Hindi
Tuesday 26th of November 2024
0
نفر 0

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने कहा कि हे अली, जिब्राईल ने मुझे तुम्हारे बारे में एक एसी सूचना दी है जो मेरे नेत्रों के लिए प्रकाश और हृदय के लिए आनंद बन गई है।


उन्होंने मुझसे कहाः हे मुहम्मद, ईश्वर ने कहा है कि मेरी ओर से मुहम्मद को सलाम कहों और उन्हें सूचित करो कि अली, मार्गदर्शन के अगुवा, पथभ्रष्टता के अंधकार का दीपक व विश्वासियों के लिए ईश्वरीय तर्क हैं। और मैंने अपनी महानता की सौगंध खाई है कि मैं उसे नरक की ओर न ले जाऊं जो अली से प्रेम करता हो और उनके व उनके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों का आज्ञाकारी हो। आज उसी मार्गदर्शक के लिए हम सब शोकाकुल हैं। वह सर्वोत्तम और अनुदाहरणीय व्यक्तित्व जिसने संसार वासियों को अपनी महानता की ओर आकर्षित कर रखा था।

उस रात भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम रोटी तथा खजूर की बोरी, निर्धनों और अनाथों के घरों ले गए। अन्तिम बोरी पहुंचाकर जब वे घर पहुंचे तो ईश्वर की उपासना की तैयारी में लग गए। "यनाबीउल मवद्दत" नामक पुस्तक में अल्लामा कुन्दूज़ी लिखते हैं कि शहादत की पूर्व रात्रि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम आकाश की ओर बार-बार देखते और कहते थे कि ईश्वर की सौगंध मैं झूठ नहीं कहता और मुझसे झूठ नहीं बताया गया है। सच यह है कि यह वही रात है जिसका मुझको वचन दिया गया है।


भोर के धुंधलके में अज़ान की आवाज़ नगर के वातावरण में गूंज उठी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम धीरे से उठे और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। जब वे मस्जिद में प्रविष्ठ हुए तो देखा कि इब्ने मल्जिम सो रहा है। आपने उसे जगाया और फिर वे मेहराब की ओर गए। वहां पर आपने नमाज़ आरंभ की। अल्लाहो अकबर अर्थात ईश्वर उससे बड़ा है कि उसकी प्रशंसा की जा सके। मस्जिद में उपस्थित लोग नमाज़ की सुव्यवस्थित तथा समान पक्तियों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पीछे खड़े हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चेहेर की शान्ति एवं गंभीरता उस दिन उनके मन को चिन्तित कर रही थी।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ते हुए सज्दे में गए। उनके पीछे खड़े नमाज़ियों ने भी सज्दा किया किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ठीक पीछे खड़े उस पथभ्रष्ट ने ईश्वर के समक्ष सिर नहीं झुकाया जिसके मन में शैतान बसेरा किये हुए था। इब्ने मुल्जिम ने अपने वस्त्रों में छिपी तलावार को अचानक ही निकाला। शैतान उसके मन पर पूरी तरह नियंत्रण पा चुका था। दूसरी ओर अली अपने पालनहार की याद में डूबे हुए उसका गुणगान कर रहे थे। अचानक ही विष में बुझी तलवार ऊपर उठी और पूरी शक्ति से वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर पड़ी तथा माथे तक उतर गई। पूरी मस्जिद का वातावरण हज़रत अली के इस वाक्य से गूंज उठा कि फ़ुज़्तो व रब्बिलकाबा अर्थात ईश्वर की सौगंध में सफल हो गया।


