विश्वसनीय किताबों में पैग़म्बर की ऐसी हदीसें मौजूद हैं जिनमें हज़रत ने वहाबी समुदाय के प्रकट होने की बात की है: जैसा कि बुखारी में अब्दुल्लाह बिन उमर से नक्ल किया गया है कि वह कहते हैं
ذکر النبی صلی اللہ علیہ وسلم ، اللھم بارک لنا فی شامنا ، اللھم بارک لنا فی یمننا قالوا:وفی نجدنا،قال اللھم بارک لنا فی شامنا، اللھم بارک لنا فی یمننا،قالوا :وفی نجدنا ، قال اللھم بارک لنا فی شامنااللھم بارک لنا فی یمننا ، قالوا یارسول اللہ وفی نجدنا ؟فاظنہ قال فی الثالثة :ھناک الزلازل والفتن وبھا یطلع قرن الشیطان.
हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम स. ने फ़रमाया: ऐ अल्लाह हमारे देश शाम (सीरिया) को हमारे लिए मुबारक बना, हमारे लिए यमन को मुबारक बना, सहाबा ने पूछा और हमारे नज्द (सऊदी) को? हज़रत ने फिर यही दोहराया: ऐ अल्लाह हमारे देश शाम (सीरिया) को हमारे लिए मुबारक बना, हमारे लिए यमन को मुबारक बना। सहाबा ने फिर नज्द के बारे में सवाल किया? अब्दुल्लाह इब्ने उमर कहते हैं मुझे लगता है कि तीसरी बार हज़रत ने फ़रमाया: वहाँ भूकंप और विद्रोह होगा और वहीं से शैतान के सींग प्रकट होंगे।
अहले सुन्नत के बहुत बड़े आलिम ऐनी जिन्होंने बुखारी की व्याख्या भी की है वह कहते हैं: शैतान के सींगों से मुराद शैतान का टोला है और उसकी मण्डली है।
इसी तरह बुखारी ने अबू सईद खदरी से पैगम्बर की यह हदीस बयान की है कि आपने फरमाया:
یخرج ناس من قبل المشرق ویقرء ون القرآن لا یجاوز تراقیھم یمرقون من الدین کما یمرق السھم من الرمیة ثم لا یعودون فیہ حتی یعود السھم الی فوقہ ، قیل ما سیما ھم ، قال سیما ھم التحلیق اوقال : التسبید.
पूरब से कुछ लोग उठेंगे जो कुरआन की तिलावत तो करेंगे मगर कुरआन उनके गले से नीचे नहीं उतरेगा (यानी उनके दिलों में उसकी तिलावत का कोई प्रभाव नहीं होगा केवल ज़बानों पर चढ़ा रहेगा) यह लोग धर्म से इसी तरह बाहर निकल जाएंगे जिस तरह तीर कमान से निकल जाता है और फिर धर्म की ओर पलट कर नहीं आएंगे जिस तरह तीर पलट कर नहीं आता।
कहा गया: उनकी निशानी क्या होगी? फ़रमाया: उनकी पहचान यह होगी कि उनके सिर मुंडे होंगे।
मक्का के मुफ्ती ज़ैनी दहलान इस हदीस की ओर इशारा करते हुए लिखते हैः
ففی قولہ سیماھم التحلیق تصریح بھذہ الطائفة لانھم کانوا یامرون کل من اتبعھم ان یحلق راسہ ولم یکن ھذا الوصف لاحد من طوائف الخوارج والمبتدعة الذین کانوا قبل زمن ھئولاء
पैग़म्बर की हदीस में इस समूह की सबसे स्पष्ट निशानी सिर मुंडवाना है और वहाबियों की भी पहचान है, क्योंकि यही एकमात्र संप्रदाय है जो अपने पैरोकारों को सर मुंडाने का आदेश देता है यहां तक यह वहाबियों से पहले ख्वारिज या दूसरे गुमराह समुदायों में से किसी एक के अंदर भी सर मुंडाने की विशेषता नहीं पाई जाती थी।
वह आगे चलकर लिखते हैं
وکان السیدعبدالرحمن الاھدل مفتی زبید یقول :لاحاجة الی التالیف فی الرد علی الوھابیة بل یکفی فی الرد علیھم قولہ صلی اللہ علیہ وسلم سیما ھم التحلیق ، فانہ لم یفعلہ احد من المبتدعة غیرھم
ज़ुबैद नामक क्षेत्र से सम्बंध रखने वाले मुफ्ती सईद अब्दुर्रहमान अहदल कहा करते थे कि वहाबियों की विचारधाराओं को रद्द करने के लिए किताब लिखने की ज़रूरत नहीं है बल्कि यही पैग़म्बर की हदीस जो इस समुदाय की पहचान (सिर मुंडाना) बताई गई है उनकी मानसिकता के ग़लत होने के लिए काफ़ी है क्योंकि वहाबियों के अलावा किसी भी गुमराह संप्रदाय में यह निशानी नहीं पाई जाती।
واتفق مرة ان امراة اقامت الحجة علی بن الوھاب لمااکر ھو ھا علی اتباعھم ففعلت،امرھا ابن عبد الوھاب ان تحلق راسھا فقالت لہ حیث انک تامرالمراة بحلق راسھا ینبغی لک ان تامر الرجل بحلق لحیتہ ، لان شعر راس المراة زینتھا وشعر لحیة الرجل زینتہ فلم یجد لھا جوابا
एक दिन मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब ने एक महिला को सिर के बाल मुंडवाने का आदेश दिया तो उसने उससे कहाः जिस तरह तूने महिलाओं तुमने सर मुंडाने का आदेश दिया उसी तरह पुरुषों के लिए दाढ़ी मुंडाने का आदेश दे, क्योंकि जिस तरह पुरुषों की शोभा उनकी दाढ़ी है उसी तरह औरतों की शोभा उसके सिर के बाल हैं। मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब, उस औरत की इस बात पर बग़लें झांकने लगा।
source : abna24