मुहर्रम के आने के साथ ही हृदयों में एक बार फिर हुसैनी उत्साह एवं जोश उत्पन्न हो गया है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ऐसे महान संघर्षकर्ता हैं जिनकी आकांक्षाएं सदैव ही हर काल में जारी रहेंगी और यह हर पीढ़ी के साथ उस जल की भांति रहेंगी जो हर उपजाऊ भूमि को तृप्त करता है और प्रयासे पौधे को जीवन देता है। वे मानवता, स्वतंत्रता और शहादत प्रेम के प्रेरणा दायक प्रतीक हैं। सलाम हो हुसैन पर और उनकी महान आत्मा पर।लगभग एक वर्ष पूर्व जब मध्यपूर्व के देशों के पिट्टठू शासकों के विरुद्ध जनान्दोलन आरंभ हुए तो उस समय बहुत से लोगों ने यह कहा था कि यह आन्दोलन अल्पकालीन राष्ट्रवादी आन्दोलन हैं किंतु जब अल्लाहो अकबर और ला इलाहा इल्लल्लाह के नारे ट्यूनीशिया, मिस्र, बहरैन, यमन तथा लीबिया की सड़कों और वहां के वातावरण में गूंज उठे और इस्लामी देशों की सड़कें और चौराहे क्रांतिकारी नमाज़ियों से भर गए तो फिर ऐसे बहुत ही कम लोग बचे हैं जो इन आन्दोलनों के इस्लामी न होने की बात कहें। इस्लामी जागरूकता वास्तव में पश्चिम एवं पूर्व के आर्थिक, राजनैतिक तथा वैचारिक वर्चस्व के विरूद्ध एक सशक्त एवं सुव्यवस्थित प्रक्रिया है। यह जागरूकता जो एक लंबे मौन के पश्चात इस्लाम की ओर वापसी पर केन्द्रित है, बहुत से इस्लामी आन्दोलनों को अस्तित्व देने का कारण बनी और इसने ऐसी नई परिस्थितियों को स्वरूप दिया जो न केवल यह कि अप्रत्याशित थी बल्कि उसको पहचानने और उसका मुक़ाबला करने में वर्चस्ववादी अभी भी अचंभित हैं और इस बारे में उन्हें जटिल समस्याओं का सामना है। इस आन्दोलन की आन्तरिक संस्कृति एवं मूल्य, मानव की ईश्वरीय प्रवृत्ति के अनुरूप है और भौतिक मूल्यों तथा भौतिक संस्कृति से अधिक शक्तिशाली एवं श्रेष्ठ है। यह विषय उन लोगों की समझ से बाहर है जो विषयों को केवल पश्चिमी भौतिकवादी विचारधारा के परिप्रेक्ष्य में ही परखते हैं।इस्लामी जागरूकता की विस्तार प्रक्रिया इस प्रकार की है कि धर्म की धीरे-धीरे सामाजिक और राजनैतिक भूमिका अधिक बढ़ी और इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि धर्म, अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर एक प्रचलित एवं प्रभावी विषय के रूप में सामने आया। वर्तमान समय में पश्चिम, पूर्वी ब्लाक या कम्यूनिज़्म जैसे शब्द/राजनैतिक इस्लाम, क्रांतिकारी इस्लाम और ख़ुमैनी के इस्लाम जैसे शब्दों में बदल गए हैं। वर्तमान समय में बहुत से टीकाकार और समीक्षक इस्लामी जागरूकता की जड़ों और इसके कारकों को समझने के प्रयास कर रहे हैं। स्पष्ट है कि इस प्रकार के आन्दोलनों को पहचानने के लिए मुसलमानों की आस्था और उनकी विचारधारा पर ध्यान दिया जाना चाहिए।यद्यपि ईरान में इस्लामी क्रांति, पिछली अर्धशताब्दी के दौरान अन्याय और वर्चस्व से संघर्ष के परिणामों का एक स्पष्ट उदाहरण है किंतु यह महाक्रांति स्वयं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अमर महाआन्दोलन से प्रभावित है जिन्होंने अपने आन्दोलन से जीवन के बारे में दृष्टिकोण को ही बदल दिया और जीवन, सच्चाई को स्वीकार करना, न्याय की चाहत, स्वतंत्रता और मानव की महानता आदि के संबन्ध में नई परिभाषा पेश की। उस समय जब यज़ीद जैसे अत्याचारी तानाशाह का अस्तित्व जिसने लोगों के जीवन को अपमानित कर रखा था और वह लोगों के वांछित जीवन के मार्ग में बाधा बना हुआ था, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने लोगों को सम्मानपूर्ण एवं कल्याणपूर्ण जीवन की ओर वापस लाने के लिए करबला की महान घटना को अस्तित्व दिया और पूरी चेतना के साथ मौत का चयन किया। इमाम हुसैन के इस आन्दोलन का स्पष्ट लक्ष्य धर्म और राजनीति के बीच अटूट संबन्ध, समाज के राजनैतिक भविष्य के बारे में धार्मिक लोगों की भूमिका तथा लोगों को सम्मानपूर्ण एवं लक्ष्यपूर्ण जीवन की ओर ले जाना है।