अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने कहा है कि अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच सीधे वार्ता के बारे में दोहा वार्ता में कोई प्रगति नहीं हुई है।
हारून चख़ानसूरी का कहना है कि काबुल हर उस क़दम का स्वागत करेगा, जिससे अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच सीधे वार्ता के लिए भूमि प्रशस्त हो, लेकिन इस संबंध में दोहा वार्ता किसी परिणाम तक नहीं पहुंची है।
25 फ़रवरी से तालिबान और अमरीका के बीच अंतिम चरण की वार्ता शुरू हुई थी, जो अब भी जारी है। अमरीका के विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता रॉबर्ट पलादिनो का कहना है कि वाशिंगटन, मुल्ला ब्रादर के नेतृत्व में तालिबान की वार्ताकार टीम से चार महत्वपूर्ण मुद्दों पर वार्ता कर रहा है। यह चार मुद्दे इस प्रकार हैं, आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई, अमरीकी सैनिकों का अफ़ग़ानिस्तान से निकलना, युद्ध विराम और तालिबान और अफ़ग़ान सरकार के बीच सीधी बातचीत।
हालांकि तालिबान अब तक दोहा वार्ता के दौरान, अफ़ग़ान सरकार के साथ सीधी बातचीत के प्रस्ताव को ठुकराते रहे हैं, इसलिए कि दोनों के बीच बुनियादी मुद्दों पर मतभेद हैं, जिनका समाधान आसान नहीं है।
इस वास्तविकता के मद्देनज़र कि अमरीका और तालिबान के बीच कोई भी समझौता काबुल सरकार की सहमति के बिना अफ़ग़ान संकट के समाधान में प्रभावी नहीं होगा, इसलिए दोहा वार्ता में इस विषय पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके बावजूद तालिबान, काबुल सरकार से सीधे वार्ता न करने के अपने निर्णय पर अभी भी अड़े हुए हैं। यह विषय दोहा वार्ता की सफलता के मार्ग में प्रमुख चुनौती बन गया है। इसके लिए अमरीका की भी काफ़ी आलोचना की जा रही है कि अफ़ग़ानिस्तान की क़ानूनी सरकार की भूमिका की उपेक्षा करके उसने तालिबान से वार्ता शुरू कर दी।
इस संदर्भ में फ़्रांस प्रेस से बात करते हुए माइकल कागेलमैन कहते हैं कि सबसे हास्यास्पद और अफ़सोसनाक बात यह है कि संभव है अफ़ग़ान सरकार को शांति की उस प्रक्रिया से ही अलग निकालकर फेंक दिया जाए जिसकी शुरूआत ख़ुद उसने की थी।
दोहा वार्ता के चलते अफ़ग़ानिस्तान में हिंसा में वृद्धि चिंता का विषय है और इससे पता चलता है कि दोहा वार्ता सही मार्ग में आगे नहीं बढ़ रही है।