पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
दोषी का उपेक्षा के कुंओ से बाहर आना, और अपनी असंगत स्थिति की ओर ध्यान केंद्रित करना, इस बात का एहसास करना कि ईश्वर की सभी आशीष, दया, कृपा के साथ साथ अपने जीवन को दिन रात लोगो की सेवा करने तथा पूजा पाठ करने और आज्ञा का पालन करने के बजाय, पाप के अंधेरे से संक्रमित किया है, सभी प्रकार के पापो को छोड़ना अनिवार्य है तथा शैतान और वासना की भक्ति से हाथ उठाले, और ईश्वर की ओर ध्यान देने के साथ सही पथ पर होने के नाते शर्म, पूजा, भक्ति एवं ईश्वर के सेवको की सेवा हेतु अपने अतीतो की क्षमापूर्ति करे।
यह दायित्व कानून (शरई) तथा विधिशास्त्र के आधार पर तत्काल अनिवार्य है, अर्थात पापी का पाप करते समय ही सूचित हो जाना कि वह किसका विरोध कर रहा है, किस परोपकारी की अशीष को पाप मे परिवर्तित कर रहा है, किस कृपालु गुरु के विरूद्ध युद्ध के लिए खड़ा हुआ है, दर्द का इलाज करने के लिए बिना किसी देरी, विलंब और रुकावट के पश्चाताप करे, अपने अस्तित्व की भूमि से पाप की जड़ो को हसरत की ज्वलनशील अग्नि मे जलाकर भसम करे तथा अपशबादो के अपशिष्ट से शरीर, हृदय और आत्मा को पवित्र करे, क्षमा और दया के इस मार्ग से अपने अस्तित्व के क्षितिज के माध्यम से लोकप्रिय महबूब को जन्म दे, पश्चाताप मे विलंब करना निसंदेह भविष्य मे आशा करना एक प्रकार का सिन, पाप का मुखड़ा तथा दिव्य छल से सुरक्षित है, और इस हालत मे बाक़ी रहना बड़ा पाप है।
अब्दुल अज़ीम हसनी इमाम जवाद[1](अ.स.) से इमाम रज़ा[2](अ.स.) से मूसा पुत्र जाफ़र[3](अ.स.) से इमाम सादिक़[4] (अ.स.) से रिवायत करते है कि उमर पुत्र उबैद ने इमाम से पूछाः कि गुनाहे कबीरा (बडा पाप) क्या है? इमाम (अ.स.) ने पवित्र क़ुरआन से विस्तृत रूप से गुनाहे कबीरा का उसके लिए उल्लेख करते हुए कहाः सुरक्षा दिव्य छल है।[5]
जारी
[1] जवाद (अ.स.) शिया सामप्रदाय के नवे इमाम है। (अनुवादक)
[2] रज़ा (अ.स.) शिया सामप्रदाय के आठंवे इमाम है। (अनुवादक)
[3] मूसा पुत्र जाफ़र (अ.स.) शिया सामप्रदाय के सातवे इमाम है। (अनुवादक)
[4] सादिक़ (अ.स.) शिया सामप्रदाय के छटे इमाम है। (अनुवादक)
[5] काफ़ी, भाग 2, पेज 285, कबाइर का अध्याय, हदीस 24; वसाएलुश्शिया, भाग 15, पेज 318, अध्याय 46, हदीस 20629