आकाश और धरती व्याकुल हो उठे। जिब्राईल की इस पुकार ने ब्रहमाण्ड को हिला दिया कि ईश्वर की सौगंध मार्गदर्शन के स्तंभ ढह गए और ईश्वरीय प्रेम व भय की निशानियां मिट गईं। उस रात अली के शोक में चांदनी रो रही थी, पानी में चन्द्रमा की छाया बेचैन थी, न्याय का लहू की बूंदों से भीग रहा था और मस्जिद का मेहराब आसुओं में डूब गया था।
कुछ ही क्षणों में वार करने वाले को पकड़ लिया गया और उसे इमाम के सामने लाया गया। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जब उसकी भयभीत सूरत देखी तो अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा, उसे अपने खाने-पीने की वस्तुएं दो। यदि मैं संसार से चला गया तो उससे मेरा प्रतिशोध लो अन्यथा मैं बेहतर समझता हूं कि उसके साथ क्या करूं और क्षमा करना मेरे लिए उत्तम है।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक अन्य पुत्र मुहम्मद हनफ़िया कहते हैं कि इक्कीस रमज़ान की पूर्व रात्रि में मेरे पिता ने अपने बच्चों और घरवालों से विदा ली और शहादत से कुछ क्षण पूर्व यह कहा, मृत्यु मेरे लिए बिना बुलाया मेहमान या अपरिचित नहीं है। मेरा और मृत्यु की मिसाल उस प्यासे की मिसाल है जो एक लंबे समय के पश्चात पानी तक पहुंचता है या उसकी भांति है जिसे उसकी खोई हुई मूल्यवान वस्तु मिल जाए।
इक्कीस रमज़ान का सवेरा होने से पूर्व अली के प्रकाशमयी जीवन की दीपशिखा बुझ गई। वे अली जो अत्याचारों के विरोध और न्यायप्रेम का प्रतीक थे वे आध्यात्म व उपासना के सुन्दरतम क्षणों में अपने ईश्वर से जा मिले थे। अपने पिता के दफ़न के पश्चात इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने दुख भरी वाणी में कहा था कि बीती रात एक एसा महापुरूष इस संसार से चला गया जो पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में धर्मयुद्ध करता रहा और इस्लाम की पताका उठाए रहा। मेरे पिता ने अपने पीछे कोई धन-संपत्त नहीं छोड़ी। परिवार के लिए केवल सात सौ दिरहम बचाए हैं।

सृष्टि की उत्तम रचना होने के कारण मनुष्य, विभिन्न विचारों र मतों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है तथा मनुष्य के ज्ञान का एक भाग मनुष्य की पहचान से विशेष है। अधिक्तर मतों में मनुष्य को एक सज्जन व प्रतिष्ठित प्राणी होने के नाते सृष्टि के मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है परन्तु इस संबन्ध में इतिहास में एसे उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं जो प्रतिष्ठा व सम्मान के शिखर तक पहुंचे हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, इतिहास के एसे ही गिने-चुने अनउदाहरणीय लोगों में सम्मिलित हैं। इतिहास ने उन्हें एक एसे महान व्यक्ति के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत किया जिसने अपने आप को पूर्णतया पहचाना और परिपूर्णता तथा महानता के शिखर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। हज़रत अली का यह कथन इतिहास के पन्ने पर एक स्वर्णिम समृति के रूप में जगमगा रहा है कि ज्ञानी वह है जो अपने मूल्य को समझे और मनुष्य की अज्ञानता के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह स्वयं अपने ही मूल्य को न पहचाने।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदा ही कहा करते थे कि मेरी रचना केवल इसलिए नहीं की गई है कि चौपायों की भांति अच्छी खाद्य सामग्री मुझे अपने में व्यस्त कर ले या सांसारिक चमक-दमक की ओर मैं आकर्षित हो जाऊं और उसके जाल में फंस जाऊं। मानव जीवन का मूल्य अमर स्वर्ग के अतिरिक्त नहीं है अतः उसे सस्ते दामों पर न बेचें।


