राष्ट्रों के मध्य ईद, परंपराओं को जीवित करने, और भविष्य निर्धारण के दिनों की याद को दोहराने का दिन है। जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अपने अन्तिम हज में, ग़दीरे ख़ुम नामक स्थान पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का चयन किया तो इसी उपलक्ष्य में शुभ समारोह आयोजित किया गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मुख पर प्रसन्नता प्रकट हुई। उन्होंने कहा कि मुझको बधाई दो। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस वाक्य का प्रयोग इससे पूर्व युद्धों में विजय के अवसर पर भी इस ढंग से कभी नहीं किया था। इसके पश्चात हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बधाईयां देने की आवाज़ें वातावरण में गूंजने लगीं और "हेसान बिन साबित" तथा "मुस्लिम बिन एबाद अंसारी" की कविताओं से लोगों के बीच हर्षोल्लास का वातावरण उत्पन्न हो गया। इतिहास में ईदे ग़दीर के अवसर पर निरंतरता से आयोजनों का उल्लेख पाया जाता है। हम भी इस शुभ अवसर का सम्मान करते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम और समस्त मुसलमानों की सेवा में बधाइयां प्रस्तुत करते हैं। इस संबन्ध में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का कथन है कि धन्य है ईश्वर कि उसने हमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विलायत अर्थात नेतृत्व या अभिभावक्ता को स्वीकार करने वाला बनाया। आज ईदे ग़दीर की विभूतियों से लाभान्वित होने का अवसर है। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में से एक हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने अनुयाइयों पर सलाम भेजते हुए ईश्वर से कामना करते हैं कि वह अपनी अनुकंपाए उन दासों के लिए निर्धारित करे जो आज अर्थात ईदे ग़दीर के दिन एक दूसरे से मिलना-जुलना रखते हैं और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की परंपरा एवं जीवनशैली के बारे में वार्तालाप करते हैं। ईद, लौटने के अर्थ में है। वसंत की ऋतु में लोग धरती के ठंडे शरीर में जीवन की गर्मी के लौटने का उत्सव मनाते हैं। ग़दीर की घटना ने भी इस्लामी राष्ट्र को पुनर्जीवन प्रदान किया और पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के पश्चात समाज के नेतृत्व के संबन्ध में जनता की चिंताओं का निवारण किया। पैग़म्बरे इस्लाम के ज्येष्ठ नाती इमाम हसन अलैहिस्सलाम कूफ़े में प्रतिवर्ष ईदे ग़दीर के शुभ अवसर पर समारोह आयोजित किया करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी संतान और मित्रों के साथ इन समारोहों में भाग लेते थे। इस आध्यात्मिक वातावरण में इमाम हसन अलैहिस्सलाम लोगों के बीच उपहार वितरित किया करते थे। पूरे इतिहास में मानव जाति के मार्गदर्शन की प्रक्रिया दो भागों में बंटी हुई है। इसका पहला भाग, प्रथम ईश्वरीय दूत के रूप में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के काल से आरंभ हुआ। उसके पश्चात एक के बाद एक ईश्वरीय दूत आते रहे और मानवजाति का मार्गदर्शन करते रहे। अन्तिम ईश्वरीय दूत ने भी मानव के उत्थान के लिए "वहि" अर्थात ईश्वरीय संदेश के आधार पर लोगों के लिए उच्चस्तरीय शिक्षाएं उपलब्ध कराईं। मानवजाति के मार्गदर्शन का दूसरा चरण उस समय से आरंभ हुआ जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अटठारह ज़िलहिज को हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस एतिहासिक क्षण में पैग़म्बरे इस्लाम को ईश्वर की ओर से यह दायित्व सौंपा गया कि वे अपने उत्तराधिकारी को लोगों से परिचित करवाएं। उस दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नियुक्ति के पश्चात मानव इतिहास में एक नया अध्याय आरंभ हुआ। ग़दीरे ख़ुम की घटना के पश्चात लोग, हज़रत अली अलैहिस्सलाम से हाथ मिलाकर उनको बंधाई देते हुए कह रहे थे, मुबारक हो मुबारक हो हे अबूतालिब के पुत्र कि आप मेरे और सभी ईमान वाले पुरूषों और महिलाओं के अभिभावक और मार्गदर्शक बन गए। ग़दीर का