पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
अशीष का सही स्थान पर ख़र्च करने भाग 3 मे कुच्छ बाते कही थी भाग 4 मे भी उसी प्रकार कुच्छ बाते अशीष का सही स्थान एवं कार्यक्रम मे लागू करने से समबंधित बाते प्रस्तुत है।
किन्तु यह नही है कि दूतो एवं निर्दोश इमामो ने अशीषो की क़द्र तथा उनका सही स्थान पर प्रयोग करने से सभी प्रकार के (ज़ुल्मानी एवं नूरानी) पर्दो को पार कर लिया और उस स्थान तक पहुँच गये जहा पर उनके तथा परमेश्वर के बीच किसी प्रकार का कोई भेद, असंगत तथा पृथक्करण (जुदाई) – किन्तु यह आदरणीय एवं माननीय लोग भगवान के दास होने के अतिरिक्त – बाक़ी नही है।
अबु जाफ़र मुहम्मद पुत्र उसमान पुत्र सईद के माध्यम से एक पत्र मे हम अध्यन करते हैः
وَآياتُكَ وَمَقَاماتِكَ الَّتِى لاَ تَعْطيلَ لَها فِى كُلِّ مَكان ، يَعْرِفُكَ بِهَا مَنْ عَرَفَكَ ، لاَ فَرْقَ بَيْنَكَ وَبَيْنَها إلاّ أنَّهُمْ عِبَادُكَ وَخَلْقُكَ
वा आयातोका व मक़ामातेकल्लति ला तअतीला लहा फ़ी कुल्ले मकानिन, यारेफ़का बेहा मन अरफ़का, ला फ़रक़ा बैनका वबैनहा इल्ला अन्नहुम एबादोका वख़ल्क़का[१]
हे ईश्वर! पैग़मबर एवं निर्दोष इमाम तेरी निशानिया है कोई भी स्थल तेरी निशानी से रिक्त नही है जो कोई व्यक्ति तुझे पहचानने की इच्छा रखता है उसे चाहिए कि वह इन निशानियो को पहचाने, तेरे तथा इन निशानियो के बीच किसी प्रकार का कोई भेद अथवा पृथक्करण नही है परन्तु यह कि ये तेरे दास एवं प्राणी है।
जारी