ज़ीक़ादा के अंतिम दिन पैग़म्बरे इस्लाम के परपौत्र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है। आज ही के दिन 220 हिजरी क़मरी को इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम शहीद किए गए। आज का दिन ऐसे मार्गदर्शक की शहादत का दिन है जो अपने कम जीवन के दौरान ज्ञान, आत्मज्ञान व तत्वदर्शिता का मूल्यवान ख़ज़ाना यादगार छोड़ कर गए। उनकी उदारता से हर कोई लाभान्वित होता था और अत्यधिक दान-दक्षिणा के कारण लोग उन्हें जवाद की उपाधि से याद करते थे। अरबी भाषा में बहुत अधिक दान-दक्षिणा करने वाले को जवाद कहते हैं।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का कृपालु व्यवहार दीन-दुखियों को समीर की भांति शांति देता था और उनका खुला हाथ निर्धनों को ख़ुशी देता था।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने पिता हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद 17 वर्षों तक जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला और इस्लाम की शुद्ध शिक्षा व संस्कृति के प्रसार के लिए कोशिश की। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व भी दूसरे इमामों की भांति उच्च नैतिक व शिष्टाचारिक गुणों से संपन्न था। युवा होने के बावजूद वह ज्ञान के अथाह सागर के स्वामी थे और सद्गुणों की ऊंच चोटी पर विराजमान थे। यूं तो इमाम जवाद अलैहिस्सलाम का जीवन बहुत कम था। उन्होंने इस संसार में केवल 25 वर्ष बिताए किन्तु इस छोटी सी उम्र में वह ज्ञान व आत्मज्ञान के ऐसे ऊंचे स्थान पर थे कि दूसरे धर्मों के बुद्धिजीवी भी उनकी सराहना करते थे। सुन्नी समुदाय के धर्मगुरु कमालुद्दीन शाफ़ई इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैः “मोहम्मद बिन अली का स्थान बहुत ऊंचा है। लोगों की ज़बान पर उनकी चर्चा है। दरियादिली, उदारता और मीठी बातचीत से सबको अपनी ओर सम्मोहित कर लिया है। जो भी उन्हें देखता है उनका दीवाना हो जाता है और उनके ज्ञान व आत्मज्ञान से लाभान्वित होता है।”
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत की बरसी पर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं। और इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा में सलाम भेज कर कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हैं।
सलाम हो आप पर हे ईश्वर के प्रिय, सलाम हो आप पर हे संसार में उसके तर्क, सलाम हो आप पर हे अंधकारमय धरती पर ईश्वरीय प्रकाश, सलाम हो आप पर हे पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र।
यदि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के जीवन की समीक्षा करें तो बड़ी आसानी से धार्मिक शिक्षा को बचाने में उनके मूल्यवान योगदान को समझ जाएंगे। वे अत्याचार के मुक़ाबले में डट गए और उन्होंने बड़े संघर्ष के साथ इस्लाम की मूल शिक्षाओं की रक्षा की।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बेटे हैं और 195 हिजरी क़मरी में उनका मदीना में जन्म हुआ। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के जीवन में दो अब्बासी शासकों मामून और मोअतसिम का दौर था। उस समय पवित्र मदीना नगर इस्लामी शिक्षाओं व विचारों के प्रसार के महत्वपूर्ण केन्द्रों में गिना जाता था। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने शहर मदीना और हज के दिनों में पवित्र नगर मक्का में इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार के लिए हर संभव प्रयास करते थे। इसी प्रकार इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम राजनैतिक और सामाजिक विषयों पर भी चर्चा करते और तत्कालीन शासकों के अत्याचारपूर्ण क्रियाकलापों की भर्त्सना करते थे क्योंकि उस समय भ्रष्ट व अयोग्य शासक, इस्लामी समाज पर शासन कर रहे थे और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को छोड़ दिया था।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने व्यवहार व आचरण से अपने शिष्यों को व्यक्तिगत, सामाजिक और प्रशैक्षिक निर्देश दे दिए थे और इस प्रकार वह दो अब्बासी शासकों की मूल इस्लामी शिक्षाओं के ख़िलाफ़ गतिविधियों के बावजूद मूल इस्लामी शिक्षाओं को विश्ववासियों तक पहुंचाने में सफल हुए। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के मनुष्य के जीवन के लिए उपयोगी कुछ निर्देश आपकी सेवा में पेश करने जा रहे हैं।
इस बात में संदेह नहीं कि मनुष्य अपनी आंतरिक इच्छा के प्रभाव में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कभी अति से काम लेता है और इस प्रकार वह सही मार्ग से दूर हो जाता है। इस प्रकार मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु उसकी आंतरिक इच्छाएं हैं क्योंकि इच्छाओं के प्रभाव में मनुष्य अत्याचार करने लगता है। इसलिए इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इच्छाओं के मनुष्य पर प्रभाव के बारे में चेतावनी देते हैं और इसे हर मुश्किल की जड़ बताते हैं कि जिसके परिणाम में मनुष्य का नैतिक व मानवीय पतन हो जाता है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैः जो व्यक्ति अपनी लगाम इच्छाओं के हवाले कर दे और निरंकुश आगे बढ़ता जाए तो वह पतन से नहीं बच सकता।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का कहना है कि इच्छाओं के अंधे अनुसरण से होने वाले नुक़सान की क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती।