उन्होंने अपने अस्तित्व के विभिन्न आयामों को इस प्रकार से विकसित किया था कि साहस, लोगों के साथ सुव्यवहार, न्याय, पवित्रता व ईश्वरीय भय एवं उपासना की अन्तिम सीमा तक पहुंच गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने जीवन के प्रत्येक चरण में इस बिंदु पर विशेष रूप से बल देते थे कि मनुष्य का आत्मसम्मान उसके अस्तित्व की वह महान विशेषता है जिसको कसी भी स्थिति में ठेस नहीं लगनी चाहिए अतः समाजों की राजनैतिक पद्धतियों एवं राजनेताओं के लिए यह आवश्यक है कि मानव सम्मान के मार्गों को समतल करे। उन्होंने अपने शासनकाल में एसा ही किया और आत्मसम्मान को मिटाने वाली बुराइयों जैसे चापलूसी और चाटुकारिता के विरूद्ध कड़ा संघर्ष किया। इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने अधीन राज्यपालों को उपदेश एवं आदेश देते हुए कहते हैं कि अपने पास उपस्थित लोगों को एसा बनाओ कि तुम्हारी प्रशंसा में न लगे रहें और अकारण ही तुम्हें प्रसन्न न करें। एक दिन इमाम के भाषण के दौरान एक व्यक्ति उठा और वह उनकी प्रशंसा करने लगा। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरी प्रशंसा न करो ताकि मैं लोगों के जो अधिकार पूरे नहीं हुए हैं उन्हें पूरा कर सकूं और जो अनिवार्य कार्य मेरे ज़िम्मे है उन्हें कर सकूं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम लोगों पर विश्वास करने को प्रतिष्ठा करने और मनुष्य के व्यक्तित्व को सम्मान देने का उच्चतम मार्ग समझते थे। उनकी दृष्टि में दरिद्रता से बढ़कर/आत्म-सम्मान को क्षति पहुंचाने वाली कोई चीज़ नहीं होती। वे कहते हैं कि दरिद्रता मनुष्य की सबसे बड़ी मौत है। यही कारण था कि अपने शासनकाल में जब बहुत बड़ा जनकोष उनके हाथ में था तब भी वे अरब की गर्मी में अपने हाथों से खजूर के बाग़ लगाने में व्यस्त रहते और उससे होने वाली आय को दरिद्रों में वितरित कर दिया करते थे ताकि समाज में दरिद्रता और दुख का अंत हो सके।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदैव ही पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहते थे और अपने मन व आत्मा को "वहिय" अर्थात ईश्वरीय आदेशों के मधुर संगीत से तृप्त करते थे। इसी स्थिति में ईमान अर्थात ईश्चर पर विश्वास और इरफ़ान अर्थात उसकी पहचान उनके अस्तित्व पर इतनी छा गई थी कि शेष सभी विशेषताओं पर पर्दा सा पड़ गया था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते थे कि यदि आकाश और धरती, तुला के एक पलड़े में रखे जाएं और अली को ईमान दूसरे पल्ड़े में तो निश्चित रूप से अली का ईमान उनसे बढ़कर होगा।

वे ईश्वर की गहरी पहचान और विशुद्ध मन के साथ ईश्वर की उपसना करते थे क्योंकि उपासनपा केवल कर्तव्य निहाने के लिए नहीं होती बल्क उसके माध्यम से बुद्धि में विकास और शारीरिक शक्तियों में संतुलन होता है। यही कारण है कि जो व्यक्ति पवित्र एवं विशुद्ध भावना के साथ उपासना करता है वह सफल हो जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि संसार के लोग दो प्रकार के होते हैं। एक गुट अपने आप को भौतिक इच्छाओं के लिए बेच देता है और स्वयं को तबाह कर लेता है तथा दूसर गुट स्वयं को ईश्वर के आज्ञापालन द्वारा ख़रीद लेता है और स्वयं को स्वतंत्र कर लेता है।



