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Tuesday 26th of November 2024
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इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

आज ज़ीक़ाद महीने के अंतिम दिन मुसलमान इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का शोक मना रहे हैं और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके पवित्र परिजनों के उच्च स्थान के सम्मान में इन महापुरुषों के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का फिर से संकल्प लेते हैं। इन महापुरुषों ने जो यादगारें हमारे लिए छोड़ी हैं वे उनकी युक्तिपूर्ण नीतियों व मूल्यवान बातों का ख़ज़ाना हैं। निःसंदेह ईश्वर की ओर से नियुक्त इन महापुरुषों के उपदेशों का अनुसरण आज के युग की बहुत सी समस्याओं का निदान कर सकता है। आज इस दुखद अवसर पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सय्यद अली ख़ामेनई के इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व के संबंध में विचारों से कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं।वरिष्ठ नेता कहते हैः इमाम जवाद अलैहेस्सलाम दूसरे इमामों की भांति हमारे लिए आदर्श व मार्गदर्शक हैं। ईश्वर के इस महान बंदे का जीवन नास्तिकता व उद्दंडता से संघर्ष में बीता।किशोरावस्था में इस्लामी जगत में इमाम नियुक्त हुए और अपनी कम आयु के बावजूद ईश्वर के शत्रुओं से कड़ा संघर्ष किया। इस प्रकार कि 25 वर्ष की आयु में ईश्वर के शत्रुओं के लिए उनका अस्तित्व असहनीय हो गया और उन्होंने उन्हें एक षड्यंत्र के अंतर्गत ज़हर देकर शहीद कर दिया। इस महान इमाम ने इस्लाम के बहुआयामी जेहाद के महत्वपूर्ण भाग का व्यवहारिक नमूना पेश किया और हमें बहुत बड़ा पाठ सिखाया। वह महापाठ यह है कि जब मिथ्याचारी व पांखडी शक्तियों से मुक़ाबला हो तो हमें साहस दिखाना चाहिए और इन शक्तियों से मुक़ाबले के लिए जनता को जागरुक बनाना चाहिए। जब मामून अब्बासी जैसा शत्रु इस्लाम का दम भरने का दिखावा करे तो जनता को उसे पहचनवाना कठिन काम होता है। जैसा कि वरिष्ठ नेता ने संकेत किया कि इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने ऐसे संवेदनशील काल में जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला जब अत्याचारी धर्म के नाम पर शासन कर रहे थे। इसलिए धर्म की सही शिक्षाओं का उल्लेख उस समय एक कठिन काम था किन्तु इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने बनी अब्बास शासकों के अत्याचार भरे काल में अपने पच्चीस वर्ष की अल्पायु के बावजूद धर्म की मूल शिक्षाओं का उल्लेख कर इस्लाम के ध्वज को फहराए रखा। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत का काल सत्रह वर्ष का था जिसके दौरान मामून और मोतसिम नामक दो अब्बासी शासकों की हुकूमत थी। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को बहुत अधिक राजनैतिक दबावों का सामना था इसलिए वे लोगों के वैचारिक व सांस्कृतिक मार्गदर्शन के लिए विशेष शैली अपनाते थे। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने मुसलमानों के मार्गदर्शन में ज्ञान और नैतिकता पर ध्यान दिया। वह ज्ञान-विज्ञान के महत्व के संबंध में कहते हैःतुम्हारे लिये ज्ञान की प्राप्ति अनिवार्य है क्योंकि यह सभी के लिए आवश्यक है। ज्ञान व इसकी समीक्षा से संबंधित हर बात अच्छी चीज़ है। ज्ञान-विज्ञान धार्मिक बंधुओं को एक दूसरे से जोड़ता है और वह सभाओं के लिए उचित उपहार, यात्रा में मित्र तथा वतन से दूरी व एकांत का साथी है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के जीवन का एक अति महत्वपूर्ण आयाम यह है कि उन्हें कम आयु के बावजूद ज्ञान व आस्था संबंधी मामलों की व्याख्या का अथाह ज्ञान था। वे अपनी किशोरावस्था में अपने काल के सबसे बड़े विद्वान थे। सवाएक़ुल मोहर्रिक़ा नामक किताब में इब्ने हजर हैसमी लिखता हैः वह अर्थात इमाम मोहम्मद तक़ी कम आयु के बावजूद ज्ञान, बुद्धि, व सहिष्णुता की दृष्टि से विद्वानों से सर्वोत्तम थे।इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम जीवन में परिपूर्णता तक पहुंचने में ज्ञान को अतिमहत्वपूर्ण तत्व बताते हैं और वास्तविकता के इच्छुक लोगों से अनुशंसा करते हैं कि लोक-परलोक की वैध इच्छाओं व सफलताओं तक पहुंचने के लिए इस उपयोगी शक्ति से आवश्यक लाभ उठाएं। वे ज्ञान-विज्ञान को अच्छे कामों को पूरा करने की एक शर्त के रुप में गिनवाते हुए कहते हैः स्वास्थ्य , संपन्नता, ईश्वर की ओर से अवसर और ज्ञान मनुष्य के भलें व सदकर्मों का कारण बनता है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इस वास्तविकता को देख रहे थे कि भविष्य में मनुष्य ऐसे स्थान पर पहुंच जाएगा जब समाजों की वरीयता व शक्ति का महत्वपूर्ण मानदंड ज्ञान-विज्ञान होगा। इसलिए अनेक अवसरों पर मुसलमानों को ज्ञान की प्राप्ति व उसकी उत्पत्ति के लिए प्रेरित करते थे। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम मुसलमानों के वैचारिक व सांस्कृतिक मार्गदर्शन में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित करने के साथ साथ उनके नैतिक व आत्मिक स्वास्थय पर विशेष ध्यान दिया करते थे। वे भी पैग़म्बरे इस्लाम के अन्य पवित्र परिजनों की भांति लोगों को अपने व्यवहार से सदकर्म की ओर बुलाते थे। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की एक अनुंशसा जो नैतिक व आत्मिक स्वास्थय पर बहुत प्रभाव डालती है। उनकी यह सिफ़ारिश है जो उन्हों ने मोमिन बंदे की आवश्यकताओं के बारे में की है। वह कहते हैः मोमिन को ईश्वर की ओर से भले कर्मों की क्षमता अन्तरात्मा की नसीहत और दूसरों की नसीहतों को मानने की आवश्यकता होती है। इस मूल्यवान कथन में मोमिन बंदे की प्रगति में तीन महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख किया गया है। ईश्वर की ओर से भले कर्मों की क्षमता, कामों को अंजाम देने में मनुष्य की क्षमता का रहस्य है। यह अवसर उस समय मिलता है जब काम करने की भावना विशुद्ध हो और वह काम ईश्वर की प्रसन्नता के लिए करे। निःसंदेह ईश्वर सदाचारियों व सद्भावना रखने वालों की सहायता करेगा। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने अपनी इस मूल्यवान अनुशंसा में अन्तरात्मा की नसीहत की ओर संकेत किया है। यदि आत्म निरीक्षण न हो अर्थात यदि मनुष्य की आत्मा उसे पाप करने से न रोके तो इच्छाएं उस पर क़ाबू पालेंगी और उसे पथभ्रष्टता व भ्रष्टाचार की ओर ले जाएंगी। इस वास्तविकता को मानना कि संसार में ईश्वर हर स्थान पर उपस्थित है और यह विश्वास कि मनुष्य किसी भी समय या स्थान पर ईश्वर की दृष्टि से दूर नहीं है मनुष्य को नैतिक सुरक्षा प्रदान करता है और उसके ईमान को हानि पहुंचाने वाली बुराइयों से बचाता है। मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की दृष्टि में मोमिनों के संबंधों व व्यवहार में नसीहतें स्वीकार करना और दूसरों का भला चाहना भी शामिल होना चाहिए। आलोचना स्वीकार करना नैतिक पूरिपूर्णतः तक पहुंचने का भाग है। इस अच्छी आदत से मामले सुव्यवस्थित होते हैं और बहुत सी त्रुटियां दूर होती हैं।इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने नसीहत स्वीकार करना, मोमिन की आवश्यकताओं में गिनवाया है और इसकी अनुशंसा की है। इस प्रकार इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने एक ओर ज्ञान-विज्ञान के सार्थक परिणाम व लाभदायक आयामों पर बल दिया तो दूसरी ओर उन्होंने मनुष्य के आत्मिक स्वास्थय व वैचारिक परिपक्वता के लिए प्रयास किया। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने लोगों के वैचारिक व सांस्कृतिक मार्गदर्शन में इन दोनों तत्वों को परिपूर्णतः तक पहुंचने के लिए उड़ने वाले दो परों के समान महत्वपूर्ण बताया।इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुत प्रयास करते थे। बहुत अधिक दान दक्षिणा के कारण वे जवाद की उपाधि से प्रसिद्ध थे। जवाद का अर्थ होता है महादानी। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम दूसरों की समस्याओं के निदान को ईश्वरीय अनुकंपा के पात्र बनने की शर्त बताते हैं और वे इस अच्छी आदत में केवल ईश्वर की प्रसन्नता को दृष्टिगत रखते थे। इमाम म


source : www.abna.ir
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