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Tuesday 26th of November 2024
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इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत

ईश्वरीय मूल्यों एवं शिक्षाओं का प्रसार करने वाले लोगों की या हमें आध्यात्मिक सुन्दरताओं से भरे संसार में ले जाती हैं और हमें अत्यन्त मूल्यवान पाठ देती हैं।

 

इन्हीं महापुरूषों में से एक के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आज उनकी कक्षा में बैठें गे ताकि इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम के ज्ञान के अथाह सागर से कुछ मोती हम भी चुन लें।

 

वर्ष १९५ हिजरी क़मरी बराबर ८१० ईसवी में आज ही के दिन संसार इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम के तेज से प्रकाशमान हो गया।

 

ऐसे महान व्यक्ति जिनकी अत्यधिक दया तथा दान - दक्षिणा के कारण उनको जवाद अर्थात दानी की उपाधि दी गई।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम के जीवन की ध्यानयोग्य विशेषताओं में ये वास्तविकता है कि वे बचपन से ही ज्ञान तथा शिष्टाचार में सर्व श्रेष्ठ थे। वे अत्यन्त तीव्र बुद्धि के मालिक थे।

 

जब कुछ बयान करते तो अत्यन्त स्पष्ट शब्दों का प्रयोग करते और ज्ञान तथा धार्मिक मामलों की सूक्ष्मता से समीक्षा करते थे।

 

प्रसिद्ध इतिहासकार तबर्सी अपनी किताब " आलामुल - वरा " में लिखते हैं-

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम अपने काल में कम आयु के होने के बावजूद, ज्ञान, तत्वर्दिशता तथा विशेषताओं के उस स्थान तक पहुंच गए थे

 

कि कोई भी विद्वान उनकी बराबरी नहीं कर सकता था।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण आयाम हदीसों का हवाला तथा ईश्वरीय पहचान की गहराइयों का बयान है जो विभिन्न क्षेत्रों में आज भी सुरक्षित है।

 

इमाम एक ओर हदीस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के कथनों का हवाला देकर समाज में धार्मिक शिक्षाओं एवं संस्कृति का विस्तार कर रहे थे

 

और दूसरी ओर समय की पुकार तथा लोगों की वैचारिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं को देखते हुए विभिन्न विषयों का वर्णन करते थे।

 

इसी कारण उन्होंने अत्यन्त मूल्यवान धरोहरें छोड़ी हैं। इन्हीं धरोहरों के आधार पर विद्वानों तथा अनुसंधानकर्ताओं ने विभिन्न इस्लामी विषयों पर किताबं लिखी हैं।

 

इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों की पहचान के लिए भूमि समतल हो गई।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम अब्बासी शासकों की ओर से लगाए गए कड़े प्रतिबन्धों के बावजूद अपने शिषयों एवं सथियों का प्रशिक्षण करते रहते थे।

 

उस काल के राजनैतिक दबाव के बावजूद इतिहास में ऐसे १०० विख्यात विद्वानों एवं विचारकों का नाम मिलता है जो सभी इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिसस्लाम के शिष्य थे।

 

उनकी युक्तियॉ तथा शिक्षाएं कारण बनीं कि उनके साथी और अनुयायी न केवल मदीना नगर बल्कि इस्लामी जगत के विभिन्न क्षेत्रों में पारस्परिक सम्पर्क बनाए रख सकें।

 

इमाम जवाद अलैहिसस्लाम के प्रेम तथा अध्यात्म का इतना अधिक प्रभाव था कि उनके पक्षधर कुछ ऐसे लोग थे जो शासन में ऊंचे पदों पर आसीन थे

 

और इमाम अपने कुछ राजनैतिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों को इन्हीं लोगों से आगे बढ़वाते थे।

    
लोगों के साथ अच्छा व्यवहार तथा उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों के जीवन में घुला मिला था।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम भी इस क्षेत्र में अग्रणी थे।

 

वे कहते थे - मनुष्य तीन भली विशेषताओं द्वारा ईश्वर के प्रेम का पात्र बन सकता है।

 

पहला यह कि अपने पापों के क्षमा किए जाने की बहुत अधिक दुआ मागें। दूसरे यह कि लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करे और तीसरे अत्यधिक सदक़ा या दान दे।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की दृष्टि में लोगों की सेवा मनुष्य पर ईश्वर की रहमत का कारण है और यदि कोइ इस क्षेत्र में लापर्वाही करे तो संभव है ईश्वरीय नेमतों से वंचित रहजाए।

 

इसी कारण उन्होंने कहा है- ईश्वरीय नेमतें उसी को प्राप्त होती हैं जो दूसरों की आवश्यकताएं पूरी करता है।

 

जिसने भी इन आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास नहीं किया और उसकी कठिनाइयॉ सहन नहीं कीं, उसने ईश्वरीय नेमतों को बर्बाद कर दिया है।