अली अलैहिस्सलाम साहस, संघर्ष तथा नेतृत्व का प्रतीक हैं। वे उन ईमानवालों का उदाहरण हैं कि जो क़ुरआन के शब्दों में ईश्वर का इन्कार करने वालों के लिए कड़े व्यवहार वाले और अपनों के लिए स्नेहमयी व दायुल हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधीनस्थ लोग विशेषकर समाज के अनाथ बच्चे व असहाय लोग उन्हें एक दयालु पिता के रूप में पाते और उनसे अथाह प्रेम करते थे परन्तु ईश्वर का इन्कार करने वालों से युद्ध और अत्याचारग्रस्तों की सुरक्षा करते हुए रक्षा क्षेत्रों में उनके साहस और वीरता के सामने कोई टिक ही नहीं पाता था। ख़ैबर के युद्ध में जिस समय विभिन्न सेनापति ख़ैबर के क़िले का द्वार खोलने में विफल रहे तो अंत में पैग़म्बरे इस्लाम ने घोषणा की कि कल मैं इस्लामी सेना की पताका एसे व्यक्ति को दूंगा जिससे ईश्वर और उसका पैग़म्बर प्रेम करते हैं। दूसरे दिन लोगों ने यह देखा कि सेना की पताका हज़रत अली अलैहिस्सलाम को दी गयी और उन्होंने ख़ैबर के अजेय माने जाने वाले क़िले पर उन्होंने वियज प्राप्त कर ली।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम बड़ी ही कोमल प्रवृत्ति के स्वामी थे। उनकी यह विशेषता उनके कथन और व्यवहार दोनों में देखने को मिलती है। इस्लाम के आरम्भिक काल के एक युद्ध में अम्र बिन अब्दवुद नामक अनेकेश्वरवादियों का एक योद्धा, अपनी पूरी शक्ति के साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में आ गया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उसे पछाड़ दिया। यह देखकर वे उसकी छाती पर से उठ गए, कुछ दूर चले और फिर पलटकर उसकी हत्या कर दी।
वास्तव में हज़रत अली अलैहिस्सलाम साहस और निर्भीक्ता का प्रतीक होने के साथ ही साथ नैतिकता और शिष्टाचार का एक परिपूर्ण उदाहरण भी थे। वे ईश्वरीय कर्तव्य निभाते समय केवल ईश्वर को ही दृष्टि में रखते थे। यही कारण था कि अम्र बिन अब्दवुद की अपमान जनक कार्यवाही के पश्चात उन्होंने अपने क्रोध को पहले शांत किया फिर कर्तव्य निभाया ताकि उसकी हत्या अपनी व्यक्तिगत भावना के कारण न करें।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अद्धितीय जनतांत्रिक सरकार की स्थापना की। उनके शासन का आधार न्याय था। समाज में असत्य पर आधारित या किसी अनुचति कार्य को वे कभी भी सहन नहीं करते थे। उनके समाज में जनता की भूमिका ही मुख्य होती थी और वे कभी भी धनवानों और शक्तिशालियों पर जनहित को प्राथमिक्ता नहीं देते थे। जिस समय उनके भाई अक़ील ने जनक्रोष से अपने भाग से कुछ अधिक धन लेना चाहा तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने पास रखे दीपक की लौ अपने भाई के हाथों के निकट लाकर उन्हें नरक की आग के प्रति सचेत किया। वे न्याय बरतने को इतना आवश्यक मानते थे कि अपने शासन के एक कर्मचारी से उन्होंने कहा था कि लोगों के बीच बैठो तो यहां तक कि लोगों पर दृष्टि डालने और संकेत करने और सलाम करने में भी समान व्यवहार करो। यह न हो कि शक्तिशाली लोगों के मन में अत्याचार का रूझान उत्पन्न होने लगे और निर्बल लोग उनके मुक़ाबिले में न्याय प्राप्ति की ओर से निराश हो जाएं।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हजः संकल्प करना
कुमैल की जाति
बनी हाशिम के पहले शहीद “हज़रत अली ...
अज़ादारी
आयतुल्ला ख़ुमैनी की द्रष्टि से ...
ज़ुहुर या विलादत
आशूर की हृदय विदारक घटना का ...
ब्रह्मांड 5
हुस्न व क़ुब्हे अक़ली
इमाम हसन अ. की शहादत

 
user comment