पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है शैतान मनुष्य के शरीर में रक्त की भॉति दौड़ता है तो उस के मार्ग को भूख द्वारा संकरा करो।शैतान अर्थात मनुष्य को बुराई की ओर ले जाने वाला अस्तित्व शैतान का कोई एक रुप नही होता। शैतान अर्थात बहकाने वाला तो फिर हमारे आस पास हमारे जान पहचान वालों और दोस्तों में भी बहुत से लोग बहकाने वाले हो सकते हैं। आजकल बहुत से बच्चे बुरे दोस्तों के कारण ख़राब हो जाते हैं। किंतु पैग़म्बरे इस्लाम ने इस कथन में शरीर के भीतर ख़ून की भॉति दौड़ने वाले जिस शैतान की बात की है उस से आप का आशय वह इच्छाएं भी हो सकती हैं जो मनुष्य को बुराई की ओर ले जाती है।क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में बुरे काम की इच्छा होती है अब अगर उस की अंतरात्मा बुरे काम की इच्छा से से अधिक शाक्तिशाली होती है तो वह मनुष्य को बुराई से रोक देती हैं किंतु जिस की अंतरात्मा विभिन्न कारणों से कमज़ोर हो चुकी होती है उसे फिर बुराई, बुराई नहीं लगती और वह बड़े आराम से बुरे कार्य करता है अर्थात उस के शरीर में शैतान का राज होता है और वह उस के रक्त के साथ उस के शरीर के कोने कोनेमें पहुंच जाता है। रोज़ा वास्तव में इच्छाओं पर नियंत्रण और अंतरात्मा की चेतना में वृद्धि का एक मार्ग है। क्योंकि भूख व प्यास आत्मा को स्वच्छ करती है। अध्यात्मिक स्थान तक पहुंचने के लिए लगभग सभी धर्मों में शारिरिक सुख छोड़ने और भोग विलास से दूरी अपनाने की बात की गयी है किंतु इस्लाम में इस पर भी नियंत्रण किया गया है और शरीरिक सुख त्यागने की भी सीमाएं निर्धारित की गयी हैं। अलबत्ता रोज़े का उददेश्य खाना पीना छोड़ने से ही नही पूरा होता बल्कि रोज़े में जिस प्रकार खाना पीना छोड़ने को कहा गया है उसी प्रकार पीठ पीछे दूसरों की बुराई करने , झूठ बोलने और दूसरों को कष्ट पहुंचाने जैसी बहुत सी बुराइयों से भी रोका गया है। इस के साथ ही सिफ़ारिश की गयी है कि रोज़े की अवस्था में किसी की बुराई नहीं सुननी चाहिए और बात करने में भी सर्तक रहना चाहिए कि मुंह से असभ्य अथवा किसी को कष्ट पहुंचाने वाली बात न निकलने पाए अगर कोई इस प्रकार का रोज़ा रखने में सफल हो जाता है तो वास्तव में वह महान ईश्वर की असीम कृपा का पात्र हो जाता है अन्यथा रोज़ा मात्र भूख प्यास सहन करना ही होता है।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)......166
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