहीं करता वह शांति से वंचित रहता है और शांति के बिना जीवन अर्थहीन हो जाता है।

हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती, अपनी पुस्तक ११४ नुक्ते दर बारए नमाज़में कहते हैं कि बहुत से लोग यह समझते हैं कि यह तो बार-बार दोहराया जाने वाला काम है जिसे हर दिन किया जाता है तो इससे क्या फ़ाएदा? वे कहते हैं कि यह विकास की सीढ़ी की भांति है।  जो भी व्यक्ति इसे जितनी निष्ठा के साथ पढ़ेगा वह उसी अनुपात में प्रगति करेगा।  विदित रूप से तो नमाज़ की सभी क्रियाओं को बार बार दोहराया जाता है किंतु वास्तव में यह मनुष्य के ईमान और उसकी आस्था में निरंतर वृद्धि का कारण बनता है।  हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती कहते हैं कि नमाज़ में बार-बार दोहराए जाने वाली बातों को आप उस फावड़े की भांति मान सकते हैं जो बार-बार धरती पर पड़ता है किंतु हर बार मनुष्य को वह जल के निकट करता जाता है।  अतः देखने में तो यह लगता है कि नमाज़, एक दोहराई जाने वाली चीज़ है किंतु वास्तव में यह मनुष्य पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है।

इसी किताब के एक अन्य भाग में वे नमाज़ के समाजिक आयामों की ओर संकेत करते हैं।  वे कहते हैं कि नमाज़ को जमाअत के साथ अर्थात एकसाथ मिलकर पढ़ना चाहिए।  जमात की नमाज़ में मनुष्य सामाजिक बातों को समझता है।  इसमें मनुष्य बिना किसी आर्थिक या समाजिक भेदभाव के एक दूसरे से कंधा मिलाकर खड़ा होता है।  जमाअत की नमाज़ इमाम के बिना हो ही नहीं सकती।  यह ठीक उसी प्रकार है जैसे किसी भी समाज का संचालन बिना मार्गदर्शक के संभव नहीं है।  नमाज़ पढ़ाने वाला इमाम हर एक के लिए सम्मानीय है वह न तो किसी विशेष दल का इमाम है न किसी धनवान गुट का या किसी अन्य का बल्कि वह नमाज़ पढ़ने वाले समस्त लोगों का इमाम है।  इस प्रकार जमात की नमाज़ से खोखली विशिष्टताओं से बचा जा सकता है।  नमाज़ पढ़ाते समय यदि इमाम से कोई ग़लती हो जाती है तो नमाज़ पढ़ने वाले उसे टोकते हैं।  इससे पता चलता है कि इस्लामी व्यवस्था में सबको एक-दूसरे का ध्यान रखना चाहिए।  नमाज़ के दौरान नमाज़ी को इमाम से आगे नहीं होना चाहिए।  यह दूसरों के सम्मान और शिष्टाचार का एक अन्य पाठ है।  यदि इमाम से कोई पाप हो जाए और लोगों को उसका पता चल जाए तो उसे अपने पद से हट जाना चाहिए।  इससे यह पाठ मिलता है कि समाज को किसी पथभ्रष्ट के हवाले नहीं किया जा सकता।  जमात की नमाज़ में सबको एक साथ सिजदे मे जाना होता है अर्थात हमें हर हाल में एकजुट रहना चाहिए।  नमाज़ पढ़ाने का पद किसी से विशेष नहीं है बल्कि जो भी ईश्वरीय भय का स्वामी हो और इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हो वह यह कर सकता है।  इससे पता चलता है कि इमामत का काम किसी से विशेष नहीं है बल्कि जो भी यह विशेषताएं अपने भीतर पैदा करले वह यह कार्य कर सकता है।

    हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती ने बहुत सी पुस्तकों की रचना की है जिनमें से कई का अन्य भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है।  हज जैसी इस्लामी उपासना के बारे में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती ने दो पुस्तकें लिखी हैं हजऔर क़ुरआन व हज  यह किताबें वैसे तो सबके लिए लाभदायक हैं किंतु जो लोग हज जैसी आध्यात्मिक यात्रा पर जाना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तकें विशेष महत्व रखती हैं।  मोहसिन क़रअती ने हजनामक पुस्तक में इस मानवीय यात्रा की विशेषताओं का उल्लेख किया है।  इसमें उन्होंने हज में किये जाने वाले समस्त कार्यों का उल्लेख बड़े ही सुन्दर ढंग से किया है।  अपनी इस पुस्तक में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती लिखते हैं कि काबा एक ध्वज की भांति है जिसकी छाया में एकत्रित होकर हमें एकेश्वरवाद की पुष्टि करनी चाहिए।  एसे मे हमें प्रलय को भी याद करना चाहिए और इतिहास को भी।  हज, पवित्र क़ुरआन की इस आयत का व्यवहारिक रूप वे प्रदर्शन है कि ईश्वर की ओर प्रस्थान करो।  हज का अर्थ है कि मैं ईश्वर के मार्ग की ओर बढ़ता हूं और वह मेरा मार्गदर्शन करेगा।  इस आध्यात्मिक यात्रा में सादगी, त्याग, ईश्वर के बारे में सोच-विचार, नैतिकता का प्रदर्शन आदि जैसी बातें आवश्यक हैं।

हज नामक अपनी पुस्तक में हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती लिखते हैं कि ईश्वर की यह उपासना काबे में मुसलमानों की एकता को वर्चस्ववाद विरोधी मानती है।  वे कहते हैं कि मक्के में एकेश्वरवादियों का एकत्रित होना, जो मूर्तियों के विघटन का स्थल है, हमको अनेकेश्वरवाद से संघर्ष का पाठ देता है।  ईश्वर के महान दासों ने काबे के निकट होकर अपनी बात कही है और ईश्वरीय मोक्षदाता, भी अपना आन्दोलन वहीं से आरंभ करेंगे।

    हुज्जतुल इस्लाम मोहसिन क़रअती के मतानुसार हज वह उपासना है जो मनुष्य को भौतिकवाद से दूर करती है और हाजियों को आध्यात्मिक एवं नैतिक पाठ उपहार स्वरूप देती है।  वे कहते हैं कि हज के दौरान सादगी होन चाहिए न कि आडंबर, गतिशीलता होनी चाहिए न कि ठहराव, ईश्वर का स्मरण हो न कि उसकी याद से दूरी, ईश्वर के आदेशों के पालन की भावना होनी चाहिए न कि सांसारिक नियमों की।  यहां पर स्वार्थ को छोड़कर निःस्वार्थ भाव से कार्य करने की आवश्यकता है।  कुछ मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हज के दौरान समस्त सकारात्मक बातों को प्रतिबिंबित होना चाहिए न कि नकारात्मक बातों को।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

आदर्श जीवन शैली-३
ब्रह्मांड 6
हज में महिलाओं की भूमिका
आयतुल कुर्सी
बिस्मिल्लाह के संकेतो पर एक ...
सूर्य की ख़र्च हुई ऊर्जा की ...
इमाम सादिक़ और मर्दे शामी
शहीद मोहसिन हुजजी की अपने 2 वर्षीय ...
सवाल जवाब
ख़ुत्बाए इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) ...

 
user comment