दिन, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व को सम्मान देने का दिन है। यह दिन उस महान व्यक्ति को बधाई देने का दिन है जो इस्लाम के उदय के समय हर प्रकार के उतार-चढ़ाव में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के साथ रहा। एक युद्ध में मुसलमान दोनो दिशाओं से शत्रु के घेरे में आ गए। बड़ी संख्या में लोग रणक्षेत्र से भाग खड़े हुए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) अकेले रह गए। वे मुसलमानों की कायरता से अप्रसन्न थे। उनके पवित्र मुख से पसीना बह रहा था। एकदम से उनकी दृष्टि हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर पड़ी। उन्होंने हज़रत अली को अपने निकट पाया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से प्रश्न किया कि तुम रणक्षेत्र से क्यों नही गए? इसके उत्तर में हज़रत अली ने कहा क्या मैं इस्लाम लाने के पश्चात काफ़िर हो जाता? मैं आपका अनुयाई हूं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रेम और उनकी वीरता को देखकर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा, हे प्रिय अली, इन काफ़िरों के आक्रमणों को विफल बनाओ। शत्रु अपने समस्त संसाधनों के साथ पैग़म्बरे इस्लाम को मारने के लिए रणक्षेत्र में आए थे किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अभूतपूर्व वीरता का प्रदर्शन करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम पर होने वाले शत्रुओं के आक्रमणों को विफल बना दिया। उसी समय ईश्वर की ओर से जिब्रईल पैग़म्बरे इस्लाम के पास आए और उन्होंने कहा, हे मुहम्मदः त्याग इसी को कहते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा, अली मुझसे है और मैं अली से हूं। इसपर जिब्रईल ने कहा कि मैं भी आप लोगों में से हूं। ईदे ग़दीर के दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम को उत्तम व्यक्तियों के लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया गया। दसवीं हिजरी अटठारह ज़िलहिज को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम अपने अन्तिम हज से लगभग एक लाख बीस हज़ार हाजियों के साथ वापस आ रहे थे। दोपहर का समय था और भीषण गर्मी पड़ रही थी। वातावरण में कारवां वालों और ऊंटों की घंटियों की आवाज़ें गूंज रही थीं। एसे कौतूहलपूर्ण वातावरण में पैग़म्बरे इस्लाम का पवित्र मुख किसी महत्वपूर्ण घटना की गाथा सुना रहा था। वे किसी गहन विचार में डूबे हुए थे। एसा प्रतीत हो रहा था मानो वे भविष्य निर्धारित करने वाले किसी महत्वपूर्ण समाचार की प्रतीक्षा में हों। इसी बीच उनपर ईश्वर की ओर से संदेश उतरा। उन्होंने आदेश दिया कि जो लोग यहां तक नहीं पहुंचे हैं उनके आने की प्रतीक्षा की जाए और जो लोग आगे निकल गए हैं उनको वापस बुलाया जाए। ग़दीरे ख़ुम, मक्के और मदीने के बीच एक एसा स्थान था जहां एक तालाब था और वहां से कारवां गुज़रा करते थे। उस दिन इस तालाब के किनारे एक महत्वपूर्ण एतिहासिक घटना घटी। जब सारे ही लोग एकत्रित हो गए तो ऊंटों की पालानों से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के लिए मिंबर बनाया गया। वे मिंबर पर गए और उन्होंने बड़े ही मनमोहक ढंग से ईश्वर की प्रशंसा करते हुए एक भाषण दिया। उसके पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि हे लोगो, ईमान लाने वाले लोगों पर उनके हितों को समझते और उनकी अभिभावक्ता के लिए कौन उत्तम है?लोगों ने एक स्वर कहा कि ईश्वर और उसका दूत बेहतर जानता है।पैग़म्बर ने कहा कि क्या मुझको तुम से अधिक तुमपर प्राथमिक्ता एवं वरीयता प्राप्त नहीं है? लोगों ने एकमत कहा, क्यों नहीं? हां एसा ही है हे ईश्वरीय दूत।इसके पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे बीच से अपने ईश्वर की ओर चला जाऊंगा। जान लो कि मैं तुम्हारे बीच दो मूल्यवान वस्तुएं छोड़े जा रहा हूं। उनमें से एक ईश्वरीय पुस्तक पवित्र क़ुरआन है और दूसरे मेरे परिजन हैं। न तो उनसे आगे बढ़ना और न ही उन्हें छोड़ देना।
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