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Sunday 7th of July 2024
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नौहा



तुरबते बेशीर पर कहती थी माँ असग़र उठो
कब तलक तन्हाई में सोओगे ऐ दिलबर उठो


है अंधेरा घर में नज़रों में जहाँ तारीक है
कब तलक पिन्हाँ रहोगे ए महे अनवर उठो


हम सबों को कै़द करके अशक़िया ले जाऐगें
किस तरह तन्हा तुम्हें छोड़ेगी यह मादर उठो


गोद खाली देखकर पूछे अगर सुग़रा तुम्हें
क्या कहे इस नातवाँ से मादरे मुज़तर उठो


गोद से मेरी जुदा होते न थे तुम तो कभी
नींद इस सुनसान बन में आ गयी क्योंकर उठो


किसलिए नाराज़ हो आओ मना लूँ मैं तुम्हें
कुछ जुबां से तो कहो सदके़ गयी मादर उठो


दूध दो दिन से न पाया इसलिए रूठे हो क्या
बेकसो मजबबूर है माँ है एै मेरे दिलबर उठो


किस तरह तन्हा अंधेरी रात में नींद आएगी
आओ सीने से लगा लें माँ अली असग़र उठो


हो गई है ज़िन्दगी दुश्वार अब अफकार से
'फिक्र' रौज़े पर चलो बस या अली कहकर उठो

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