पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
मुज़ाहिम के पुत्र नस्र सिफ़्फ़ीन की घटना नामी पुस्तक मे हाशिम मरक़ाल के हवाले से कहते हैः सिफ़्फ़ीन के युद्ध मे हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सहायता के लिए कुच्छ क़ुरआन पढ़ने वाले (क़ारी) सम्मिलित थे, मुआविया की ओर से ग़स्सान नामी क़बीले का एक जवान मैदान मे आया, उसने रजज़[1] पढ़ा और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शान मे गुस्ताख़ी करते हुए मुक़ाबला करने के लिए ललकारा, मुझे अत्यधिक क्रोध आया कि मुआविया के ग़लत प्रोपेगंडे ने इस प्रकार लोगो को पथभ्रष्ट कर रखा है, वास्तव मे मेरा हृदय जलकर कबाब हो गया, मै कुरूक्षेत्र गया और इस अज्ञात जवान से कहाः हे जवान जो कुच्छ भी तुम्हारी ज़बान से निकलता है, ईश्वर के यहा उसका हिसाब होगा, यदि ईश्वर ने तुझ से प्रश्न कर लियाः
अबू तालिब के पुत्र अली से युद्ध क्यो किया? तो क्या उत्तर दोगे?
उस जवान ने कहाः
मै ईश्वर के दरबार मे हुज्जते शरई रखता हूँ क्यो कि मेरी तुम से जंग अबू तालिब के पुत्र अली के बेनमाज़ी होने के कारण है!
हाशिम मरक़ान कहते हैः मैने उसके सामने हक़ीक़त खोल कर रख दी, मुआविया के कपट और चालबाज़ियो को स्पष्ट किया जैसे ही उसने यह सुना, उसने ईश्वर के दरबार मे पश्चाताप की तथा हक़ की रक्षा एंव बचाव करने के लिए मुआविया की सेना से निकल गया।
[1] रजज़ अरबी शब्द है, रजज़ उन शेरो को कहा जाता है जो योद्धा कुरूक्षेत्रो मे पढ़ा करते थे। (अनुवादक)