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अशीष का सही स्थान पर खर्च करने का इनाम 5

  • प्रकाशन तिथि:   2013-02-04 16:48:48
  • दृश्यों की संख्या:   509

पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन

लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान

 

इस से पूर्व हम यह बात बता चुके है कि पैग़मबर एवं निर्दोष इमाम ईश्वर की निशानिया है कोई भी स्थान उसकी निशानी से रिक्त नही है जो कोई व्यक्ति ईश्वर को पहचानने की इच्छा रखता है उसे चाहिए कि वह ईश्वर की निशानियो को पहचाने, ईश्वर तथा उसकी निशानियो के बीच किसी प्रकार का कोई भेद अथवा पृथक्करण नही है परन्तु यह कि ये ईश्वर के दास एवं प्राणी है।

इस बात की ओर ध्यान देना चाहिए कि मानव एवं ईश्वर के बीच स्वयं अशीष कीई रुकावट नही है। बलकि अशीष के साथ अनुचित व्यवहार मानव की शैतानी विधि एवं शिष्टाचार है जो कि मानव और ईश्वर के बीच रुकावट डालता है। यदि अशीष के साथ उचित व्यवहार किया जाये तो अशीष मानव को ईश्वर के निकट पहुँचाने मे सहायक है।

नबियो एवं इमामो ने विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक एवं भौतिक अशीषो का आनंद लिया, वो लोग परिवार वाले थे, उनके पास घर था, पशुपालन, कृषि, व्यापार, उद्योग, वित्तीय लेनदेन के माध्यम से अपनी आजीविका का पोषण करते थे, हालांकि उनके तथा ईश्वर के बीच कोई बाधा नही थी।

यदि मानव मे पूजा एवं आज्ञाकारिता और दासत्व को स्वीकार करने की भावना मज़बूत हो, और हृदय ज्ञान के प्रकाश तथा उसकी आत्मा अच्छे कर्मो से उज्जवल हो, तो निसंदेह दुनिया की जीविका सभी उपकरणो, तत्वो एवं रसायनो के साथ आध्यात्मिक स्थानो (मक़ामात) को प्राप्त करने हेतु उपयोग होगा। जो व्यक्ति पूजा एवं आज्ञाकारिता की भावना नही रखता वह अशीष के साथ सही व्यवहार नही करेगा, उस पर अशीष जितनी अधिक होगी उतना ही उसके घमंड, मिथ्याभिमान एवं हेकड़ी मे वृद्धि होगी।     

जारी

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