Hindi
Friday 3rd of May 2024
0
نفر 0

अलौकिक संगोष्ठी

 

पवित्र क़ुरआन दयालु ईश्वर का कथन और मानवता के लिए सभी काल में उपचारिक नुस्ख़ा रहा है। इसकी आयतों को पढ़ने से मन पर बैठी मैल दूर हो जाती है और मनुष्य जैसे जैसे तिलावत करता है वैसे वैसे आध्यात्म की सीढ़ियों पर चढ़ता जाता है। ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में पवित्र क़ुरआन की आयतों की तिलावत इस आसमानी किताब से लगाव पैदा होने की पृष्ठिभूमि तय्यार करती है। वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैः क़ुरआन की तिलावत केवल रटने के लिए नहीं है बल्कि क़ुरआन अमल के लिए है, क़ुरआन पहचान व अंतर्दृष्टि के लिए है, क़ुरआन इसलिए है कि इस्लामी समाज अपने दायित्व व कर्तव्य को समझे,भ्रम से निकले, अधंकार से मुक्ति प्राप्त करे, क़ुरआन का सम्मेलन, पवित्र क़ुरआन की तिलावत, क़ुरआनी शिक्षाओं को समझने की पृष्ठिभूमिक है।

 

मानवता को मुक्ति दिलाने वाली इस किताब का प्रभाव सब पर एक जैसा नहीं पड़ता बल्कि पवित्र मन वाले व्यक्ति ही वास्तव में पवित्र क़ुरआन से लाभान्वित हो सकते हैं। वास्तव में क़ुरआन पवित्र लोगों के लिए है जैसा कि सूरए वाक़ेआ की आयत क्रमांक 79 में ईश्वर कह रहा हैः केवल पाक ही इसे छू सकते हैं। इसलिए इस अथाह सागर से जो व्यक्ति संपर्क बनाना चाहता है उसे चाहिए कि वह अपनी आत्मा को पाप से पाक करे। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैः पवित्र क़ुरआन का आइने की भांति स्वच्छ मन से सामना करें ताकि हमारे मन पर क़ुरआन का प्रभाव पड़े। क़ुरआन को हमारी आत्मा में प्रतिबिंबित होना चाहिए। यह सबके लिए नहीं है बल्कि उनके लिए है जो अपने मन को पाक करें, क़ुरआन को ईमान, विश्वास तथा स्वीकार करने की भावना के साथ अपनाएं वरना जिन लोगों के मन में मैल है, जो इसे सुनना व समझना नहीं चाहते, पवित्र क़ुरआन की आवाज़ व संदेश का उनके मन पर तनिक भी प्रभाव नहीं  पड़ता।   हर वर्ष ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की उपस्थिति में पवित्र क़ुरआन का सम्मेलन आयोजित होता है।

 

मन को पथभ्रष्टता के अधंकार से निकालने वाले इस प्रकाशमय सम्मेलन में पूरे इस्लामी जगत से मेहमान भाग लेते हैं। इस सम्मेलन में पवित्र क़ुरआन की मधुर ढंग से तिलावत होती है। क़ुरआन के क़ारी अपनी मनमोहक आवाज़ में पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते हैं।  इस वर्ष भी यह सम्मेलन पवित्र रमज़ान की पहली तारीख़ को आधात्यमिक वातावरण में आयोजित हुआ। आयतुल्लाह ख़ामेनई ने क़ारियों द्वारा तिलावत के पश्चात भाषण दिया जिसमें उन्होंने ईश्वर पर ईमान और उससे प्रेम की जड़ों को मज़बूत करने  में पवित्र क़ुरआन की तिलावत को बहुत प्रभावी बताया। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का स्वर्ण कथन हैः क्या इस्लाम धर्म मित्रता व प्रेम से हट कर कोई चीज़ है। जी हां क़ुरआन से प्रेम, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों से प्रेम ही धर्म का पालन है और यह लगाव ही मुसलमानों के मन को इस्लामी शिक्षाओं से जोड़ता है। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता ने कहाः फूल का रंग और उसकी भीनी सुगंध ऐसा प्रेम है जिससे मनुष्य के जीवन में उसकी गहरी आस्था का परिणाम आने लगता है। यदि ये आस्था, ये तर्कपूर्ण प्रतिबद्धताएं प्रेम व भावना के साथ होंगी उस समय जीवन व्यवहारिक रूप से क़ुरआन के आदेशानुसार होगा, निरंतर सफलताएं मिलती रहेंगी, हम इसी के तो प्रयास में हैं। यदि इस क़ुरआनी सभा में हमारा मन तर्कपूर्ण स्थिति से आगे बढ़ कर, प्यार व उमंग के रूप में क़ुरआन से निकट कर दे तो इस्लामी समाज की समस्याओं का निदान हो जाएगा, यह हमारा विश्वास है। हम केलव भावना पर निर्भर नहीं है किन्तु इसे आवश्यक मानते हैं और सौभाग्यवश हमारे समाज में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के माध्यम से पहुंचने वाली इस्लामी शिक्षाओं में तर्क और प्रेम दोनों का एक दूसरे से चोली दामन का साथ है।