 

जैसा कि आप जानते हैं इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों के आदेश पर उस काल के इस्लामी ज्ञान एवं शिक्षाओं के केन्द्र मदीना नगर को छोड़ कर अब्बासी शासन के केन्द्र बग़दाद जाने पर विवश हुए।

 

अलबत्ता अब्बासी शासक मामून ने प्रयास किया कि इमाम के साथ दिखावे की मित्रता जताकर तथा लोगों को धोखा देकर स्वयं को इमाम के निकट करे।

 

परन्तु इमाम ने अब्बासी शासकों की नीतियों की जानकारी तथा अपनी दूरदर्शिता से मामून की योजना पर पानी घेर दिया। यहॉ तक कि मामून एक समय में इमाम को मदीने भेजने पर विवश हो गया।

 

इमाम जवाद अलैहिस्सलाम सदैव अत्याचारियों, लोगों के अधिकारों का हनन करने वालों तथा उनकी धन सम्मत्ति को लूटने वालों के साथ कड़ा व्यवहार करते और उसका विरोध करते थे।

 

यही विरोध कारण बना कि अब्बासी शासक इमाम पर अधिक दबाव डालें परन्तु इन सभी सीमाओं के बावजूद इमाम सामाजिक तथा राजनैतिक

 

वास्तविकताओं की व्याख्या अत्यन्त खुलकर स्पष्ट शब्दों में करते थे। इसी कारण उनका कथन है कि अत्याचारी, उसका साथ देने वाले और वो जो अत्याचार पर राज़ी है,

 

सभी इस पाप अर्थात अत्याचार में भागीदार हैं।

    
ईमानदारी से कमाए गए धन में विभूति प्राप्त होती है, किन्तु हराम मार्गों से कमाया गया धन मनुष्य से ईश्वरीय कृपा को छीन लेता है और उसे ख़तरताक मार्ग की ओर ले जाता है।

 

जिससे परलोक में खेद के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगता है।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने एक साथी दाऊद सर्मी को संबोधित करते हुए कहते हैं -

 

हे दाऊद! हराम धन में वृद्धि नहीं होती और यदि इसमें वृद्धि हो तो यह अपने स्वामी के लिए अनुकम्पा नहीं बनता है।

 

यदि मनुष्य हराम धन में से दान करता है तो उसका कोई लाभ उसे नहीं मिले गा।

 

मनुष्य अपने मरणोपरान्त जो हराम धन छोड़ता है, वो नरक की ओर जाने के सामान के रूप में उसके साथ होता है।

 

अपनी आन्तरिक इच्छाओं तथा लालसा के कारण मनुष्य अपनी श्रेष्ठ वास्ताविकता से दूर हो जाता है तथा उसे आस्था की ऊंचाइयों पर पहुंचने से रोक देता है।

 

ऐसी स्थिति में विभिन्न अपराधों तथा पापों की भूमि प्रशस्त होती है।

 

इसके विपरित आध्यत्मिक मूल्यों के प्रति कटिबद्धता तथा शिष्टाचारिक गुणों की प्राप्ति ईश्वर से मनुष्य की निकटता की कारण बनती है

 

और उसके आत्मिक तथा आध्यात्मिक विकास की भूमि समतल करती है।

 

इमाम जवाद अलैहिस्सलाम कहते हैं - बन्दा, उस समय तक आस्था की वास्तविक्ता को परिपूर्ण नहीं कर पाता जबतक धर्म को अपनी

 

आन्तरिक इच्छाओं पर वरीयता नहीं देता और उस समय तक पतन के गढ़े में नहीं गिरता जबतक अपनी आन्तरिक इच्छाओं को अपने धर्म पर वरीयता देता रहता है।

 

तौबा या पापों का प्रायश्चित , अपने बन्दों के लिए ईश्वरीय विभूतियों के द्वारों में एक द्वारा है। तौबा करने और ईश्वर की ओर ध्यान लगाने से अतीत के पाप समाप्त हो जाते हैं

 

तथा मनुष्य को दोबारा यह अवसर मिलता है कि अपने अतीत की ग़लतियों को सुधारकर भले कार्य करे और अपनी आत्मा एवं प्राण को पवित्रता तथा ताज़गी प्रदान करे।

 

इसी लिए तोबा करने में देर नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे पश्चाताप के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता है।

 

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं - तौबा में देरी करना धोखा और अचेतना है और इसमें आज - कल करना परेशानी तथा चिन्ता का कारण है।

 

हमारी दुआ है कि ईश्वर हमें पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम तथा उनके परिजनों का वास्तविक अनुयायी बनाए और तत्वदर्शिता तथा प्रकाश के इन स्रोतों के साथ हमारे संबंधों सुदृढ़ बने रहें।

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