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13 आबान

13 आबान बराबर 4 नवम्बर, ईरान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन ईरान के इतिहास में अत्याचारी शाही शासन के ख़िलाफ़ 3 महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुईं। इसी कारण इस दिन को ईरान में विश्व अत्याचार विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
13 आबान

13 आबान बराबर 4 नवम्बर, ईरान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन ईरान के इतिहास में अत्याचारी शाही शासन के ख़िलाफ़ 3 महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुईं। इसी कारण इस दिन को ईरान में विश्व अत्याचार विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
 
 
 
ईरान के राजनीतिक इतिहास में 13 आबान को 3 घटनाएं घटीं। 1963 में इमाम ख़ुमैनी को देश निकाला देकर तुर्की रवाना कर दिया गया, 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले अत्याचारी शाही शासन के बलों ने छात्रों का नरसंहार किया और तेहरान में छात्रों ने जासूसी के अड्डे में परिवर्तित हो जाने वाले अमरीकी दूतावास पर निंयत्रण कर लिया। यह तीन घटनाएं ईरान की क्रांति में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं जो 13 आबान यानी 4 नवम्बर को विभिन्न अवसरों पर घटीं। यह तीन घटनाएं किस प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति के इतिहास में ऐतिहासिक बन गईं?
 
4 नवम्बर 1979 को अभी क्रांति की सफलता को एक वर्ष भी नहीं बीता था, कि ईरान के क्रांतिकारी युवाओं ने अमरीकी दूतावास पर निंयत्रण करके ईरान में अमरीकी हस्तक्षेप और ईरान विरोधी गतिविधियों का पर्दाफ़ाश किया। छात्रों द्वारा ईरान में अमरीकी हस्तक्षेप के पर्दाफ़ाश होने के बाद, ईरान के ख़िलाफ़ अमरीकी दुश्मनी का एक नया चरण शुरू हो गया। अमरीकी सरकार और उसकी घटक पश्चिमी सरकार शुरू से ही ईरान की इस्लामी क्रांति का चेहरा बिगाड़ कर पेश कर रही थीं और उसके ख़िलाफ़ साज़िशें कर रही थीं और क्रांति को चरमपंथी आंदोलन कहकर बदनाम कर रही थीं। इसका एक कारण जनमत का ध्यान अमरीकी हस्तक्षेप के प्रति ईरानी राष्ट्र की घृणा से हटाना था। इन प्रयासों का कोई लाभ नहीं हुआ, इसलिए कि जैसे जैसे समय गुज़रता गया, ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की साज़िशों का भंडाफोड़ होता रहा। इसलिए ईरान की इस्लामी क्रांति के इतिहास में 13 आबान की घटनाओं का महत्व केवल भावनात्मक नहीं है।
 
 
 
 
 
13 आबान की घटनाओं का महत्व उस समय स्पष्ट हो जाता है जब क्रांति से पहले ईरान में अमरीकी हस्तक्षेप के इतिहास पर एक नज़र डालें। इससे पता चलता है कि ईरानी राष्ट्र के साथ अमरीका का व्यवहार एकदम अत्याचारी था और अमरीका ने हमेशा ईरान पर अपना वर्चस्व जमाया। इस हस्तक्षेप को एक राष्ट्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ कहा जा सकता है।
 
 
 
1953 में तख़्तापलट, ईरान पर संधिपत्र का थोपना और जनता की आवाज़ को दबाने के उद्देश्य से इमाम ख़ुमैनी को निर्वासित कर देना, जैसी घनटाएं ईरान में अमरीकी हस्तक्षेप का परिणाम थीं। 1963 में मोहर्रम के महीने में इमाम ख़ुमैनी ने अपने एक भाषण में अमरीकी हस्तक्षेप और शाही शासन द्वारा अमरीकी नीतियों के अनुसरण का पर्दाफ़ाश किया और उसकी कड़ी निंदा की। उन्होंने अपने एक बयान में संधिपत्र को ईरानी राष्ट्र की ग़ुलामी का दस्तावेज़ क़रार दिया। इमाम ख़ुमैनी के इस बयान के बाद उन्हें निर्वासित कर दिया।
 
ईरान का क्रांतिकारी आंदोलन मुश्किल भरे रास्तों को तय करता हुआ अपने लक्ष्य तक पहुंच गया और इमाम ख़ुमैनी के निर्वासन जैसी कार्यवाहियां ईरानी जनता के इस आंदोलन का रास्ता नहीं रोक सकीं। यही कारण है कि अत्याचारी शासन विरोधी इमाम ख़ुमैनी के विचार दबाव और घुटन भरे माहौल के बावजूद फैलते गए, यहां तक कि बड़ी जनक्रांति के लिए भूमि प्रशस्त हो गई। क्रांति की सफलता के बाद भी अमरीका ने ईरान के ख़िलाफ़ अपनी गतिविधियां जारी रखीं। यही कारण है कि इमाम ख़ुमैनी ने अमरीका को सबसे बड़ा शैतान कहा था।
 
 
 
 
 
अमरीकी इतिहास से पता चलता है कि अमरीकी सरकार ने विभिन्न बहानों द्वारा ईरान के ख़िलाफ़ शत्रुतापूर्ण क़दम उठाए यहां तक कि यह शत्रुता एक पुराने घाव में बदल गई। अमरीका ने शुरू से ही इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले के लिए अपने घटकों को प्रयोग करने की नीति अपनायी, ताकि हर ओर से इस्लामी शासन पर दबाव बना सके। अमरीका ने इस्लामी गणतंत्र के पतन के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी।
 
