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Tuesday 26th of November 2024
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ज़िन्दगी की बहार-

बहुत से इंसान प्राचीन समय से अंधविश्वासों का पालन करते रहे हैं। वर्तमान समय में भी अंधविश्वास न केवल समाप्त नहीं हुआ है बल्कि दिन -प्रतिदिन नये- नये रूपों में प्रकट हो रही है और यह कार्य किसी क्षेत्र से विशेष नहीं है। अंधविश्वास उन क्षेत्रों में भी है जो अपने आपको सभ्य समझते हैं जैसे यूरोपीय और पश्चिमी देश जबकि वर्तमान समय को सूचना, संपर्क और तकनीक का काल कहा जाता है। अंधविश्वास एक ऐसा ज़हर है जो इंसान के अंदर से क्षमता एवं ऊर्जा को छीन लेता है और उसे अज्ञानता व अंधकार के दलदल में ढकेल देता है इ
ज़िन्दगी की बहार-

बहुत से इंसान प्राचीन समय से अंधविश्वासों का पालन करते रहे हैं। वर्तमान समय में भी अंधविश्वास न केवल समाप्त नहीं हुआ है बल्कि दिन -प्रतिदिन नये- नये रूपों में प्रकट हो रही है और यह कार्य किसी क्षेत्र से विशेष नहीं है। अंधविश्वास उन क्षेत्रों में भी है जो अपने आपको सभ्य समझते हैं जैसे यूरोपीय और पश्चिमी देश जबकि वर्तमान समय को सूचना, संपर्क और तकनीक का काल कहा जाता है। अंधविश्वास एक ऐसा ज़हर है जो इंसान के अंदर से क्षमता एवं ऊर्जा को छीन लेता है और उसे अज्ञानता व अंधकार के दलदल में ढकेल देता है इस प्रकार से कि इंसान जितना अधिक प्रयास करता है उतना अधिक उसमें फंसता जाता है।
 
 
 
 
 
हालिया दशकों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम अंधविश्वासों और साम्प्रदायिकता में वृद्धि के साक्षी रहे हैं और युवा सबसे अधिक अंधविश्वास से प्रभावित हुए हैं। इस्लामी समाजों में धर्म व साम्प्रदायिकता का गठन प्राचीन समय से इस्लाम के शत्रुओं का षड़यंत्र रहा है और इस समय उसने नया आयाम धारण कर लिया है। इस समय शैतान परस्त जैसे अंधविश्वास के विभिन्न गुट अस्तित्व में आ गये हैं और ध्यानयोग्य संख्या में युवा, शैतानी कार्यों के अनुसरणकर्ता बन गये हैं इस प्रकार से कि शैतानी कार्यों के चिन्हों को समाजों में देखा जा सकता है। सांप्रदायिकता अंधविश्वास और गुटबाजी, धर्म और समाज के लिए गम्भीर ख़तरा हैं। संप्रदायों के मध्य विभिन्न प्रकार के जो विचार पैदा हो रहे हैं वे लोगों को वास्तविकताओं से दूर करते जा रहे हैं और मतभेदों और बहुत अधिक अंधविश्वासों के कारण बन रहे हैं।
 
इस समय कहा जा सकता है कि धार्मिक समाजों में युवाओं के समक्ष सबसे अधिक ख़तरा उनकी आस्थाओं, धार्मिक विचारों और संस्कृतियों को कमज़ोर करना है। यद्यपि युवाओं में पथभ्रष्टता और गुमराही के अधिकांश पहलुओं का संबंध नैतिकता और उनके व्यवहार से है परंतु इंसान के व्यवहार और उसकी आस्था के मध्य गहरा संबंध है, इस प्रकार से कि इंसान की सोच में गुमराही उसके व्यवहार में गुमराही का कारण बनती है। इस संबंध में ईरान के महान बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी कहते हैं युवाओं के मध्य अधिकांश गुमराही की जड़ों को उनकी सोचों व विचारों में ढ़ूंढना चाहिये।
 
 
 
 
 
विशेषज्ञों का मानना व कहना है कि युवाओं के अंधविश्वास की खाई में गिर जाने का एक कारण इस्लाम के मूल सिद्धांतों से जानकारी का न होना है विशेषकर वे अस्तित्व के आरंभ और प्रलय से अवगत नहीं होते हैं। जो युवा महान व सर्वसमर्थ ईश्वर पर विश्वास रखता है और उससे अपने को जोड़े हुए है वह इस विशाल संसार में स्वयं को कभी भी अकेला नहीं समझता और हमेशा इस बात का प्रयास करता है कि मानवता के मार्ग से बाहर न हो। महान ईश्वर पर जो ईमान है वही यौन इच्छा के खतरनाक तूफान से इंसान को बचाता है। इस प्रकार का व्यक्ति कठिनाइयों में दूसरों की अपेक्षा अधिक धैर्यवान होता है और कभी भी वह निराश व व्याकुल नहीं होता है। वह महान ईश्वर पर आस्था रखने के कारण जो बहुत सी विशेषताएं व गुण प्राप्त कर लेता है उनके कारण उसे समाज की बहुत से समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है।
 
