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Tuesday 26th of November 2024
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तेल के संबंध में ईरानी निर्णय पर प्रतिक्रियाओं का क्रम जारी

तेल के संबंध में ईरानी निर्णय पर प्रतिक्रियाओं का क्रम जारी

ईरान ने ब्रिटेन और फ्रांस को तेल का जो निर्यात बंद कर दिया है जिस पर प्रतिक्रियाओं का क्रम जारी है। इस संदर्भ में युरोपीय संघ के विदेश नीति के प्रवक्ता ने कहा है कि ईरान की ओर से संभावित कच्चे तेल का निर्यात बंद होने की स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए इस संघ के पास कच्चे तेल का पर्याप्त भंडार है। ईरान ने १९ फरवरी को आधिकारिक रूप से ब्रिटेन और फ्रांस को तेल का निर्यात बंद करने की घोषणा की है। इस समाचार की घोषणा के बाद अंतर्राष्ट्रीय मंडियों में तेल के मूल्यों में वृद्धि हो गयी और लगभग प्रति बैरेल तेल का मूल्य १२० डालर हो गया जो पिछले आठ महीनों में सबसे अधिक है। अब कहा यह जा रहा है कि प्रति बैरेल तेल का मूल्य १५० डालर तक पहुंच जायेगा। अभी १९ फरवरी को ही ईरान ने दो युरोपीय देशों को तेल का निर्यात बंद करने की घोषणा की है परंतु ईरान का तेल ख़रीदने वाले युरोपीय देशों ने इस संबंध में बड़े उतावलेपन में प्रतिक्रिया दिखाई। यहां तक कि उन युरोपीय देशों ने भी ईरान के इस निर्णय पर चिंता जताई है जो ईरान के तेल पर कम निर्भर हैं। अलबत्ता उनकी चिंता का कारण स्पष्ट है और इसकी संवेदनशीलता विश्व में ऊर्जा की सुरक्षा से संबंधित है। जापान के एक समाचार पत्र यू म्यूरी ने भी अपनी २० फरवरी की रिपोर्ट में लिखा है कि संभव की जापान को ईरान से तेल न ख़रीदने के अमेरिकी प्रतिबंध से अलग रखा जाये। इस समाचार पत्र ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अमेरिका और जापान में इस संबंध में पिछले सप्ताह सहमति बनी है जो फरवरी के अंत तक आधिकारिक हो जायेगी। समाचार पत्र यू म्यूरी के अनुसार ईरान से कच्चे तेलों का आयात कम होने की स्थिति में टोकियो सरकार को कठिनाइयों का सामना होगा और जापान अमेरिका के इस एक पक्षीय प्रतिबंध से स्वयं को अलग रखने का इच्छुक है। उल्लेखनीय है कि जापान पर भी अमेरिका की ओर से महीनों से इस बात के लिए दबाव था कि वह ईरान से तेल लेना बंद कर दे। वर्तमान समय में यह चिंता गम्भीर रूप से मौजूद है कि युरोपीय देश ऊर्जा संकट का मुकाबला किस तरह करेंगे जबकि उन्हें नाना प्रकार की आर्थिक समस्याओं का सामना है। यहां पर प्रश्न यह उठता है कि युरोप को ईरान के तेल से क्यों वंचित होना पड़ा है? उसका उत्तर स्पष्ट है और वह यह है कि युरोपीय संघ अपने राष्ट्रीय हितों पर ध्यान दिये बिना अमेरिकी दबाव में आ गया है और इस दबाव के परिणाम में ही उसने ६ महीनों बाद ईरान से तेल ख़रीदने के बारे में निर्णय लेने वाला था परंतु ईरान ने उससे पहले ही फ्रासं और ब्रिटेन को तेल का निर्यात बंद करके यह बता दिया है कि उसे तेल के नये ग्राहकों की कोई कमी नहीं है और वह अमेरिका, पश्चिम तथा युरोपीय देशों की अर्तार्किक मांगों को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)........166


source : www.abna.ir
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