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आईएस ने तुर्की और सऊदी अरब की धरती पर क्यों कदम जमाए?

अबनाः सितंबर 2011 में बराक ओबामा की आईएस को कमजोर करने और अंततः नष्ट करने की प्रतिज्ञा के बावजूद, अमेरिका और उसके सहयोगी यानी सऊदी अरब, तुर्की और इस्राईल ने पर्दे के पीछे आईएस को नष्ट करने के प्रयासों के बजाए अपनी पूरी ताक़त बश्शार असद
आईएस ने तुर्की और सऊदी अरब की धरती पर क्यों कदम जमाए?

अबनाः सितंबर 2011 में बराक ओबामा की आईएस को कमजोर करने और अंततः नष्ट करने की प्रतिज्ञा के बावजूद, अमेरिका और उसके सहयोगी यानी सऊदी अरब, तुर्की और इस्राईल ने पर्दे के पीछे आईएस को नष्ट करने के प्रयासों के बजाए अपनी पूरी ताक़त बश्शार असद को उखाड़ फेंकने पर झोंक दी।
अमेरिका की अगुवाई में आईएस (दाइश) नामक आतंकवादी संगठन के खिलाफ गठबंधन बनाए जाने के बावजूद अब तक आईएस को हार क्यों नहीं हुई है, ऐसा मुद्दा है कि बहुत सारे विश्लेषणों और पत्रकारों के लिए सवाल का विषय बना हुआ है। इस आतंकवादी समूह ने इराक और सीरिया में अपने कब्ज़े की ज़मीन को सुरक्षित रखने के अलावा हाल ही में बड़े पैमाने पर कई आतंकवादी हमले किए हैं ।
एक अमेरिकी वेबसाईट प्रोजेक्ट सैंडीकेट ने आईएस के अस्तित्व के सवाल की समीक्षा की है और उसका विश्वास है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों की प्राथमिकता आईएस की बर्बादी नहीं थी बल्कि उनकी प्राथमिकता बश्सार असद को सत्ता से हटाना था।
मौत का बाजार गर्म करने वाले आईएस के जो आतंकवादी हमले, इस्तांबुल, ढ़ाका, बग़दाद और सऊदी अरब के मदीना शहर में किए गए हैं वह इस बात का प्रतीक हैं कि आईएस वाले यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के कुछ क्षेत्रों को हमलों का निशाना बना सकते हैं। आईएस ने इराक़ और सीरिया में अपने मोर्चे को सुरक्षित रखा है और इसके साथ ही नरसंहार मचाने के लिए अपने आतंक के नेटवर्क को फैला दिया है, फिर भी आईएस को हराना कोई मुश्किल काम नहीं है। मुश्किल यह है कि इराक़ और सीरिया में हवाई हमले कर रहे देशों में से कोई भी देश चाहे अमेरिका हो या उसके सहयोगी हों, आईएस को अपना असली दुश्मन नहीं मान रहे हैं।
आईएस एक छोटा सा आतंकी गुट है जिसके 20 से 30 हजार लोग सीरिया और इराक़ में हैं और लगभग 5 हजार लोगों लीबिया में हैं, और सीरिया में सक्रिय, 125 हजार, इराक़ में 2 लाख 71 हजार 500 लोग, सऊदी अरब में 2 लाख 33 हजार 500 व्यक्तियों, तुर्की में 5 लाख 10 हजार लोगों की तुलना में बहुत कम है।
सितंबर 2011 में बराक ओबामा की आईएस को कमजोर करने और अंततः नष्ट करने की प्रतिज्ञा के बावजूद, अमेरिका और उसके सहयोगी यानी सऊदी अरब, तुर्की और इस्राईल ने पर्दे के पीछे आईएस को नष्ट करने के प्रयासों के बजाए अपनी पूरी ताक़त बश्शार असद को उखाड़ फेंकने पर झोंक दी।
इस्राईली सेना की ख़ुफ़िया एजेंसी का प्रमुख जनरल हरटेजी हलवी ने कहा था: हम नहीं चाहते कि आईएस को सीरिया में हार का सामना हो। हम आईएस की सफलता को ईरान समर्थक असद सरकार के सीरिया की लड़ाई में बच निकलने पर वरीयता देते हैं। बड़ी शक्तियों का क्षेत्र से पीछे हटना और इस्राईल को ईरान और हिजबुल्लाह के मुक़ाबले में अकेला छोड़ देना हमें मुश्किल में डाल देगा तो ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमें मजबूरन कुछ भी करना पड़ेगा।
