ज़ीक़ादा का अन्तिम दिन पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के पौत्र इमाम जवाद की शहादत का दिन है। सन 220 हिजरी क़मरी को आज ही के दिन अब्बासी शासक “मोतसिम” के आदेश पर इमाम मुहम्मद बिन अली को शहीद कर दिया गया जो इतिहास में जवाद के नाम से मशहूर हैं। इस दुखद अवसर पर हम हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।
पवित्र क़ुरआन के सूरए अहज़ाब की आयत संख्या 40 में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) को अपना अन्तिम दूत बताया है। इससे यह पता चलता है कि उनके आने के साथ ही ईश्वर की ओर से भेजे जाने वाले दूतों का क्रम बंद हो गया। इस प्रकार हज़रत मुहम्मद (स) के बाद कोई अन्य दूत नहीं आएगा। वे अन्तिम ईश्वरीय दूत हैं और इस्लाम ऐसा धर्म है जो प्रलय तक बाक़ी रहेगा। इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन, ऐसी अन्तिम आसमानी पुस्तक है जिसमें इस्लामी शिक्षाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है। ईश्वर के अन्तिम दूत हज़रत मुहम्मद (स) ने अपने बाद मुसलमानों के मार्गदर्शन एवं पथप्रदर्शन के लिए अपने उत्तराधिकारियों की घोषणा, अपने जीवनकाल में ही कर दी थी। इस बारे में सुन्नी मुसलमानों के विख्यात धर्मगुरू “अब्दुल मलिक जोबैनी शाफ़ेई” कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि मैं ईश्वरीय दूतों का प्रमुख हूं और “अली इब्ने अबीतालिब” मेरे उत्तराधिकारी तथा वे ही मेरे अन्य उत्तराधिकारियों के प्रमुख हैं।
मेरे उत्तराधिकारियों की संख्या 12 है। मेरे पहले उत्तराधिकारी का नाम अली और अन्तिम का नाम मेहदी है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के एक अति विश्वसनीय साथी “जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी” कहते हैं कि जिस समय सूरए नेसा की आयत संख्या 59 नाज़िल हुई जिसमें लोगों से “उलुलअज़्म” के अनुसरण का आदेश दिया गया है। इसपर मैंने कहा कि हे पैग़म्बर, हमने ईश्वर और उसके दूत को पहचान लिया अब हम उलुलअज़्म को पहचानना चाहते हैं। यह सुनकर हज़रत मुहम्मद (स) ने कहा कि हे जाबिरः वे मेरे उत्तराधिकारी हैं और मेरे बाद इमाम हैं। उनमें सर्वप्रथम अली इब्ने अबी तालिब हैं। उनके बाद हसन बिन अली, फिर हुसैन बिन अली, फिर अली बिन हुसैन, फिर मुहम्मद बिन अली हैं जिनको तौरेत में बाक़िर के नाम से याद किया गया है।
पैग़म्बर (स) ने कहा कि हे जाबिर तुम अपने बुढ़ापे में उन्हें देखोगे। इसके बाद आप ने कहा कि जाबिर जब तुम उन्हें देखना तो उनको मेरा सलाम कहना। फिर हज़रत मुहम्मद ने कहा कि मुहम्मद बिन अली के बाद जाफ़र बिन मुहम्मद, फिर मूसा बिन जाफ़र, फिर अली बिन मूसा, फिर मुहम्मद बिन अली, फिर अली बिन मुहम्मद, फिर हसन बिन अली होंगे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि अंत में जो मेरा उत्तराधिकारी होगा उसका नाम मेरे नाम पर होगा। उसका उपनाम “अबुलक़ासिम” होगा। लंबे समय तक वह लोगों की आखों से ओझल रहेगा। वह ऐसा काल होगा जब केवल पक्की आस्था वाले ही उसपर विश्वास करेंगे।