एक व्यक्ति ने इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से कहा कि आप मुझे कुछ नसीहत कीजिए। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने कहाः क्या तुम मेरी नसीहत पर अमल करोगे? उस व्यक्ति ने हां में जवाब दिया तो इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने कहाः धैर्य अपनाओ और निर्धनता से निपटो, वासना से दूर रहो और बुरी इच्छाओं से प्रतिरोध करो और जान लो कि ईश्वर हर दम तुम्हें देख रहा है। तो इस बात का ध्यान रखो कि तुम्हें कैसे रहना चाहिए।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम एक और महत्वपूर्ण बिन्दु पर बल देते थे और वह किसी काम को पूरी जनकारी के साथ अंजाम देने का विषय है। यदि कोई व्यक्ति कोई काम शुरु करे और उस काम के बारे में उसे पूरी जानकारी या समझ न हो तो उसे उस काम में विफलता हाथ लगेगी। इसलिए किसी काम को शुरु करने से पहले उसकी पहचान हासिल करना बहुत ज़रूरी है। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैः जो किसी काम में प्रविष्ट होने के मार्ग को न पहचानता हो तो उससे बाहर निकलने में फंस जाएगा।
इस कथन से तात्पर्य यह है कि किसी काम को अंजाम देने की पहचान न होने के कारण मनुष्य ऐसी मुश्किल में फंस जाएगा कि उससे निकलना उसके लिए बहुत कठिन होगा। इसलिए किसी काम को अंजाम देने से पहले उसके सभी आयामों की पहचान बहुत ज़रूरी है। इसी बात को इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम एक और स्थान पर दूसरे ढंग से कहते हैः किसी काम को अंजाम देने से पहले उसके बारे में सोच-विचार और योजनाबंदी, मनुष्य को पश्चाताप से बचा लेती है।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की एक और अनुशंसा लोगों के साथ नर्म व्यवहार अपनाने के बारे में है। अर्थात दूसरों के साथ कठोर रवैया न अपनाएं यदि किसी ने ऐसी ग़लती की है जिसे क्षमा किया जा सकता है तो उसे नज़रअंदाज़ करना चाहिए। धार्मिक अनुशंसाओं में आया है कि दूसरों के साथ मनुष्य का संबंध भलाई पर आधारित हो न कि उन्हें कष्ट देने पर। मनुष्य को दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा वह दूसरों से अपने लिए अपेक्षा करता है। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैः जो नर्मी को छोड़ देता है उसे बुरी स्थिति का सामना करना पड़ता है।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम दूसरों के साथ सामाजिक संबंधों को मज़बूत करने के बारे में भी अनुशंसा करते हैं। मनुष्य को चाहिए कि दूसरों के साथ अपने सामाजिक संबंधों को मज़बूत करे और मित्रों व धार्मिक बंधुओं से भेंटवार्ता करता रहे क्योंकि दूसरों से दूरी अपनाने का बुरा परिणाम निकलता है। इसके मुक़ाबले में दूसरों से मिलने से मित्रता बढ़ती है। दूसरों के साथ स्नेहपूर्ण भेंट वसंत ऋतु की वर्षा की भांति आनंद और हरियाली उपहार में देती है। कभी सौहार्दपूर्ण भेंट का चमत्कारिक परिणाम निकलता है और वह गहरी मित्रता की भूमि समतल करती है। इसलिए दूसरों से निष्कपट भेंट बेहतरीन मानवीय व नैतिक गुणों में शामिल है। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैः तीन बातों से मित्रता बढ़ती हैः व्यवहार व भेंट में न्याय का प्रदर्शन, कठिनाइयों और सुख में उनके साथ सहानुभूति और मन का स्वच्छ होना।
इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इसी प्रकार सभी मामलों में ईश्वर पर भरोसा रखने की अनुशंसा करते हैं। भरोसा यह दर्शाता है कि व्यक्ति को ईश्वर पर गहरी आस्था है। हालांकि ईश्वर पर भरोसे के कई चरण हें। ईश्वर पर भरोसे की सर्वोच्च सीमा यह है कि व्यक्ति हर मामले में स्वंय को ईश्वर की इच्छा के सामने समर्पित कर दे और ईश्वर के सिवा किसी से आशा न लगाए कि इसका उच्च उदाहरण हज़रत इब्राहीम के जीवन में मिलता है कि जिस समय नमरूद नामक शासक ने उन्हें आग में फेंकने का आदेश दिया और वह आग की तरफ़ बढ़ रहे थे तो उस समय हज़रत इब्राहीम के चेहरे से संतोष झलक रहा था क्योंकि उनका मानना था कि ईश्वर की इच्छा में सिर्फ़ और सिर्फ़ भलाई है। ईश्वर पर भरोसा रखने वाला व्यक्ति कभी भी व्याकुल नहीं होता और ऐसा व्यक्ति अपना प्रयास करने के बाद भविष्य की ओर से चिंतित नहीं होता। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैः जो कोई ईश्वर पर भरोसा करे ईश्वर उसके लिए काफ़ी होता है और ईश्वर पर भरोसा हर बुराई से मुक्ति और हर शत्रु से सुरक्षित रहने का स्रोत है।