पैग़म्बरे इस्लाम ने एक हदीस में जवानों से सिफ़ारिश की है कि वह अपनी इच्छाओं पर कंट्रोल के लिए शादी करे और अगर यह संभव न हो तो रोज़ा रखें
रमज़ानुल मुबारक-8
पैग़म्बरे इस्लाम ने एक हदीस में जवानों से सिफ़ारिश की है कि वह अपनी इच्छाओं पर कंट्रोल के लिए शादी करे और अगर यह संभव न हो तो रोज़ा रखें। प्रोफ़ेसर डाक्टर मीर बाक़री रोज़े के सम्बंध में पूछे गये एक सवाल के जवाब में सबसे पहले इंसान की अध्यात्मिक ज़रूरत पर बल देते हुए कहते हैं:मौजूदा दुनिया ने तकनीक की तरक़्क़ी के साथ साथ इंसान को बड़ी तेज़ी से आंतरिक इच्छाओं की पूर्ति और बे लगाम आज़ादी की ओर अग्रसर किया है। जिस के नतीजे में जो हालात सामने आए हैं उस से सभी अवगत हैं वास्तव में अध्यात्म की अनदेखी ने ही इच्छाओं की बेलगाम पूर्ति की ओर इंसान को अग्रसर किया है और यह एसा ख़तरा है जिस की ओर से बहुत से पश्चिमी विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दी है। क़ुरआने मजीद ने शताब्दियों पहले बड़े ख़ूबसूरती से इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है क़ुरआन ने न्यौता दिया कि रोज़ा रखकर अपनी आन्तरिक इच्छाओं पर कंट्रोल किया जाए। पैग़म्बरे इस्लाम ने भी अपनी हदीस में भी जवानों से यही कहा है कि अपनी आन्तरिक इच्छाओं पर कंट्रोल के लिए शादी करो या फिर रोज़ा रखो। वास्तव में रोज़ा एक एक्सर साईज़ है इच्छाओं पर कंट्रोल रखने का। यूं तो दीन ने सिफ़ारिश की है कि इंसान हर समय आत्म सुधार के लिए कोशिश करे लेकिन रमज़ान वास्तव में एक मुकाबला है अच्छाईयों तक पहुंचने के लिए और मुकाबले के समय एक्सर साईज़ में बढोत्तरी हो जाती है वैसे भी रमज़ान आत्म सुधार के लिए सामूहिक रुप से कोशिश करने का अवसर होता है। और निश्चित रुप से निजी तौर पर किए जाने वाले काम का महत्व सामूहिक रुप से उठाए गये कदमों से कम होता है। वैसे भी इस्लाम में सामूहिक इबादतों को ज़्यादा महत्व हासिल है। सामूहिक इबादत वास्तव में एकता का प्रदर्शन होती है विभिन्न समाजिक वर्गों से संबंध रखने वाले लोग जब एक साथ इबादत करते हैं तो उन में छोटे बड़े का अंतर नही रह जाता अमीर व ग़रीब का अंतर मिट जाता है और सब के सब एक अल्लाह की एक समय में एक शैली में इबादत करते हैं जो निश्चित रुप से समाज में समानता की स्थापना के लिए प्रभावी है इसी लिए इस्लाम में नमाज़ जमाअत के साथ यानि सामूहिक रुप से नमाज़ पढ़ने की बहुत सिफ़ारिश की गयी क्योंकि साथ साथ इबादत के बहुत से फ़ायदे है जिन में एक यह है कि इबादत करने वालों की एक दूसरे से मुलाक़ात होती है एक दूसरे के दुख दर्द की जानकारी मिलती है और एक दूसरे का दुख दर्द बॉटना आसान होता है।
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