 

पवित्र क़ुरआन से लगाव व्यक्ति को इस किताब की शिक्षाओं को समझने में सहायता करता है और इसकी बातों में चिंतन-मनन का अवसर मुहैया करता है। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई का मानना है कि हर समाज की समस्या क़ुरआन के माध्यम से हल हो सकती है क्योंकि यदि एक समाज के लोग पवित्र क़ुरआन की आयतों पर चिंतन-मनन करें तो उनका व्यवहार पवित्र क़ुरआन के अनुसार हो जाएगा। वरिष्ठ नेता कहते हैः पवित्र क़ुरआन आदन की संतान को जीवन की सस्याओं के समाधान का मार्ग दिखाता है, यह पवित्र क़ुरआन का वचन है और इस्लामी काल के अनुभव से यह बात सिद्ध भी हो चुकी है। हम जितना अधिक पवित्र क़ुरआन के निकट होंगे, जितना हमारी आत्मा में, हमारे शरीर में चाहे व्यक्तिगत रूप से या सामाजिक स्तर पर क़ुरआन पर अमल अधिक होगा हम उतना ही कल्याण व समस्याओं के समाधान के निकट होते जाएंगे।   

 

एक क़ुरआनी समाज में न्याय ही आधार है इसलिए ऐसे समाज में निर्धनता नहीं होगी। ऐसे समाज में मनुष्य की प्रतिष्ठा सुरक्षित रहेगी, ऐसे समाज की राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था और उसके सदस्यों की आर्थिक स्थिति, बाज़ार और उसके लेन-देन सहित दूसरी हज़ारों विशेषताएं, पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर आधारित होंगी। वरिष्ठ नेता का मानना है कि प्रतिष्ठा, कल्याण, भौतिक व आध्यात्मक प्रगति, नैतिक गुण, शत्रु पर जीत पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल द्वारा प्राप्त होगी। वरिष्ठ नेता, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान की इस्लामी क्रान्ति की सफलता को क़ुरआनी सभ्यता के गठन की पृष्टिभूमि बताते हुए कहते हैः हमारा उद्देश्य ऐसी सभ्यता की स्थापना है जिसका आधार आध्यात्म, ईश्वर, क़ुरआनी शिक्षाएं और ईश्वरीय निर्देश हों। यदि आज जागरुक हो चुके इस्लामी राष्ट्र ऐसी सभ्यता की बुनियाद रखे तो मानवता का कल्याण हो जाएगा। इस्लामी गणतंत्र ईरान और इस्लामी क्रान्ति का यही उद्देश्य है, हम ऐसी सभ्यता की स्थापना के प्रयास में हैं। वरिष्ठ नेता का मानना है कि ऐसे समाज व सभ्यता की स्थापना केवल पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल द्वारा ही संभव है। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैः हम अपने व्यवहार को क़ुरआनी व ईश्वरीय आदेशानुसार बनाएं। केवल कहने या दावा करने से काम नहीं चलेगा बल्कि व्यवहारिक रूप से इस दिशा में क़दम बढ़ाएं। क़ुरआन से प्रेम व लगा पैदा करें। क़ुरआन की तिलावत जब आप करते हैं तो जगह जगह पर आपको आदेश, निर्देश और नसीहतें मिलती हैं। सबसे पहले इन्हें मन से अपने जीवन में उतारिये इन पर अमल कीजिए। यदि हममें से हर एक इन्हें व्यवहारिक बनाने का प्रण ले ले तो समाज प्रगति करेगा और ऐसा समाज क़ुरआनी हो जाएगा।

 

पवित्र क़ुरआन के आदेशानुसार आगे बढ़ना और क़ुरआन के दृष्टिगत आदर्श समाज की प्राप्ति सरल काम नहीं है। भौतिक शक्तियां क़ुरआन पर अमल के मार्ग में रुकावट बन कर खड़ी हैं और आरंभ से ही इन शक्तियों ने मुसलमानों के लिए समस्याएं पैदा कर रखी हैं। वरिष्ठ नेता का मानना है कि भौतिक दृष्टि मनुष्य को मुनाफ़ाख़ोरी की ओर ले जाती है, उसे आध्यात्म से दूर कर एक अहंकारी व्यक्ति बना देती है। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैः जब दृष्टिकोण भौतिक होगा, मुनाफ़ाख़ोरी पर आधारित होगा, आध्यात्म व नैतिक मूल्यों से दूर होगा, तो इसके परिणाम में सैनिक, राजनैतिक और गुप्तचर शक्ति को राष्ट्रों के शोषण के लिए प्रयोग किया जाएगा। पिछली कुछ शताब्दियों में भौतिकता की चोटी पर पहुंचने वाली पश्चिमी सभ्यता ने इससे हट कर कुछ और नहीं किया है। मानवता का शोषण किया, राष्ट्रों पर वर्चस्व जमाया, उनके ज्ञान से लाभ उठाया ताकि दूसरे राष्ट्रों की सभ्यताओं का सर्वनाश करे और राष्ट्रों की संस्कति व अर्थव्यवस्था पर क़ब्ज़ा कर ले।

