पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
हुर ने उत्तर दियाः मुझे पत्रो से समबंधित कोई बोध नही है, इमाम अलैहिस्सलाम ने पत्र मंगवाए और हुर के सामने रख दिए, यह देख हुर ने कहाः मैने कोई पत्र नही लिखा है, मै यहीं से आप को अमीर के पास ले चलता हूँ, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहाः तेरी इच्छा के आगे मृत्यु तुझ से अधिक निकट है, इसके पश्चात आपने अपने साथीयो की ओर मुह करके कहाः सवार हो जाओ, वह सब सवार हो गए, तथा परिवार वालो के सवार होने की प्रतीक्षा करने लगे, सवार होने के पश्चात लौटना चाहते थे परन्तु हुर की सेना ने मार्ग बंद कर दिया।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हुर से कहाः तेरी मा तेरे ग़म मे बैठे, तू क्या चाहता है हुर ने उत्तर दियाः यदि अरब का कोई दूसरा व्यक्ति मुझे यह बात कहता और आप जैसी स्थिति मे होता तो मै उसको भी ना छौड़ता और उसकी मा को उसके ग़म मे बिठा देता, चाहे जो होता, परन्तु ईश्वर की सौगंध मुझे यह अधिकार नही है कि मै आप की माता का नाम इसी प्रकार लू, किन्तु नेकी एंव एहसान से।
وَلكِنْ وَاللهِ مَا لِى اِلَى ذِكْرِ اُمِّكَ مِنْ سَبيل اِلاَّ بِاَحْسَنِ ما يُقْدِرُ عَلَيْهِ
वालाकिन वल्लाहे माली ऐला ज़िक्रे उम्मेका मुन सबीलिन इल्ला बेअहसने मा युक़देरो अलैहे[1]
जारी