 
 
यह घटनाएं ईरानी जनता के प्रतिरोध का इतिहास हैं और अमरीका से ईरानी जनता की दुश्मनी का मूल कारण हैं। ईरानी जनता पूरी ताक़त से अमरीका के दबाव और धमकियों के मुक़ाबले में डट गई और अमरीका को झुकने पर मजबूर कर दिया। यह बात अनुभवों से साबित हो गई है कि पिछले पांच दशकों से भी ज़्यादा से ईरानी जनता के पिछड़ेपन का कारण अमरीकी हस्तक्षेप था।
 
ईरानी जनता में अत्याचार विरोधी भावना इस्लामी क्रांति की एक विशेषता है जो अन्य क्रांतियों की तुलना में विश्व में एक पहचान बन गई है। अन्य अनेक आंदोलनों और क्रांतियों के विपरीत यह क्रांति पिछले 37 वर्षों में बिना किसी डगमगाहट के अपने लक्ष्य के मार्ग पर आगे बढ़ रही है और वर्चस्ववादी शक्तियों के ख़िलाफ़ एक पहचान बन गई है।
 
इस्लामी गणतंत्र शासन ने अत्याचार और साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ आंदोलन की कोख से जन्म लिया है। उसने हमेशा अत्याचार और अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी है और अपनी इस ज़िम्मेदारी से कभी क़दम पीछे नहीं खींचे हैं।
 
 
 
 
 
ईरानी जनता में अत्याचार विरोधी भावना के उत्पन्न होने और उसके शक्तिशाली होने के कारणों को 13 आबान की घटनाओं में खोजा जा सकता है, जिसने ईरानी जनता की क्रांति और उसके मज़बूत होने के लिए एक भूमि प्रशस्त की। उसकी एक मिसाल हाल ही में जटिल परमाणु वार्ता और उसमें अमरीका की अत्यधिक मांगों के सामने इस्लामी गणतंत्र का डट जाना है। अमरीका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बहाने प्रतिबंधों के अलावा कई बार सैन्य हमलों की धमकी दी, लेकिन ईरान को अपनी धमकियों से दबाव में नहीं ले सका।
 
 
 
 
 
अमरीका कई वर्षों से ईरानी राष्ट्र को घुटने टेकने के लिए मजबूर करना चाहता था, लेकिन आज उसे विगत के विपरीत दूसरा अनुभव हो रहा है और वह समझ  गया है कि ईरानी राष्ट्र को धौंस और धमकियों से नहीं दबाया जा सकता या क्रांति को उसके लक्ष्य से नहीं भटकाया जा सकता। यह उपलब्धियां वर्चस्ववाद के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र की पहचान बन गई हैं।
 
ईरान ने प्रतिरोध के इन समस्त वर्षों के दौरान, पश्चिम और पूरब के सामने सिर नहीं झुकाया और इतिहास में हर बार जब भी अमरीका और ईरान का आमना सामना हुआ, ईरानी राष्ट्र पहले से अधिक मज़बूत होकर उभरा और उसने वर्चस्ववाद का मुक़ाबला किया। इस प्रकार उसने साबित कर दिया कि विश्व वर्चस्ववाद से मुक़ाबला केवल एक नारा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की मान्यताओं का एक मूल्यवान प्रतीक है, जिसके आधार पर वह समस्त साज़िशों के मुक़ाबले में खड़ा हुआ है।
 
इस प्रतिरोध ने हमेशा स्पष्ट संदेश दिया है। उसका सबसे स्पष्ट संदेश दुश्मन को पहचानना है। इसी पहचान और दूरदर्शिता के कारण ईरानी राष्ट्र अमरीका को अविश्वसनीय मानता है। अमरीका की अब तक की गतिविधियां अमरीकी शासन और उसके अधिकारियों को पहचानने के लिए काफ़ी हैं।
 
 
 
 
 
अब ऐसा प्रतीत होता है कि परमाणु समझौते के बाद, अमरीका अपना यह व्यवहार बंद कर दे, लेकिन इसके लिए कोई स्पष्ट तर्क मौजूद नहीं है जिससे यह साबित हो जाए कि अमरीका अब ईरान से दुश्मनी को त्याग देगा। कम से कम अमरीकी अधिकारियों के बयानों से तो यही ज़ाहिर होता है कि ईरान के ख़िलाफ़ उन्होंने अपनी शत्रुतापूर्ण नीतियों को नहीं छोड़ा है। वास्तविक रूप में अमरीकी व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, केवल ज़ाहिरी रूप से बदलाव आया है। यही कारण है कि अमरीकी अधिकारियों की करनी और कथनी में बहुत अधिक विरोधाभास देखा जा सकता है।
 
 
 
परमाणु समझौते के आधार पर अमरीका का ईरान के साथ व्यवहार भी पूर्वनियोजित है। परमाणु क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में वह उसी तरह ईरानोफ़ोबिया के प्रचार और ईरानी राष्ट्र को धमकाने में व्यस्त है।
 
अब 13 आबान की घटनाओं को काफ़ी समय बीत गया है, लेकिन आज ईरान अमरीका की शत्रुतापूर्ण नीतियों और वर्चस्ववाद के ख़िलाफ़ एक प्रतीक बन गया है। 13 आबान को विश्व साम्राज्यवाद के विरुद्ध प्रतिरोध दिवस, वास्तव में ईरानी राष्ट्र के प्रतिरोध का ही प्रतीक है।


source : irib
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