इसके मुकाबले में पथभ्रष्ट गुटों और शैतान परस्तों ने, इंसान के जीवन को खोखला दिखा कर और अध्यात्म तथा ईश्वरीय क़ानूनों की अनदेखी करके युवाओं को ज़मीन और आसमान के बीच अंधेरे में लटका रखा है। जो लोग शैतान परस्त हैं उनमें बहुत से अंत में खोखलेपन तक पहुंच कर आत्म हत्या कर लेते हैं।
 
धार्मिक शैतान परस्ती का जीवन पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है। शैतान परस्ती समाज में परेशानी, परिवार की बर्बादी और व्यक्तिगत सुरक्षा की समाप्ति का कारण बनती है और उसके कारण अंत में मादक पदार्थों तथा मस्त करने वाली दवाओं के सेवन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि शैतान परस्त ईश्वरीय क़ानून के मुकाबले में प्रतिरोध करते हैं, समाज के कानूनों का मज़ाक़ उड़ाते हैं और एक प्रकार की घृणा एवं क्रोध से उनका जीवन भरा होता है।
 
 
 
 
 
स्पष्ट है कि अगर युवा वास्तव में धर्म की वास्तविक सुन्दरता को नहीं देखेगा और वास्तविक प्रेम को नहीं पायेगा तो काल्पनिक व खोखली सुन्दरता उसके दिल में अपना स्थान बना लेगी। इसी तरह युवा अगर महान ईश्वर की महानता को नहीं पहचानेगा तो गलत विचारों की ओर जायेगा। दूसरे शब्दों में अगर युवा अध्यात्म और ईश्वरीय पहचान प्राप्त न करे तो निरंकुशता की ओर जायेगा और शैतानी चालें और कार्य उसकी आवश्यकता की अस्थाई आपूर्ति करेंगे और उसके लिए प्रसन्न करने वाले झूठे भविष्य का निर्माण करेंगे।
 
पथभ्रष्ट गुटों विशेषकर शैतानपरस्तों के कुछ चिन्ह होते हैं और वे इस बात का प्रयास करते हैं कि इन चिन्हों के माध्यम से लोगों के मध्य स्थान प्राप्त कर लें और समाज में आकर्षक ढंग से युवाओं और महिलाओं के मध्य विस्तृत हो सकें। शैतानी चिन्ह बहुत हैं जैसे कपड़े, जूते,घड़ी, वाहन में रहने वाली सुन्दर गुड़िया आदि। ये भिन्न और अच्छे चिन्ह हैं और सब जगह मिलते हैं। जैसे स्टीकर जो बच्चे अपनी किताबों और कापियों पर चिपकाते हैं, छड़ी की मुठिया जिसे बूढ़े लेकर चलते हैं। इसी तरह बहुत से कपड़े और दूसरी व्यक्तिगत वस्तुएं जिन पर शैतान के चेहरे की काल्पनिक तस्वीर बनी होती है।
 
 
 
 
 
वर्तमान समय में युवाओं को इस प्रकार की गुमराही से बचाने का बेहतरीन रास्ता यह है कि यह देखा जाये कि इन चीज़ों की ओर युवाओं में रुझान का कारण क्या है। शायद कहा जा सकता है कि इन नये व गुमराह गुटों की ओर रुझान का सबसे महत्वपूर्ण कारण भिन्न रूचि है। जो युवा दूसरों से भिन्न दिखने की भावना रखते हैं वे दूसरों के ध्यान को अपनी ओर खींचने के लक्ष्य से इस प्रकार के गुटों में शामिल हो जाते हैं। जैसाकि बहुत से युवा विशेष स्टाइल के कपड़े आदि पहनते हैं और उनका लक्ष्य दूसरों से भिन्न दिखाई देना होता है जबकि उनको यह भी पता नहीं होता है कि शैतान परस्त नाम का कोई गुट भी है।
 
कुछ लोग शक्ति प्राप्त करने के लिए शैतान परस्त गुट की ओर रुझान पैदा करते हैं। उनका मानना है कि शैतान एक प्रकार की शक्ति का प्रतीक है और इसी कारण वह अपनी शक्ति के कुछ भाग को अपने अनुयाइयों में स्थानांतरित कर सकता है। इसी कारण जिन लोगों में शक्ति प्राप्त करने की भावना होती है वे सोचते हैं कि इस प्रकार के गुटों में शामिल होने से काफी सीमा तक उनकी भावनाए सकता है।  
 
