Hindi
Monday 8th of July 2024
0
نفر 0

इस्लाम और सेक्योलरिज़्म

6)
चर्च ने पहले औरत की मज़म्मत (निन्दा) की , उसको बुराई की जड़ बताया और फिर उसको यह यक़ीन दिलाया कि



इज़्ज़त का मक़ाम पाने के लिए तुम्हे मर्द के साथ साथ चलना पड़ेगा और जब औरत मर्द वाले काम करती भी है तो



हक़ीक़त में बड़ाई उसकी नही मर्द की साबित होती है मगर इस्लाम ने मर्द और औरत के लिए फ़रीज़ों और ज़िम्मेदारियों को बताने के बाद दोनों को बराबर की सज़ा और जज़ा के वादे दिए।



ज़ात की बुनियाद पर दोनों के मक़ाम में कोई टकराव नही रखा।



चर्च की ऊपर बताई हुई कमियों और बुराई का नतीजा सिक्योलरिज़्म था और इस्लाम में तो यह खामियां है ही नहीं सिक्योलरिज़्म की गुन्जाइश कहाँ ?



आज के सिक्योलरिज़्म तबक़े की एक दलील यह भी है कि हम टेक्नालाजी पश्चिम वालों से ले रहे हैं तो इसके चलाने का तरीक़ा क्यों नहीं ? इसमे क्या बुराई है ?



इसका सादा सा जवाब यह है कि हम उनसे टेक्नालाजी तो ले सकते है मगर निज़ामे ज़िन्दगी नही, दूसरा यह कि उन्होने भी नए उलूम (ज्ञान) हम से लिए थे,



क्या उन्होने हमारा निज़ामे ज़िन्दगी क़ुबूल किया था ?



ऊपर बयान हुई हक़ीक़तों से हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि सिक्योलरिज़्म पश्चिम से आई हुई इस्तलाह (परिभाषा) है हमे इसकी हरगिज़ ज़रूरत नही है,



फिर यह कि इस्लाम की तारीख में कभी भी ऐसे हालात पैदा ही नही हुए कि हमे भी चर्च के ज़ुल्म के शिकार लोगों



की तरह मज़हब के खिलाफ बग़ावत और सिक्योलरिज़्म की ज़रूरत पड़ती।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हज़रते क़ासिम बिन इमाम हसन अ स
जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम का ...
इमाम जाफ़र सादिक़ अ. का जीवन परिचय
तक़वा
नमाज.की अज़मत
दुआ फरज
मानव जीवन के चरण 2
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का ...
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ...
हज़रत मासूमा

 
user comment