 

वरिष्ठ नेता का मानना है कि जिस सभ्यता का आधार आध्यात्म नहीं होगा ऐसी सभ्यता में नैतिकता भी नहीं होगी। इसलिए नैतिकता केवल पश्चिम की फ़िल्मों में दिखाई देती है न कि वास्तविक पश्चिमी जगत में। वरिष्ठ नेता पश्चिम की भौतिकवाद पर आधारित सभ्यता के अमानवीय व्यवहार की ओर संकेत करते हुए कहते है यदि आपने अट्ठारहवीं, उन्नीसवीं, और बीसवीं शताब्दी की स्थिति का अध्ययन किया हो वह अध्ययन जो स्वयं पश्चिम ने पेश किया है, न कि उनके विरोधियों ने, तो आपको पता चलेगा कि इन्होंने पूर्वी एशिया में भारत में, चीन में, अफ़्रीक़ा में, अमरीका में मानवता के सिर पर कैसे कैसे अत्याचार किए हैं। राष्ट्रों के जीवन को नरक बनाया, उन्हें जला डाला केवल अपने लाभ के लिए। आज ही देखें पूर्वी एशिया के देश म्यान्मार में हज़ारों मुसलमानों का जनसंहार किया जा रहा है, यदि यह मान लिया जाए जैसा कि दावा किया जा रहा है कि यह जनसंहार धार्मिक उन्माद व अनुदारिता के कारण है, मानवाधिकार के झूठे दावेदारों के मुंह बंद हैं। वे जो पशु-पक्षियों के लिए दया की बात करते हैं, इस बार निर्दोष व निहत्थे, बच्चों, महिलाओं, व पुरुषों के जनसंहार पर मौन धारण किए हुए हैं और उसका औचित्य भी पेश कर रहे हैं। ये इनका मानवाधिकार है, ऐसा मानवाधिकार जो नैतिकता, आध्यात्म व ईश्वर से कटा हुआ है। कहते हैं ये म्यान्मारी नहीं है, ठीक है ये मान लेते हैं कि ये म्यान्मारी नहीं हैं हालांकि यह झूठ है, तीन सौ से चार सौ वर्षों से ये वहां रह रहे हैं, तो क्या इनकी हत्या कर दी जाए। इसी देश में और इसके पड़ोंसी देशों में पश्चिम विशेष रूप से ब्रितानी साम्राज्य ने वर्षों तक इन्हीं लोगों के साथ ऐसा व्यवहार अपनाया था।

 

वरिष्ठ नेता की दृष्टि में पश्चिमी सभ्यता ने धर्म व आध्यात्म से दूरी के कारण पूरे इतिहास में मानवता पर नाना प्रकार के अत्याचार किए हैं कि जिसका लक्ष्य केवल लाभ कमाना रहा है। पश्चिम के तड़क-भड़क भरे व्यापारिक बाज़ार की स्थापना, विश्व के लोगों से अधिक से अधिक मुनाफ़ा बटोरना के लिए रही है। यदि मुसलमान राष्ट्र पश्चिम पर निर्भर हुए बिना तथा पश्चिम की भौतिक दृष्टि दामन बचाते हुए केवल क़ुरआन पर निर्भर हो जाएं तो यहां तक कि फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता स्वतंत्र हो जाएगी और क़ुरआनी सभ्यता धीरे धीरे लोगों को मानवीय परिपूर्णताओं की ओर ले जाएगी। वरिष्ठ नेता कहते हैः भौतिकवाद से दूषित इस वातावरण में पवित्र क़ुरआन के अथाह आध्यात्म में सांस लेना चाहिए ताकि सांसारिक बुराइयों से पाक हो जाएं और ये इस आसमानी किताब से निरंतर लगाव के बिना संभव नहीं है।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इस्लाम और सेक्योलरिज़्म
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा उम्महातुल ...
अज़ादारी रस्म (परम्परा) या इबादत
शोहदाए बद्र व ओहद और शोहदाए ...
इमाम अली रज़ा अ. का संक्षिप्त जीवन ...
दरबारे इब्ने जियाद मे खुत्बा बीबी ...
महिला और समाज में उसकी भूमिका
आदर्श जीवन शैली- १
दया के संबंध मे हदीसे 3
दुआए तवस्सुल

 
user comment