इस आधार पर हम देखते हैं कि इस्राईल की प्राथमिकता आईएस को खत्म करना नहीं बल्कि असद सरकार को उखाड़ फेकने और सीरिया में ईरान और हिज़्बुल्ला के पैठ को कम करने के लिए आईएस की मदद करना है।
सीरिया में युद्ध अमेरिका के लिए इस देश की रूस को मध्यपूर्व से निकाल बाहर करने की लड़ाई के सिलसिले की एक कड़ी है। वास्तव में मध्यपूर्व में अमेरिका की जंगें और इसी तरह अफ़गानिस्तान, इराक़, लीबिया, सीरिया और अन्य स्थानों पर हमले, सोवियत संघ की विरासत को और अब रूस की विरासत को मिटाने और अपना पैठ जमाने के लिए हैं। लेकिन इन प्रयासों को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है।
दूसरी ओर सऊदी अरब का भी असली उद्देश्य ईरानी पैठ को कम करने के लिए बश्शार असद सरकार को उखाड़ फेंकना है। सीरिया, ईरान और सऊदी अरब की  प्रॉक्सी वार का एक बड़ा मैदान है जैसा कि हम यमन में भी देख रहे हैं।
तुर्की भी क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बश्शार असद सरकार को उखाड़ फेंकने में लगा है और सीरिया के कुर्दों को वह असद की तरह अपना दुश्मन समझता है। लेकिन आईएस अब तुर्की के लिए एक बड़ी परेशानी बन गया है और हाल ही में उसने तुर्की में कई आतंकवादी हमले किए हैं। कहा जाता है कि सांप को दूध पिलाने वाले को भी डसने से बाज़ नहीं आता, यही कुछ तुर्की के साथ हो रहा है।
ईरान और रूस अपने क्षेत्रीय हितों के पीछे हैं, लेकिन दोनों ने आईएस को हराने और क्षेत्र की दूसरी परेशानियों को हल करने के लिए अमेरिका के साथ सहयोग की घोषणा की है, लेकिन अमेरिका ने बश्शार असद की सरकार को उखाड़ फेंकने पर जोर दिया और ईरान व रूस ने इस पेशकश को स्वीकार नहीं किया।
अमेरिकी बश्शार असद के समर्थन के लिए व्लादिमीर पुतिन की आलोचना करते हैं और रूस वाले भी बश्शार असद सरकार की क़ानूनी सरकार के तख़्ता पलट की अमेरिकी कोशिशों की निंदा करते हैं।
यह जानना ज़रूरी है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों की बश्शार असद की क़ानूनी सरकार को गिराने की कोशिशें संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र का उल्लंघन है। जबकि रूस और ईरान का असद का समर्थन करना संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र के अनुसार है और यह सीरिया के अपने बचाव के लिए सही है। संयुक्त राष्ट्र का घोषणापत्र, देशों को यह अनुमति नहीं देता कि किसी देश के शासक के तानाशाह होने के बहाने उसे हुकूमत से बेदखल करें।
हालिया पांच सालों में जब भी बश्शार असद सेना कमजोर हुई है जिबहतुन्नुस्रा और आईएस जैसे आतंकी गुटों को मज़बूती मिली है और वह शक्तिशाली हुए हैं। असद और नके इराकी समकक्ष खुद ही आईएस को हरा सकते हैं इस शर्त के साथ कि अमेरिका और सऊदी अरब आईएस का समर्थन न करें और उन्हें हथियार न दें।
इस आधार पर ऐसा दिखाई देता है कि अगर तुर्की और सऊदी अरब चाहते हैं कि वह अपने क्षेत्र में आईएस के हमलों से बचे रहें और नहीं चाहते कि आईएस के उन देशों में भी पांव जमें और अगर अमेरिका के आतंकवाद के मुकाबला की अपनी रणनीति में सच्चाई है तो उसे असद को हटाने पर जोर देने के बजाए अपना ध्यान आईएस को हराने और नष्ट करने पर केंद्रित करना चाहिए।


source : abna24
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