रोज़े के लिए इस्लामी शिक्षाओं में आया है कि अल्लाह ने कहा है कि मेरे दास हर उपासना अपने लिए भी करते हैं किंतु रोज़ा केवल मेरे लिए होता है और मैं ही उस का इनाम दूंगा।
वास्तव में अगर देखा जाए तो रोज़े के दो इनाम होते हैं एक इनाम इसी संसार में मिल जात है जब कि दूसरा परलोक में मिलेगा। इसी संसार में मिलने वाला इनाम रोज़ा रखने से स्वास्थ्य को होने वाले अनेकों लाभ हैं। डाक्टर टॉमेनेएंस रोज़ा रखने के लाभों के बारे में लिखते हैं कि एक निर्धारित समय में कम खाने और खाने से दूरी का लाभ यह है कि ग्यारह महीनों तक अमाशय खाने से भरा रहता और एक महीने के दौरान रोज़ा रखने से अमाशय खाली हो जाता है इसी प्रकार यकृत भी जो खाने कत पचाने के लिए निरंतर पित का स्राव करने करने पर विवश होता है तीस दिनों के रोज़ों के दौरान बचे खुचे खानों को पचाने का काम करता है। पाचन तंत्र को कम खाने से आराम मिलता है और उस से उन की थकान कम होती है। यह स्वास्थ्य की रक्षा का उचित मार्ग है जिस की ओर आधुनिक व प्राचीन उपचार शैलियों में ध्यान दिया गया है। विशेषकर अमाशय और यकृत के बहुत से एसे रोग होते हैं जिन्हें दवा द्वारा दूर नहीं किया जा सकता एसे रोगों का बेहतरीन इलाज रोज़ा रखना है यकृत का विशेष रोग जो पीलिया का कारण बनता है उस का सर्वोचित उपचार रोज़ा रखना अर्थात भूखा रहना है। विशेष इस लिए भी पीलिया प्राय: यकृत के थक जाने से भी हो जाता है और अधिक कार्य करने के कारण यकृत, पित बनाने के बाद उसे पिताशय में भेजने में अक्षम हो जाता है और पित यकृत ही में इकटठा हो जाता है जिस से पीलिया हो जाता है।
फांस के डाक्टर गोयल पा कहते हैं ८० प्रतिशत रोग अतंड़ियों में खाने के खटटे होने से पैदा होते हैं जो रोज़ा रखने से समाप्त हो जाते हैं।रोज़े के इस प्रकार के लाभ वास्तव में ईश्वरीय वरदान व पुरुस्कार ही हैं जिस से मनुष्य इसी संसार में लाभान्वित होता है यह ईश्वर की कृपा ही है कि उस ने एक रोज़े को हमारे लिए अनिवार्य किया वह हमारा रचयता है और उसे हमारे अस्तित्व और शरीर के बारे में पूर्ण ज्ञान है रोज़े का लाभ मनुष्य को ही पहुंचता है किंतु अल्लाह ने उसे अपने लिए की जाने वाली उपासना बताया है। रोज़े के विभिन्न लाभों से ही हम बात का पता लगा सकते हैं कि ईश्वरीय आदेशों का पालन मनुष्य के लिए निश्चित रुप से लाभदायक ही होता है भले ही विदित रुप से उस में हमें कभी कोई नुकसान का पहलू भी दिखाई दे जाए
source : irib.ir