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की दृष्टि से प्रतिष्ठा और मानवीय सम्मान के साथ जीवन अर्थपूर्ण तथा सुन्दर है और जीवन ईश्वर की ओर से उपहार है जिसका अधिकार सब लोगों के लिए सुनिश्चित किया गया है। इसीलिए मानव जीवन को समाप्त करने के लिए किसी भी प्रकार के माध्यम का प्रयोग निंदनीय है और हर वह व्यक्ति जो अत्याचार का शिकार हो उसके लिए अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़ा होना आवश्यक है। पवित्र क़ुरआन की दृष्टि में जो भी ऐसा नहीं करता है उसने स्वयं पर ही अत्याचार किया है। सूरए निसा की आयत संख्या ९७ में कहा गया है कि फ़रिश्ते अत्याचारग्रस्तों से पूछेंगे कि सांसारिक जीवन में तुम कैसे थे? वे उत्तर देंगे कि हम धरती पर वंचित कर दिये गए थे। इस पर फ़रिश्ते कहेंगे कि क्या ईश्वर की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम पलायन करते? अतः वे ऐसे लोग हैं जिनका ठिकाना नरक है और उनका अंजाम बुरा है।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ईश्वरीय व न्याय की प्राप्ति का आन्दोलन, अत्याचार के अंधकार तथा निराशा के वातावरण में बिजली की तरह चमका और अपने साथ प्रकाश, चेतना और अन्तर्दष्टि जैसी विशेषताओं को उपहार स्वरूप लाया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने साहसिक आन्दोलन से लोगों पर छाए अपमान के वातावरण को समाप्त किया और इस्लामी समाज को सम्मान दिया। इसी आधार पर इमाम हुसैन के आन्दोलन में मानवीय समृद्वि और मानव जागरूकता के विकास को क़दम-क़दम पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। "हुर इब्ने यज़ीदे रियाही" उन लोगों में से थे जो इमाम हुसैन के आन्दोलन की सच्चाई को पहचानकर झूठों के गुट से निकलें और सच्चों के साथ आ मिले। बड़ी संख्या में यज़ीद के सैनिकों के मुक़ाबले में इमाम हुसैन और उनके कुछ साथियों का आन्दोलन यद्यपि विदित रूप से तो सफल नहीं रहा किंतु इमाम हुसैन की शहादत ने इस्लामी समाज को बुरी तरह से झिंझोड़ दिया और उनके भीतर प्रतिरोध और बलिदान की भावना जगाकर उस घेरे को तोड़ दिया जिसे उमवी शासन ने उनके चारों ओर बना रखा था। हस हृदयविदारक घटना के पश्चात समाज को पता चला कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजन ही सच्चाई पर थे और अत्याचारी उमवी शासन न केवल यह कि इस्लामी नियमों के प्रति बिल्कुल ही कटिबद्ध नहीं है बल्कि यह एक ऐसा तानाशाही एवं भ्रष्ट शासन है जो इस्लामी समाज को अज्ञानता के काल की ओर ले जाना चाहता है। यही कारण है कि तत्कालीन सरकार के विरुद्ध घृणा की लहर आरंभ हुई। इराक और हेजाज़ अर्थात वर्तमान सऊदी अरब के लोगों में जागरूकता आई और वे ग्लानि का आभास करने लगे कि उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नवासे का साथ नहीं दिया। धीरे-धीरे इस्लामी समाज में जागरूकता की लहर फैलने लगी और तव्वाबीन, मुख़्तार तथा अन्य गुटों के आन्दोलनों की भूमिका प्रशस्त हुई। अबुल असवद दोएली जो अरबी व्याकरण इल्मे नहव के जनक भी कहे जाते हैं, जब भी इमाम हुसैन और करबला की घटना को याद करते थे तो वे सूरए आराफ़ की आयत संख्या २३ की तिलावत करते थे। इस आयत में ईश्वर कहता है कि उन्होंने कहा कि हे ईश्वर, हमने स्वयं पर अत्याचार किया है और यदि तूने हमें क्षमा न किया और हमपर कृपा न की तो हम घाटा उठाने वालों में से हो जाएंगे।इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामेनेई समाज में सुधार, अच्छी बातों का आदेश देने तथा बुरी बातों से रोकने, प्रतिरोध, त्याग और एकता एवं एकजुटता आदि को करबला की घटना की शिक्षाओं में बताते हुए इनमे सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा समाज में जागरूकता की ओर संकेत करते हैं। इस संबन्ध में वे कहते हैं कि करबला की घटना हमें यह पाठ देती है कि धर्म की रक्षा में मनुष्य के लिए अन्य चीज़ों की तुलना में दूरदर्शिता या अंतरदृष्टि की अधिक आवश्यकता है। सूझ-बूझ न रखने वाले इस बात को समझे बिना कि वे धोखा खा रहे हैं असत्य के मोर्चे में शामिल हो जाते हैं। जैस
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