नवें इमाम का नाम मुहम्मद, उनका उपनाम अबू जाफ़र और उपाधि तक़ी एवं जवाद थी। अत्यधिक ईश्वरीय भय और दान-दक्षिणा के कारण वे तक़ी तथा जवाद के नाम से मशहूर हुए। उनके पिता आठवें इमाम, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम थे। इमाम जवाद की माता का नाम “ख़ैज़रान” था। सन 203 क़मरी हिजरी में अपने पिता की शहादत के पश्चात उन्होंने ईश्वरीय नेतृत्व का दायित्व संभाला। उस समय इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम की आयु मात्र 7 वर्ष की थी। पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारियों में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने अल्पायु में ईश्वरीय मार्गदर्शन का भारी दायित्व संभाला था। ऐसे में स्वभाविक सी बात है कि लोगों के मन में यह प्रशन उठे कि कोई इतनी कम आयु में किस प्रकार ईश्वरीय मार्गदर्शन जैसे महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील दायित्व का निर्वाह कर सकता है? क्या यह संभव है कि अल्पायु में कोई इस परिपूर्णता और परिपक्वता तक पहुंच जाए कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के उत्तराधिकारी जैसी महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील ज़िम्मेदारी का निर्वाह कर सके?
इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर में कहा जा सकता है कि यह बात कही जा सकती है कि प्रचलित प्रक्रिया के अनुसार बुद्धि के विकास और उसके सुदृढ़ एवं परिपक्व होने में समय लगता है। यह बात अल्पायु में प्राप्त नहीं हो सकती किंतु यह भी एक वास्तविकता है कि ईश्वर इस कार्य में सक्षम है कि वह बुद्धि की परिपूर्णता की अल्पावधि में कम आयु में प्रदान कर दे। मानव समाज के इतिहास का अध्ययन करने पर हमे एसे कई उदाहरण मिल जाएंगे कि कुछ लोग बहुत ही कम आयु में बड़े महान स्थान तक पहुंचे हैं। इस संदर्भ में ईश्वरिय दूत हज़रत यहया का उल्लेख किया जा सकता है। वे बचपन में ही नबी बने थे। इस बारे में सूरए मरयम की आयत संख्या 12 में ईश्वर कहता है कि हमने नबूवत का आदेश उन्हें बचपन में ही दे दिया था।
इसका दूसरा उदाहरण हज़रत ईसा का है। उन्होंने अपने जन्म के कुछ ही समय के बाद पालने में अपने ईश्वरीय दूत होने की घोषणा की थी। सामान्यतः किसी बच्चे को बोलने में 12 महीनों का समय लगता है हालांकि हज़रत ईसा ने अपने जन्म के कुछ ही समय के बाद अपने दूत होने तथा अपनी माता मरयम की पवित्रता की गवाही दी थी। इसका उल्लेख सूरए मरयम की आयत संख्या 30 से 33 में मिलता है।
इमाम जवाद अल्पायु में इस्लामी जगत के मार्गदर्शक बन गए थे। उस काल के बहुत से लोग यहां तक कि विद्धान भी इससे अचंभित थे। वे इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। हालांकि यही विषय, इमाम के मानने वालों के बीच आश्चर्य का विषय नहीं था। वे लोग इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को ईश्वरीय मार्गदर्शक मानते थे। उन लोगों की दृष्टि में इमाम की कम आयु कोई महत्व नहीं रखती।
एतिहासिक प्रमाणों के अनुसार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद उनके कुछ अनुयाई एक स्थान पर एकत्रित हुए। वे लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी के बारे में विचार-विमर्श कर रहे थे। उनमें से एक, “यूनुस बिन अब्दुर्रहमान” ने कहा कि जब तक यह बच्चा, अर्थात इमाम मुहम्मद तक़ी, बड़ा नहीं हो जाता हमें क्या करना चाहिए? उनकी यह बात सुनकर वहां पर मौजूद इमाम के एक अन्य साथी “रय्यान बिन सल्त” ने कहा कि इमाम मुहम्मद तक़ी की इमामत, ईश्वर की ओर से है। उन्होंने कहा कि जब एसा है तो एक दिन का बच्चा भी महत्व रखता है।
यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मानने वालों के निकट उनके उत्तराधिकारी की आयु का उनकी आस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी बीच अपने काल के वरिष्ठ लोगों और विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ से इमाम मुहम्मद तक़ी के व्यापक ज्ञान का पता सबको हो गया। “अली बिन इब्राहीम” ने बताया है कि आठवें इमाम की शहादत के बाद हम हज के लिए गए। वहां पर हमने इमाम जवाद से भेंट की। उस स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वाले बहुत से अन्य लोग भी उपस्थित थे। उस स्थान पर इमाम मुहम्मद तक़ी के चचा “अब्दुल्लाह बिन मूसा” वहां पर आए। वे अपने काल के गणमान्य लोगों में से थे। सब उनका सम्मान करते थे। उन्होंने इमाम जवाद का सम्मान करते हुए उनके माथे को चूमा। इसी बीच एक व्यक्ति उठा और उसने “अब्दुल्लाह बिन मूसा” से एक प्रश्न पूछा किंतु वे उस प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे पाए। इस पर इमाम जवाद क्रोधित हुए और उन्होंने उनसे कहा कि यह काम बहुत कठिन है।
इस बारे में ईश्वर कहता है कि तुम क्यों बिना जानकारी के उत्तर देते हो। इसपर “अब्दुल्लाह बिन मूसा” ने कहा कि आप सच कहते हैं। मुझसे ग़लती हो गई मैं इसपर पश्चाताप करता हूं। यह बातें सुनकर वहां पर उपस्थित लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। फिर उन्होंने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए कहा कि क्या हम आपसे अपने प्रश्नों के उत्तर पूछ सकते हैं? इमाम ने कहा कि हां पूछ सकते हो। इसके बाद लोगों ने इमाम मुहम्मद तक़ी से कई प्रश्न किये और संतोषजनक उत्तर पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का काल अभूतपूर्व सांस्कृतिक क्रांति का काल था। उस काल में इस्लामी क्षेत्रों में बड़े-बड़े वैज्ञानिक प्रतिष्ठान मौजूद थे। इस काल के बारे में पूर्वी मामलों के विशेषज्ञ Reynold Alleyne Nicholson लिखते हैं कि अब्बासियों के शासन काल में व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि के कारण एसी सांस्कृतिक क्रांति आई जो अभूतपूर्व थी। इस काल में विगत की तुलना में शिक्षा की ओर अधिक ध्यान दिया गया। उस समय के लोग ज्ञान की प्राप्ति के लिए तीन महाद्वीपों की यात्राएं किया करते थे। यात्राओं से वापस आकर वे लोग जो कुछ सीखते थे उसे दूसरों को सिखाते थे।
दूसरी ओर इस्लामी क्षेत्रों में यूनानी विचारधारा और ईसाई विचारधारा के प्रचलित होने के कारण अब्बासी सरकार के कारिंदे, उन धार्मिक प्रश्नों के उत्तर स्वयं ही गढ़ लिया करते थे जिनका उनके पास कोई आधार नहीं होता था या दूसरे शब्दों में जिनके बारे में उन्हें कोई ज्ञान नही होता था। इन परिस्थतियों में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने तत्कालीन शासक के दरबार में विश्व के बड़े-बड़े विद्वानों से शास्त्रार्थ करके तर्कसंगत ढंग से उन्हें आश्वस्त किया और बहुत से जटिल प्रश्नों के उत्तर दिये। इमाम की लोकप्रियता और उनके ज्ञान से तत्कालीन अब्बासी शासक प्रसन्न नहीं था इसलिए इमाम जवाद अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया गया।