इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रपति रूहानी के नाम पत्र में कहा कि ऐसा कोई भी बयान जिससे ईरान के विरुद्ध प्रतिबंध के बाक़ी रहने का संकेत मिलता है, जेसीपीओए का उल्लंघन है।
वरिष्ठ नेता के पत्र में आया है कि चूंकि ईरान की ओर से वार्ता, अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों को समाप्त करने के उद्देश्य से स्वीकार की गयी है और जेसीपीओए में इसका क्रियान्वयन ईरान की कार्यवाहियों पर निर्भर है, इसीलिए सामने वाले पक्षों की ओर से उल्लंघनों को रोकने के लिए पर्याप्त और मज़ूबत गैरेंटी आवश्यक है अर्थात प्रतिबंधों को समाप्त करने पर आधारित अमरीका और यूरोपीय संघ के राष्ट्राध्यक्षों की ओर से लिखित बयान जारी किया जाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति और यूरोपीय संघ के राष्ट्राध्यक्षों के बयानों में यह स्पष्ट होना चाहिए कि प्रतिबंध पूर्ण रूप से उठा लिए गये हैं और प्रतिबंधों के ढांचे बाक़ी रहने पर आधारित किसी भी प्रकार के बयान को जेसीपीओए का उल्लंघन समझा जाएगा। वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार बल दिया कि 8 वर्ष के दौरान वार्ताकार देशों में से किसी एक देश की ओर से किसी भी बहाने से किसी भी स्तर पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगाना जेसीपीओए का उल्लंघन समझा जाएगा और ईरानी सरकार का कर्तव्य होगा कि वह जेसीपीओए का पालन बंद कर दे।
वरिष्ठ नेता ने इस पत्र में कहा है कि अमरीकी सरकार ने परमाणु मामले में ही नहीं बल्कि ईरान के प्रति हर मामले में, शत्रुता व विघ्न उत्पन्न करने के अलावा कोई अन्य रुख़ नहीं अपनाया है और भविष्य में भी इसकी बहुत कम आशा है कि वह इस रुख़ से हट कर कुछ करे।
वरिष्ठ नेता ने इस पत्र में बल दिया है कि वार्ता के परिणाम में, जो जेसीपीओ के रूप में सामने आया है, अस्पष्ट बिन्दु, ढांचागत कमज़ोरी सहित कई ऐसे बिन्दु हैं कि यदि उन पर सूक्ष्मता के साथ हर क्षण ध्यान नहीं रखा गया तो ईरान के वर्तमान और भविष्य को बड़ा नुक़सान पहुंचा सकते हैं।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इसी प्रकार बल दिया कि अराक परमाणु प्रतिष्ठान के आधुनिकीकरण से संबधिंत कार्यवाहियां और ईरान के पास मौजूद संवर्धित यूरेनियम पर सहमति, परमाणु ऊर्जा की अंतरराष्ट्रीय एजेन्सी में पीएमडी से संबधिंत मामले के ख़त्म होने की घोषणा, ठोस समझौते और पर्याप्त ज़मानत के बाद ही लागू की जा सकेगी।
वरिष्ठ नेता ने वर्चस्व और साम्राज्यवादी शक्तियों के विरोध में, सही इसलामी रुख़ पर डटे रहने, कमज़ोर राष्ट्रों पर अत्याचार व उनके शोषण के खिलाफ संघर्ष, अमरीका की ओर से जनता का दमन करने वाले मध्ययुगीन तानाशाहों के समर्थन को सबके सामने लाने और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में फिलिस्तीनी जनता के निरंतर समर्थन को, इस्लामी गणंतत्र ईरान के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों की दुश्मनी के मुख्य कारण बताए।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने पत्र के अंत में, दूसरे पक्ष की ओर से दिये गये वचनों के पालन की प्रक्रिया पर नज़र रखने के लिए मज़बूत और सचेत सदस्यों पर आधारित समितियों के गठन पर बल देते हुए लिखा है कि प्रतिबंधों का अंत, हालांकि अन्याय के अंत और ईरानी राष्ट्र के अधिकारों की रक्षा के लिए ज़रूरी क़दम है किंतु आर्थिक विकास और वर्तमान समस्याओं का समाधान, गंभीरता और ठोस अर्थ-व्यवस्था के सभी आयामों पर ध्यान देने के बाद ही संभव होगा। (AK)
source : irib