नूतनता भी एक कारण है जो लोगों विशेषकर युवाओं के रुझान का कारण है।  क्योंकि लोग प्रायः नई 2 चीज़ें प्राप्त करने के प्रयास में होते हैं जिससे उनके मानसिक संतोष की पूर्ति हो सके। इस बात के दृष्टिगत कि इस्लामी परिज्ञान की बात सैकड़ों साल से की जाती रही है और ईसाई परिज्ञान का भी अतीत बहुत पुराना है, झूठे और नये परिज्ञानों ने प्रचार करके युवाओं में कौतूहल उत्पन्न कर दिया है और वे उसकी ओर आकृष्ट हो रहे हैं।
 
 
 
 
 
आनंद प्राप्त करने की भावना भी एक अन्य कारण है जिसकी वजह से युवा दिग्भ्रमित गुटों की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। युवा उन आनंदों को प्राप्त करने के प्रयास में हैं जो उनकी इच्छा के अनुसार होते हैं। इस आधार पर युवा उस व्यक्ति की ओर जाते हैं जो इस कार्य में उनकी सहायता कर सके। नये और झूठे परिज्ञान आनंद उठाने के विरोधी नहीं हैं चाहे वह आनंद किसी प्रकार का क्यों न हो और दूसरी ओर युवाओं को इस प्रकार का व्यवहार अच्छा लगता है और वे बड़ी आसानी से इस प्रकार के दिग्भ्रमित गुटों की जाल में फंस जाते हैं।
 
 
 
 
 
स्पष्ट है कि परिवार, स्कूल और समाज की इंसान के व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इंसान चाहे- अनचाहे में इनसे प्रभावित होता है परंतु समाज, इंसान के व्यक्तित्व के निर्माण में परिवार और स्कूल से मज़बूत होता है। सामाजिक आकर्षण इतने मज़बूत व शक्तिशाली होते हैं कि कुछ महान लोगों के अतिरिक्त समाज के आम लोग सामाजिक वातावरण से प्रभावित होते हैं और आम तौर से लोग किसी प्रकार के सोच- विचार के बिना स्वयं को उसके अनुसार बना लेते हैं। समाज का वातावरण इतना शक्तिशाली होता है कि बड़ी सरलता से वह लोगों विशेषकर युवाओं को अपने रंग में रंग लेता है और वे परिवार के उन मूल्यों को बड़ी सरलता से भुला देते हैं जो उनकी इच्छा के अनुसार नहीं होते हैं। अतः प्रचारकों और धार्मिक अभिभावकों का दायित्व है कि वे समय और धर्म की मज़बूती के दृष्टिगत आध्यात्मिक शिक्षाओं को सुन्दरतम रूप में बयान करें और जीवन शैली की शिक्षा इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं के अनुसार दें। माता- पिता और प्रशिक्षकों को चाहिये कि वे बच्चों की ज़रूरतों की आपूर्ति के लिए उचित वातावरण तैयार करें और इस्लामी शिक्षाओं को सुगम व सरल शैली में पेश करें।
 
 
 
 
 
कभी- कभी ऐसा होता है कि प्रशिक्षक और अभिभावक धर्म और धार्मिक विश्वासों व शिक्षाओं को कठिन दिखाते हैं जबकि इस्लाम धर्म की शिक्षाएं व आदेश सरल हैं। उसके आदेशों में इंसान के स्वास्थ्य को दृष्टि में रखा गया है और उन्हें एक ही रूप में अंजाम देने के लिए इंसान को बाध्य नहीं किया गया है। उदाहरण स्वरूप नमाज़ अनिवार्य है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अनिवार्य नमाज पढ़ने के लिए 24 घंटों में से अधिक समय नहीं लगता परंतु यही नमाज़ 13 वर्ष के बच्चे पर अनिवार्य नहीं है या जो व्यक्ति खड़ा होकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता उससे कहा गया है कि वह बैठ कर नमाज़ पढ़े और अगर बैठकर नमाज़ नहीं पढ़ सकता तो लेटकर नमाज़ पढ़े और इन सब बातों का अर्थ यह है कि इस्लाम धर्म में कड़ाई नहीं है पर बड़े खेद की बात है कि कुछ लोग विशेषकर युवाओं के लिए धार्मिक शिक्षाओं को कठिन दिखाते या बताते हैं। इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि इस्लाम धर्म की महान हस्ती हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया है” जो व्यक्ति अपने समय की स्थिति से अवगत होगा वह ग़लतियों के हमले का शिकार नहीं होगा।“


source : irib
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